टिहरी: जोशीमठ में भू धंसाव (Landslide in Joshimath) और लैंडस्लाइड की घटनाओं के बाद अब पूरे उत्तराखंड में पावर प्रोजेक्ट्स को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने शुरू हो गये हैं. इसी कड़ी में टिहरी डैम को लेकर भी भूवैज्ञानिक डॉ एसपी सती (Geologist Dr SP Sati on Tehri Dam) ने कई अहम बातें बताई हैं. डॉ एसपी सती ने कहा कि झील के कारण यहां हर साल दरारें बढ़ रही हैं. झील के आसपास की पहाड़ियों में परिवर्तन (Changes in the hills around Tehri Lake) आ रहा है. जैसे ही झील का पानी नीचे होता है तो पहाड़ी सिकुड़ने लगती है. जैसे ही पानी ऊपर बढ़ता है तो पहाड़ी खुलने लग जाती है. और ऐसी स्थिति में भूकंप आने की संभावना ज्यादा होती है. साथ ही पहाड़ियों की स्थिति बदलने से भी खतरे के हालात पैदा होते हैं.
झील के आसपास के गांव खतरे की जद में: भूवैज्ञानिक डॉ एसपी सती ने कहा कि जोशीमठ जैसे हालात टिहरी झील के आसपास बसे गांवों में भी हैं. यहां भी मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ रही हैं. जिसको लेकर डॉ एसपी सती ने कहा मैंने खुद इस पर अध्ययन किया है. जिसमें पाया गया कि टिहरी झील के आसपास ऊपरी इलाके में जो गांव हैं वहां तक भूस्खलन के कारण दरारें पड़ रही हैं. वह गांव कभी भी खतरे की जद में आ सकते हैं. झील के कारण आसपास बसे गांवों के घरों में दरार पड़ने लगी हैं. जिससे यह घर असुरक्षित हो गए हैं. ये घर कभी भी टूटकर गिर सकते हैं. झील के आसपास बसे गांवों के विस्थापन के लिए टीएचडीसी को अपनी विस्थापन नीति में शिथिलता लानी होगी. जिससे खतरे की जद में आने वाले ग्रामीणों का समय रहते विस्थापन हो सके. उन्होंने कहा टिहरी झील और उसके आसपास रहने वाले लोगों को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता.
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झील के आसपास बदल रही पहाड़ियों की स्थिति: भू वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सती ने बताया कि झील के कारण हर साल दरारें बढ़ रही हैं. झील के आसपास की पहाड़ियों में परिवर्तन आ रहा है. जैसे ही झील का पानी नीचे होता है तो पहाड़ी सिकुड़ने लगती है. जैसे ही पानी ऊपर बढ़ता है तो पहाड़ी खुलने लग जाती है. और ऐसी स्थिति में भूकंप आने की संभावना ज्यादा होती है. साथ ही पहाड़ियों की स्थिति बदलने से भी खतरे के हालात पैदा होते हैं. उन्होंने कहा खतरे की धीमी आहटों को समय रहते सुनना होगा. नहीं तो भविष्य में जोशीमठ जैसे न जाने कितने ऐतिहासिक शहरों में इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं.
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भूस्खलन के मलबे पर बसा जोशीमठ: जोशीमठ को लेकर भूवैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सती ने कहा कि जोशीमठ को बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है. सरकार को सबसे पहले खतरे की जद में आए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करना चाहिए. उसके बाद यहां का अध्ययन किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ शहर है. यहां कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी. जिसे दूसरी जगह शिफ्ट करना पड़ा था. उन्होंने बताया 50 साल पहले भूस्खलन के संकेत मिल गए थे. जिसको लेकर 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन आयुक्त रहे एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी. जिसने इस बात की पुष्टि की थी कि जोशीमठ धीरे-धीरे दरक रहा है. रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा गया था कि यहां पर किसी भी तरह का कोई निर्माण कार्य न किया जाये. साथ ही इस इलाके में पेड़ों के कटान पर रोक की बात भी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में सामने आई थी. मिश्रा समिति की रिपोर्ट पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. न ही इस रिपोर्ट पर अमल किया गया.
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सभी चीजों को दरकिनार करते हुए इस क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माणकार्य किये गये. प्रकृति का दोहन किया गया. जंगल काटे गये. जिसका नतीजा आज सबके सामने है. उन्होंने कहा कि आज जोशीमठ में पांच छह से सात मंजिला भवनों तक का निर्माण किया गया. होटल बनाए गए. आर्मी और आईटीपीबी का भी बेस कैंप बनाया गया. बड़े स्तर पर निर्माण कार्य किए गए. जिससे जोशीमठ के चारों तरफ लोड बढ़ने लगा. जोशीमठ में सीवेज के पानी की निकासी का कोई ध्यान नहीं रखा गया. साथ ही उन्होंने कहा पावर प्रोजेक्ट्स के कारण भी जोशीमठ में दरारें आ रही हैं. जिसका अध्ययन करने की आवश्यकता है. डॉ एसपी सती ने कहा कि जोशीमठ विकास के चक्कर में आपदा की भेंट चढ़ा है. उन्होंने कहा एनटीपीसी की टनल में जो पानी है और आसपास के पानी के सैंपल लेकर अध्ययन करने की आवश्यकता है.