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श्रीनगर की फिजाओं में तेजी से घुल रहा जानलेवा SO2, गढ़वाल विवि के वैज्ञानिकों की स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

Sulfur dioxide level in Srinagar वायुमंडल में प्रदूषण का लेवल बढ़ता ही जा रहा है. स्थिति ये हो गई तो मेट्रो सिटी को तो छोड़िए, अब पहाड़ों की आबोहवा भी जहरीली होती जा रही है. हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पौड़ी जिले के पहाड़ी शहर में एक शोध किया है, जिसमें चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. श्रीनगर में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर काफी बढ़ गया है. HNB Garhwal University

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 1, 2023, 1:19 PM IST

Updated : Sep 2, 2023, 2:34 PM IST

पहाड़ों की स्वच्छ आबोहवा में भी फैल रहा प्रदूषण.

श्रीनगर गढ़वाल (उत्तराखंड): दुनियाभर में लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण सभी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. वायु में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिसने स्वच्छ आबोहवा में भी जहर घोल दिया है और इसका मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है. चिंता की बात ये है कि उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल शहर में भी सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मानक से ज्यादा पाया गया है. विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB) द्वारा फंडेड परियोजना के तहत वातावरणीय भौतिकी प्रयोगशाला, भौतिकी विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) गैस पर ये शोध किया जा रहा है. इस रिसर्च को 29 अगस्त 2023 को ऑनलाइन पब्लिश किया गया है.

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श्रीनगर की फिजाओं में तेजी से घुल रहा जानलेवा SO2

दरअसल, हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्याल के भौतिक विभाग के वैज्ञानिक काफी समय से श्रीनगर गढ़वाल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के स्तर पर स्टडी कर रहे हैं. इस दौरान देखने में आया है कि श्रीनगर गढ़वाल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर 17 माइक्रोग्राम घन मीटर तक पहुंच गया है, जो बड़ी चिंता का विषय है.

पढ़ें- ग्लेशियरों पर पड़ रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर, ऐसा ही चलता रहा तो दुनिया में क्या होगा?

श्रीनगर की हवा में घुल रहा जहर: वैज्ञानिकों का मानना है कि श्रीनगर गढ़वाल में कोई औद्योगिक क्षेत्र नहीं है. इसके अलावा मैदानी क्षेत्र के मुकाबले ट्रैफिक भी बहुत ज्यादा नहीं है. ऐसे में श्रीनगर गढ़वाल की आबोहवा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर न के बराबर होना चाहिए. लेकिन यहां 24 घंटे में वायु (हवा) में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर 17 माइक्रोग्राम घन मीटर मिला है, जो काफी परेशान करने वाला है.

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गढ़वाल विवि के वैज्ञानिकों की स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

2019 में किया जा रहा शोध: गढ़वाल विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग के वैज्ञानिकों की ये रिपोर्ट प्रतिष्ठित जर्नल स्प्रिंजर में 29 अगस्त 2023 को प्रकाशित हुई है. गढ़वाल विश्वविद्यालय के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड की ओर से वित्त पोषित परियोजना के तहत वातावरणीय भौतिकी प्रयोगशाला (Atmospheric Physics Laboratory) ने श्रीनगर के वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड गैस की सांद्रणता (Concentration) पर शोध किया जा रहा है. शोध में श्रीनगर के वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड गैस की सांद्रणता (Concentration) का पता लगाया गया जा रहा है.

पढ़ें- ग्लोबल वार्मिंग : जिंदगी और मौत की तरह संकट का समय

श्रीनगर गढ़वाल के हालत काफी खराब: गढ़वाल विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग के वैज्ञानिक डॉ. आलोक सागर गौतम ने बताया कि श्रीनगर गढ़वाल में ईको टेक सेरीनेस 50 एसओटू (SO2) एनालाइजर मशीन के माध्यम से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड गैस की सांद्रण पर शोध किया गया है, जिसमें श्रीनगर गढ़वाल के हालत काफी खराब मिले.

