नई दिल्ली : मेटा (फेसबुक) ने कहा है कि वो सार्वजनिक कार्य नहीं करता बल्कि एक निजी पक्षकार है और उस पर संविधान की धारा 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लागू नहीं होता है. मेटा ने इस बात की सूचना दिल्ली हाईकोर्ट को एक हलफनामे के जरिये दी. इस मामले पर 17 मई को सुनवाई होने वाली है. मेटा ने कहा कि उसके यूजर्स और कंपनी के बीच उसकी सेवाओं को लेकर एक करार होता है, जो कि एक निजी करार है. ये करार सेवा की शर्तों के तहत होते हैं. जैसे कोई यूजर साइन अप करता है तो उसके और कंपनी के बीच सेवा की शर्तों का करार होता है. मेटा ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को आधार बनाया है, जिसमें कहा गया है कि धारा 19 के तहत मिले अधिकार को निजी पक्षकार पर लागू नहीं किया जा सकता है. मेटा फेसबुक और इंस्टाग्राम की पैतृक कंपनी है.
13 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि कोर्ट किसी धर्म का प्रचार करने का प्लेटफार्म नहीं है. सुनवाई के दौरान वोकफ्लिक्स नामक ट्विटर अकाउंट होल्डर की ओर से पेश वकील ने जब हिन्दू शब्द का इस्तेमाल किया था तो कोर्ट ने कहा था कि मैं एक बात साफ करना चाहता हूं. कोर्ट किसी धर्म का प्रचार करने का प्लेटफार्म नहीं है. ये केवल कानून की बात करने के लिए है. आप हिन्दू शब्द का इस्तेमाल करने से अपने को रोकिए.
दरअसल वोकफ्लिक्स नामक ट्विटर अकाउंट होल्डर ने ट्विटर पर आरोप लगाया गया है कि वो धार्मिक भावनाओं के मामले में दोहरा मानदंड अपनाता है. याचिकाकर्ता का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया है. याचिकाकर्ता का ट्विटर अकाउंट नफरत को बढ़ावा देने के मामले में सस्पेंड किया गया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि ट्विटर खुलेआम दोहरे मानदंड अपना रहा है. याचिका में कहा गया है कि ट्विटर पर एक तरफ जहां हिंदू भावनाओं को कुचलने की अनुमति दी जाती है, वहीं दूसरे समुदायों की भावनाओं का सम्मान किया जाता है. याचिका में कोर्ट में खाताधारक ने औरंगजेब और टीपू सुल्तान का भी जिक्र किया है.
याचिकाकर्ता की ओर से वकील राघव अवस्थी ने याचिकाकर्ता के ट्विटर अकाउंट को सस्पेंड करने के आदेश को चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म किसी पोस्ट के एक हिस्से के आधार पर अकाउंट को सस्पेंड नहीं कर सकता है. 8 मार्च को कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्विटर को नोटिस जारी किया था.