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नवरात्र में फूल लोढ़ी : मां की पूजा, मातृ शक्ति का सम्मान व प्रकृति के गुणगान की अनोखी परंपरा - Palamu News

नवरात्र के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में कई परंपराएं प्रचलित हैं. जो मां दुर्गा की भक्ति का उदाहरण है. पलामू में फूल लोढ़ी (Phool Lodhi) परंपरा सदियों से चलती आ रही है. झारखंड के पलामू, गढ़वा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के कुछ इलाकों में भी यह परंपरा प्रचलित है. जानें इस परंपरा की खासियत.

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Published : Oct 12, 2021, 10:08 PM IST

पलामू : पूरे देश में नवरात्र की धूम है. लोग मां दुर्गा से अपनी सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं. नवरात्र के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में कई ऐसी परंपराएं हैं. जो मां दुर्गा की भक्ति का उदाहरण है. नारी शक्ति का बड़ा उदाहरण है फूल लोढ़ी (Phool Lodhi) परंपरा. यह परंपरा झारखंड के पलामू, गढ़वा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के कुछ इलाकों में प्रचलित है.

नवरात्र के पहले दिन शुरू होने वाली फूल लोढ़ी परंपरा सप्तमी तक चलती है. सप्तमी की शाम में आरती के साथ इसका समापन होता है. फूल लोढ़ी परंपरा में देवी मां के सभी रूपों के साथ साथ भगवान शिव और गौरी, गणेश की भी पूजा की जाती है. यह परंपरा प्रकृति से जुड़ा है. इसमें फूल और नदियों का काफी महत्व है. इसके गीत आज भी पलामू के कई हिस्सों में गूंजते हैं. पंडित चंद्र कांत द्विवेदी बताते हैं कि फूल लोढ़ी की परंपरा यूपी और उत्तराखंड के कई इलाकों में भी है.

देखें स्पेशल स्टोरी

ससुराल से मायके जाती है लड़कियां

फूल लोढ़ी पूरी तरह लड़कियों को समर्पित परंपरा है. इसमें खासतौर पर लड़कियां अपने ससुराल से मायके जाती है. पूरे नवरात्र लड़कियां अपने मायके में रहती हैं और फूल लोढ़ी करती हैं. लड़कियां गांव के विभिन्न इलाको में जाती है और फूल तोड़कर लाती है. हर दिन नए फूल से मां दुर्गा के सभी रूप की पूजा की जाती है.

इसमें सबसे खास यह है कि मां दुर्गा, गौरी, गणेश और भगवान शिव की प्रतिमा लड़कियां मिट्टी से बनाती है. सप्तमी के दिन प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. कई सालों से इस परंपरा में भाग ले रही अलकारो देवी बताती हैं कि यह काफी पुरानी परंपरा है. इस परंपरा में गांव की सभी बेटियां एक जगह जमा होती है.

गीत गातीं महिलाएं
गीत गातीं महिलाएं

यह भी पढ़ें-बांदा के इस काली मंदिर में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु, मराठों ने किया था स्थापित

विलुप्त हो रही है यह परंपरा
फूल लोढ़ी परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है. पलामू के कुछ ही घर बचे हैं, जहां यह परंपरा आज भी कायम है. अलकारो देवी और कुमारो देवी बताती हैं कि बदलते वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है. धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को निभाना भूल गए हैं. पहले गांव में काफी भीड़ होती थी. लेकिन अब लोग बाहर चले गए हैं.

लोगों के जीवन में बदलाव हुआ है, जिसके कारण इस तरह की परंपराएं भी प्रभावित हुई हैं. फूल लोढ़ी में फूल, पेड़ और नदियों का काफी महत्व है. पूरी परंपरा इसी से जुड़ी हुई है. यह परंपरा नारी के शक्ति के साथ-साथ प्रकृति से लगाव के बारे में भी बताती है.

पलामू : पूरे देश में नवरात्र की धूम है. लोग मां दुर्गा से अपनी सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं. नवरात्र के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में कई ऐसी परंपराएं हैं. जो मां दुर्गा की भक्ति का उदाहरण है. नारी शक्ति का बड़ा उदाहरण है फूल लोढ़ी (Phool Lodhi) परंपरा. यह परंपरा झारखंड के पलामू, गढ़वा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के कुछ इलाकों में प्रचलित है.

नवरात्र के पहले दिन शुरू होने वाली फूल लोढ़ी परंपरा सप्तमी तक चलती है. सप्तमी की शाम में आरती के साथ इसका समापन होता है. फूल लोढ़ी परंपरा में देवी मां के सभी रूपों के साथ साथ भगवान शिव और गौरी, गणेश की भी पूजा की जाती है. यह परंपरा प्रकृति से जुड़ा है. इसमें फूल और नदियों का काफी महत्व है. इसके गीत आज भी पलामू के कई हिस्सों में गूंजते हैं. पंडित चंद्र कांत द्विवेदी बताते हैं कि फूल लोढ़ी की परंपरा यूपी और उत्तराखंड के कई इलाकों में भी है.

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ससुराल से मायके जाती है लड़कियां

फूल लोढ़ी पूरी तरह लड़कियों को समर्पित परंपरा है. इसमें खासतौर पर लड़कियां अपने ससुराल से मायके जाती है. पूरे नवरात्र लड़कियां अपने मायके में रहती हैं और फूल लोढ़ी करती हैं. लड़कियां गांव के विभिन्न इलाको में जाती है और फूल तोड़कर लाती है. हर दिन नए फूल से मां दुर्गा के सभी रूप की पूजा की जाती है.

इसमें सबसे खास यह है कि मां दुर्गा, गौरी, गणेश और भगवान शिव की प्रतिमा लड़कियां मिट्टी से बनाती है. सप्तमी के दिन प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. कई सालों से इस परंपरा में भाग ले रही अलकारो देवी बताती हैं कि यह काफी पुरानी परंपरा है. इस परंपरा में गांव की सभी बेटियां एक जगह जमा होती है.

गीत गातीं महिलाएं
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विलुप्त हो रही है यह परंपरा
फूल लोढ़ी परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है. पलामू के कुछ ही घर बचे हैं, जहां यह परंपरा आज भी कायम है. अलकारो देवी और कुमारो देवी बताती हैं कि बदलते वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है. धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को निभाना भूल गए हैं. पहले गांव में काफी भीड़ होती थी. लेकिन अब लोग बाहर चले गए हैं.

लोगों के जीवन में बदलाव हुआ है, जिसके कारण इस तरह की परंपराएं भी प्रभावित हुई हैं. फूल लोढ़ी में फूल, पेड़ और नदियों का काफी महत्व है. पूरी परंपरा इसी से जुड़ी हुई है. यह परंपरा नारी के शक्ति के साथ-साथ प्रकृति से लगाव के बारे में भी बताती है.

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