श्रीनगर गढ़वाल में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रण की मात्रा: उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ (WHO) के मानक के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रणता 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, लेकिन चिंता की बात ये है कि श्रीनगर किसी भी तरह की फैक्ट्रियां नहीं हैं. यहां पर जो भी प्रदूषण है वो वाहनों के जरिए ही है, उसकी भी संख्या काफी कम है. बावजूद इसके श्रीनगर गढ़वाल में 24 घंटे में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रणता 17 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पाई गई है.
पढ़ें- उत्तराखंड में समय से पहले खिले फ्योंली के फूल, चिंता में पड़े वैज्ञानिक

भविष्य के लिए चिंता की बात: एक्सपर्ट का कहना है कि इस दिशा में जल्द ही कोई बड़ा कदम उठाने की जरूरत है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो भविष्य में श्रीनगर के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा और श्रीनगर डब्ल्यूएचओ के मानक को भी पार कर जाएंगा. विवि में SO2 एनालाइजर (Echotech Serinus 50) उपकरण से लगातार गैस के सांद्रण को मापा जा रहा है, जिससे मिले आंकड़ों से पता चलता है कि गढ़वाल क्षेत्र में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रण का बढ़ने का कारण हैं- मुख्य रूप से जंगलों में लगने वाली आग, चारधाम यात्रा के दौरान बिना मानकों के आने वाले वाहन जिनसे काफी प्रदूषण निकलता है, बड़ी मात्रा में खनन, रेलवे परियोजना और स्टोन क्रशर से निकलने वाले धूल के कण.

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वायुमंडल में खतरनाक है SO2 का बढ़ना.

प्री-मानसून में स्थिति ज्यादा चिंताजनक: इसके अलावा श्रीनगर के आसपास के इलाकों में हो रहा खनन, रेलवे परियोजना और स्टोन क्रशर से निकलने वाले धूल के कण भी सल्फर डाइऑक्साइड का सांद्रण बढ़ने का प्रमुख कारण है. शोधकर्ता संजीव कुमार और करन सिंह ने बताया कि सल्फर डाइऑक्साइड का सांद्रण प्री-मानसून (मार्च, अप्रैल और मई) में सर्वाधिक और मॉनसून (जून, जुलाई और अगस्त) में न्यूनतम पाया गया है.

मानव जीवन के लिए घातक है सल्फर डाइऑक्साइड के सांद्रण का बढ़ना: वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का पाया जाना काफी खतरनाक साबित हो सकता है. जिस इलाके में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा ज्यादा होगी, वहां पर लोगों को श्वास व फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां ज्यादा होने का खतरा रहता है.

कैंसर होने का खतरा: भौतिक वैज्ञानिक डॉक्टर आलोक सागर गौतम ने बताया कि वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ी मात्रा खांसी, दमा, अस्थमा जैसी बामीरियां को जन्म देती है. यह मात्रा नियंत्रित नहीं हुई तो कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. उन्होंने बताया कि बारिश होने पर वातावरण से सल्फर डाइऑक्साइड जमीन में आ जाती है, जिससे पेड़, पौधों और फसलों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है.

पहाड़ों की स्वच्छ आबोहवा में भी फैल रहा प्रदूषण.

श्रीनगर गढ़वाल (उत्तराखंड): दुनियाभर में लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण सभी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. वायु में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिसने स्वच्छ आबोहवा में भी जहर घोल दिया है और इसका मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है. चिंता की बात ये है कि उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल शहर में भी सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मानक से ज्यादा पाया गया है. विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB) द्वारा फंडेड परियोजना के तहत वातावरणीय भौतिकी प्रयोगशाला, भौतिकी विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) गैस पर ये शोध किया जा रहा है. इस रिसर्च को 29 अगस्त 2023 को ऑनलाइन पब्लिश किया गया है.

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श्रीनगर की फिजाओं में तेजी से घुल रहा जानलेवा SO2

दरअसल, हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्याल के भौतिक विभाग के वैज्ञानिक काफी समय से श्रीनगर गढ़वाल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के स्तर पर स्टडी कर रहे हैं. इस दौरान देखने में आया है कि श्रीनगर गढ़वाल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर 17 माइक्रोग्राम घन मीटर तक पहुंच गया है, जो बड़ी चिंता का विषय है.

पढ़ें- ग्लेशियरों पर पड़ रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर, ऐसा ही चलता रहा तो दुनिया में क्या होगा?

श्रीनगर की हवा में घुल रहा जहर: वैज्ञानिकों का मानना है कि श्रीनगर गढ़वाल में कोई औद्योगिक क्षेत्र नहीं है. इसके अलावा मैदानी क्षेत्र के मुकाबले ट्रैफिक भी बहुत ज्यादा नहीं है. ऐसे में श्रीनगर गढ़वाल की आबोहवा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर न के बराबर होना चाहिए. लेकिन यहां 24 घंटे में वायु (हवा) में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का स्तर 17 माइक्रोग्राम घन मीटर मिला है, जो काफी परेशान करने वाला है.

