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पितृ विसर्जन अमावस्या : जानिए पितृ पक्ष के आखिरी दिन कैसे करते हैं श्राद्ध और शुभ मुहूर्त - जानिए पितृ पक्ष के आखिरी दिन कैसे करते हैं श्राद्ध और शुभ मुहूर्त

पितृ पक्ष 06 अक्टूबर, बुधवार को समाप्त हो जाएंगे. पितृ पक्ष का आखिरी दिन सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं. यह पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है. इसे पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से भी जानते हैं.

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Published : Oct 5, 2021, 7:36 PM IST

Updated : Oct 5, 2021, 11:26 PM IST

रांची : हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. अध्यात्म के अनुसार इसी दिन पितृपक्ष का समापन होता है और पितृ लोक से आए हुए पूर्वज अपने लोक चले जाते हैं.

आश्विन कृष्ण अमावस्या को लेकर रांची के प्रख्यात पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं इस दिन अपने पितृ को खुश करने के लिए सफेद फूल से, सफेद चंदन से, तिल से और जौ से अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए साथ ही साथ उन्हें याद कर जल समर्पण करना चाहिए. इससे पितृजन तृप्त होते हैं और अपने पुत्र पौत्रों और परिवार के अन्य सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं.

पितृ विसर्जन अमावस्या

सूर्यदेव को अर्घ्य दें

पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि आश्विन अमावस्या व्रत का बहुत महत्व है, क्योंकि इस दिन पितृपक्ष समाप्त होता है और देवी-देवताओं का पूजन शुरू हो जाता है. आश्विन अमावस्या के दिन जलाशय, नदी या कुंड में स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें उसके बाद पितरों को निमित्त तर्पण करें.

पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि इस दिन जिन लोगों को अपने पूर्वजों के श्राद्ध का तिथि याद नहीं है वैसे व्यक्ति भी ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने पितरों को याद कर सकते हैं. आपको बता दें कि आश्विन अमावस्या ज्ञात और अज्ञात पितरों के पूजन के लिए बड़ा महत्व रखता है, इसलिए इसे सर्व पितृजनि अमावस्या और महालय विसर्जन भी कहा जाता है. आश्विन अमावस्या की समाप्ति के अगले दिन ही नवरात्र प्रारंभ हो जाते हैं और मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा अगले दस दिनों तक की जाती है.

अमावस्या शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि 5 अक्टूबर 2021 मंगलवार को शाम 07 बजकर 04 मिनट से आरंभ होगी, जो कि 6 अक्टूबर 2021 का दोपहर 04 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी.

अमावस्या श्राद्ध का महत्व

पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनके परिजनों को पितरों की देहांत तिथि ज्ञात नहीं होती है या भूल चुके होते हैं. कहते हैं कि इस दिन श्राद्ध करने से भोजन पितरों को स्वथा रूप में मिलता है. पितरों को अर्पित किया गया भोजन उस रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिस रूप में उनका जन्म हुआ होता है. अगर मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में उन्हें भोजन मिलता है, पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में और यक्ष योनि में पान के रूप में भोजन पहुंचाया जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है.

अमावस्या के दिन ऐसे करें श्राद्ध

शास्त्रों के अनुसार, पितरों के लिए बनाए गए भोजन से पहले पंचबली भोग लगाया जाता है. इसमें भोजन से पहले पांच ग्रास, गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवों के लिए अन्न निकाला जाता है. इसके साथ ही ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है. पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि पितरों के भोजन साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर ही बनाएं. पितृ पक्ष के आखिरी दिन पिंडदान और तर्पण की क्रिया की जाती है. शाम को दो, पांच या सोलह दीपक जलाने की भी मान्यता है. कहते हैं कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं.

इस दिन भूलकर भी न करें ये काम
सर्व पितृ अमावस्या में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस दिन स्नान और दान का भी विशेष भी महत्व है. इस दिन हर प्रकार की बुराई से बचने का प्रयास करना चाहिए. नशा आदि से भी बचना चाहिए. क्रोध और अहंकार के साथ लोभ से भी दूर रहना चाहिए. इस दिन पितरों के योगदान को याद करना चाहिए और उनका आभार व्यक्त करना चाहिए.

