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दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे को मिली NGT की मंजूरी, पर्यावरण निगरानी के लिए बनाई समिति

एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. नागिन नंदा की पीठ ने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से परियोजना को वन मंजूरी देने के दौरान विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया.

NGT Delhi-Dehradun Expressway
दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे
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Published : Dec 13, 2021, 2:25 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने सोमवार को दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे (Delhi-Dehradun Expressway) को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही अधिकरण ने 12 सदस्यों की समिति गठित की है, जो सुनिश्चित करेगी कि अवैज्ञानिक तरीके से मलबे को रखने से पर्यावरण को नुकसान नहीं हो या गणेशपुर-देहरादून सड़क (एनएच-72ए) पर वन्यजीव गलियारा बाधित नहीं हो.

एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. नागिन नंदा की पीठ ने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से परियोजना को वन मंजूरी देने के दौरान विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया.

एनजीटी ने कहा, 'एक बार परियोजना की मंजूरी देने के बाद इसके परिणामस्वरूप द्वितीय चरण/पेड़ काटने की मंजूरी का होता है. हालांकि, हम देख सकते हैं कि पारदर्शिता के लिए द्वितीय चरण/पेड़ काटने की मंजूरी, पहले चरण के बाद दी जानी चाहिए और इसे तुरंत वेबसाइट पर अपलोड करना चाहिए.'

एनजीटी ने कहा, 'वन मंजूरी को कायम रखने के बावजूद, हम पाते हैं कि इसके प्रभाव को कम करने वाले उपायों को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और उसकी जमीन पर निगरानी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की ओर से किया जाना चाहिए और साथ ही यही निगरानी स्वतंत्र प्रणाली की ओर से भी जानी चाहिए.'

यह भी पढ़ें- हिमाचल हाई कोर्ट के पुराने भवन खंड का नहीं होगा पुनर्निर्माण

हरित अधिकरण ने इसके साथ ही 12 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता उत्तराखंड के मुख्य सचिव करेंगे, इसमें भारतीय वन्य जीव संस्थान, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य को नामित किया.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने सोमवार को दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे (Delhi-Dehradun Expressway) को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही अधिकरण ने 12 सदस्यों की समिति गठित की है, जो सुनिश्चित करेगी कि अवैज्ञानिक तरीके से मलबे को रखने से पर्यावरण को नुकसान नहीं हो या गणेशपुर-देहरादून सड़क (एनएच-72ए) पर वन्यजीव गलियारा बाधित नहीं हो.

एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. नागिन नंदा की पीठ ने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से परियोजना को वन मंजूरी देने के दौरान विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया.

एनजीटी ने कहा, 'एक बार परियोजना की मंजूरी देने के बाद इसके परिणामस्वरूप द्वितीय चरण/पेड़ काटने की मंजूरी का होता है. हालांकि, हम देख सकते हैं कि पारदर्शिता के लिए द्वितीय चरण/पेड़ काटने की मंजूरी, पहले चरण के बाद दी जानी चाहिए और इसे तुरंत वेबसाइट पर अपलोड करना चाहिए.'

एनजीटी ने कहा, 'वन मंजूरी को कायम रखने के बावजूद, हम पाते हैं कि इसके प्रभाव को कम करने वाले उपायों को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और उसकी जमीन पर निगरानी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की ओर से किया जाना चाहिए और साथ ही यही निगरानी स्वतंत्र प्रणाली की ओर से भी जानी चाहिए.'

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हरित अधिकरण ने इसके साथ ही 12 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता उत्तराखंड के मुख्य सचिव करेंगे, इसमें भारतीय वन्य जीव संस्थान, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य को नामित किया.

(पीटीआई-भाषा)

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