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गढ़वाल विवि के वैज्ञानिकों की स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

2019 में किया जा रहा शोध: गढ़वाल विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग के वैज्ञानिकों की ये रिपोर्ट प्रतिष्ठित जर्नल स्प्रिंजर में 29 अगस्त 2023 को प्रकाशित हुई है. गढ़वाल विश्वविद्यालय के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड की ओर से वित्त पोषित परियोजना के तहत वातावरणीय भौतिकी प्रयोगशाला (Atmospheric Physics Laboratory) ने श्रीनगर के वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड गैस की सांद्रणता (Concentration) पर शोध किया जा रहा है. शोध में श्रीनगर के वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड गैस की सांद्रणता (Concentration) का पता लगाया गया जा रहा है.

पढ़ें- ग्लोबल वार्मिंग : जिंदगी और मौत की तरह संकट का समय

श्रीनगर गढ़वाल के हालत काफी खराब: गढ़वाल विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग के वैज्ञानिक डॉ. आलोक सागर गौतम ने बताया कि श्रीनगर गढ़वाल में ईको टेक सेरीनेस 50 एसओटू (SO2) एनालाइजर मशीन के माध्यम से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड गैस की सांद्रण पर शोध किया गया है, जिसमें श्रीनगर गढ़वाल के हालत काफी खराब मिले.

श्रीनगर गढ़वाल में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रण की मात्रा: उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ (WHO) के मानक के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रणता 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, लेकिन चिंता की बात ये है कि श्रीनगर किसी भी तरह की फैक्ट्रियां नहीं हैं. यहां पर जो भी प्रदूषण है वो वाहनों के जरिए ही है, उसकी भी संख्या काफी कम है. बावजूद इसके श्रीनगर गढ़वाल में 24 घंटे में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रणता 17 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पाई गई है.
पढ़ें- उत्तराखंड में समय से पहले खिले फ्योंली के फूल, चिंता में पड़े वैज्ञानिक

भविष्य के लिए चिंता की बात: एक्सपर्ट का कहना है कि इस दिशा में जल्द ही कोई बड़ा कदम उठाने की जरूरत है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो भविष्य में श्रीनगर के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा और श्रीनगर डब्ल्यूएचओ के मानक को भी पार कर जाएंगा. विवि में SO2 एनालाइजर (Echotech Serinus 50) उपकरण से लगातार गैस के सांद्रण को मापा जा रहा है, जिससे मिले आंकड़ों से पता चलता है कि गढ़वाल क्षेत्र में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रण का बढ़ने का कारण हैं- मुख्य रूप से जंगलों में लगने वाली आग, चारधाम यात्रा के दौरान बिना मानकों के आने वाले वाहन जिनसे काफी प्रदूषण निकलता है, बड़ी मात्रा में खनन, रेलवे परियोजना और स्टोन क्रशर से निकलने वाले धूल के कण.

-srinagar-garhwal
वायुमंडल में खतरनाक है SO2 का बढ़ना.

प्री-मानसून में स्थिति ज्यादा चिंताजनक: इसके अलावा श्रीनगर के आसपास के इलाकों में हो रहा खनन, रेलवे परियोजना और स्टोन क्रशर से निकलने वाले धूल के कण भी सल्फर डाइऑक्साइड का सांद्रण बढ़ने का प्रमुख कारण है. शोधकर्ता संजीव कुमार और करन सिंह ने बताया कि सल्फर डाइऑक्साइड का सांद्रण प्री-मानसून (मार्च, अप्रैल और मई) में सर्वाधिक और मॉनसून (जून, जुलाई और अगस्त) में न्यूनतम पाया गया है.

मानव जीवन के लिए घातक है सल्फर डाइऑक्साइड के सांद्रण का बढ़ना: वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का पाया जाना काफी खतरनाक साबित हो सकता है. जिस इलाके में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा ज्यादा होगी, वहां पर लोगों को श्वास व फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां ज्यादा होने का खतरा रहता है.

कैंसर होने का खतरा: भौतिक वैज्ञानिक डॉक्टर आलोक सागर गौतम ने बताया कि वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ी मात्रा खांसी, दमा, अस्थमा जैसी बामीरियां को जन्म देती है. यह मात्रा नियंत्रित नहीं हुई तो कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. उन्होंने बताया कि बारिश होने पर वातावरण से सल्फर डाइऑक्साइड जमीन में आ जाती है, जिससे पेड़, पौधों और फसलों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है.

Last Updated : Sep 2, 2023, 2:34 PM IST
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