पढ़ेंः 100 साल बाद गजछाया,सर्वार्थसिद्धि योग में होगा सर्वपितृ श्राद्ध, इन कामों से बदलेगी किस्मत

पढ़ेंः वरदान साबित होगा पितृपक्ष में समस्त जीव जंतुओं को भोजन देना

रांची : हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. अध्यात्म के अनुसार इसी दिन पितृपक्ष का समापन होता है और पितृ लोक से आए हुए पूर्वज अपने लोक चले जाते हैं.

आश्विन कृष्ण अमावस्या को लेकर रांची के प्रख्यात पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं इस दिन अपने पितृ को खुश करने के लिए सफेद फूल से, सफेद चंदन से, तिल से और जौ से अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए साथ ही साथ उन्हें याद कर जल समर्पण करना चाहिए. इससे पितृजन तृप्त होते हैं और अपने पुत्र पौत्रों और परिवार के अन्य सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं.

पितृ विसर्जन अमावस्या

सूर्यदेव को अर्घ्य दें

पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि आश्विन अमावस्या व्रत का बहुत महत्व है, क्योंकि इस दिन पितृपक्ष समाप्त होता है और देवी-देवताओं का पूजन शुरू हो जाता है. आश्विन अमावस्या के दिन जलाशय, नदी या कुंड में स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें उसके बाद पितरों को निमित्त तर्पण करें.

पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि इस दिन जिन लोगों को अपने पूर्वजों के श्राद्ध का तिथि याद नहीं है वैसे व्यक्ति भी ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने पितरों को याद कर सकते हैं. आपको बता दें कि आश्विन अमावस्या ज्ञात और अज्ञात पितरों के पूजन के लिए बड़ा महत्व रखता है, इसलिए इसे सर्व पितृजनि अमावस्या और महालय विसर्जन भी कहा जाता है. आश्विन अमावस्या की समाप्ति के अगले दिन ही नवरात्र प्रारंभ हो जाते हैं और मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा अगले दस दिनों तक की जाती है.

अमावस्या शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि 5 अक्टूबर 2021 मंगलवार को शाम 07 बजकर 04 मिनट से आरंभ होगी, जो कि 6 अक्टूबर 2021 का दोपहर 04 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी.

अमावस्या श्राद्ध का महत्व

पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनके परिजनों को पितरों की देहांत तिथि ज्ञात नहीं होती है या भूल चुके होते हैं. कहते हैं कि इस दिन श्राद्ध करने से भोजन पितरों को स्वथा रूप में मिलता है. पितरों को अर्पित किया गया भोजन उस रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिस रूप में उनका जन्म हुआ होता है. अगर मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में उन्हें भोजन मिलता है, पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में और यक्ष योनि में पान के रूप में भोजन पहुंचाया जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है.

अमावस्या के दिन ऐसे करें श्राद्ध

शास्त्रों के अनुसार, पितरों के लिए बनाए गए भोजन से पहले पंचबली भोग लगाया जाता है. इसमें भोजन से पहले पांच ग्रास, गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवों के लिए अन्न निकाला जाता है. इसके साथ ही ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है. पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि पितरों के भोजन साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर ही बनाएं. पितृ पक्ष के आखिरी दिन पिंडदान और तर्पण की क्रिया की जाती है. शाम को दो, पांच या सोलह दीपक जलाने की भी मान्यता है. कहते हैं कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं.

इस दिन भूलकर भी न करें ये काम
सर्व पितृ अमावस्या में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस दिन स्नान और दान का भी विशेष भी महत्व है. इस दिन हर प्रकार की बुराई से बचने का प्रयास करना चाहिए. नशा आदि से भी बचना चाहिए. क्रोध और अहंकार के साथ लोभ से भी दूर रहना चाहिए. इस दिन पितरों के योगदान को याद करना चाहिए और उनका आभार व्यक्त करना चाहिए.

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पढ़ेंः वरदान साबित होगा पितृपक्ष में समस्त जीव जंतुओं को भोजन देना

Last Updated : Oct 5, 2021, 11:26 PM IST
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