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उत्तराखंड: पाकिस्तान तक चर्चित है पिरान कलियर का गूलर का पेड़, ये है मान्यता - Gular tree of Roorkee Piran Kaliyar

आस्था की नगरी पिरान कलियर आने वाले जायरीनों के लिए हमेशा अकीदत का केन्द्र रहा दरगाह परिसर में खड़ा गूलर का पेड़ (Roorkee Piran Kaliyar goolar Tree). मान्यताओं के अनुसार मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर (Makhdoom Alauddin Ali Ahmed Sabir) ने गूलर के पेड़ के नीचे खड़े होकर ही बरसों खुदा की इबादत की थी, इसलिए आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन गूलर ले जाना नहीं भूलते.

Uttarakhand News
पिरान कलियर
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Published : Oct 12, 2022, 3:40 PM IST

रुडकी: उत्तराखंड में हर मजहब के लोगों के लिए खास चीजें हैं. आज हम आपको पिरान कलियर (Roorkee Piran Kaliyar) के एक ऐसे रहस्यमयी पेड़ से रूबरू कराने जा रहे है, जिसके बारे में कई रोचक कहानियां सुनने में मिलती हैं. आस्था की नगरी पिरान कलियर आने वाले जायरीनों के लिए हमेशा अकीदत का केन्द्र रहा दरगाह परिसर में खड़ा गूलर का पेड़ (Roorkee Piran Kaliyar goolar Tree) खास अहमियत रखता है. मान्यताओं के अनुसार मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर (Makhdoom Alauddin Ali Ahmed Sabir) ने गूलर के पेड़ के नीचे खड़े होकर ही बरसों खुदा की इबादत की थी. भोजन के नाम पर हजरत साबिर साहब गूलर ही खाते थे. आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन गूलर ले जाना नहीं भूलते.

गूलर की अहमियत: एक बार हजरत साबिर साहब के पीर मुर्शीद बाबा फरीदगंज शक्कर के पाक पट्टन स्थित आवास से जो अब पाकिस्तान में है से कव्वाल आए थे. पहले उन्होंने हजरत निजामुददीन औलिया देहलवी की खानकाह में कलाम पेश किए. कव्वालों के कलाम महबूबे इलाही हजरत निजामुद्दीन औलिया को इस कदर पसंद आए कि उन्होंने कव्वालों को बेशकीमती हीरे मोती दिए. जिस पर कव्वाल बेहद प्रभावित हुए. उन्हें उम्मीद जगी कि कलियर से उन्हें और ज्यादा कीमती तोहफे हासिल होंगे. दिल में उम्मीद की शमां रोशन किए कव्वाल कलियर पहुंचे और हजरत साबिर साहब के रूबरू अपने कलाम पेश किए तो साबिर साहब ने खुश होकर कव्वालों को गूलर के पेड़ से गूलर तोड़कर बतौर इनाम दिए. कव्वालों को गूलर जैसी मामूली चीज मिलने से गहरी मायूसी हुई.

पाकिस्तान तक चर्चित है पिरान कलियर का गूलर का पेड़.
पढ़ें-CM धामी ने कलियर दरगाह में भेजी सद्भावना चादर, प्रदेश की खुशहाली के लिए मांगी दुआ

बीमारी ठीक होने का दावा: वापसी में जब कव्वाल पाक पट्टन पहुंचे तो बाबा फरीद ने कव्वालों से पूछा कि मेरे साबिर ने क्या दिया है, तो कव्वालों ने उपेक्षित भाव से उनके सामने गूलर की पोटली खोलकर रख दी. गूलर देखते ही बाबा फरीद ने बड़ी अकीदत से गूलरों को उठाकर आंखों से लगा लिया और हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की हम्दो सना पेश की. इस माजरे को देखकर कव्वालों को हैरत हुई. तब उन्हें गूलर की अहमियत का अहसास हुआ. आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन गूलर ले जाना नहीं भूलते. मान्यता है कि जिनके यहां संतान नहीं होती या लाइलाज बीमारी का शिकार होते हैं, उन्हें गूलर का सेवन करने से संतान प्राप्त होती है और बीमारों को बीमारियों से छुटकारा मिलता है.
पढ़ें-रुड़की पहुंचा 150 पाकिस्तानी जायरीनों का जत्था, दरगाह साबिर पाक के उर्स में होंगे शामिल

लोगों में गूलर का महत्व: दरगाह परिसर में गूलर मुख्य दरवाजे से गुजरने पर बाएं हाथ पर स्थित है. उस पर संगमरमर का पत्थर लगा है. जिस पर हर वक्त चिराग जले रहते हैं. अकीदतमंद अपने दुख दर्द की दास्तान एक अर्जी में लिखकर उस गूलर पर टांग देते हैं. उन्हें यकीन होता है कि साबिर साहब उनकी अर्जी में लिखे दुख दर्द दूर करेंगे. वहीं स्थानी निवासी मौसम अली का कहना है कि दरगाह परिसर में खड़े गूलर के पेड़ की यहां पर सबसे बड़ी मान्यता है. दूर दराज से यहां पर जायरीन आते हैं और गूलर को लेकर जाते हैं. उन्होंने बताया कि साबिर पाक ने 12 साल तक भोजन नहीं किया था. सिर्फ गूलर के ऊपर उंगली लगाते थे और उंगली को चाट लिया करते थे. वहीं दरगाह खादिम इमरान साबरी ने बताया कि इस गूलर को दूर दराज से जायरीन लेने के लिए आते हैं. गूलर का तबर्रुक (प्रसाद) इसलिए कीमती माना जाता है कि साबिर पाक ने इस पेड़ को पकड़ कर तपस्या की थी. अल्लाह ने इसमें ऐसी तासीर रखी कि सबकी मुराद पूरी होती है, ये पेड़ साबिर पाक की दुआओं का सदका है.

रुडकी: उत्तराखंड में हर मजहब के लोगों के लिए खास चीजें हैं. आज हम आपको पिरान कलियर (Roorkee Piran Kaliyar) के एक ऐसे रहस्यमयी पेड़ से रूबरू कराने जा रहे है, जिसके बारे में कई रोचक कहानियां सुनने में मिलती हैं. आस्था की नगरी पिरान कलियर आने वाले जायरीनों के लिए हमेशा अकीदत का केन्द्र रहा दरगाह परिसर में खड़ा गूलर का पेड़ (Roorkee Piran Kaliyar goolar Tree) खास अहमियत रखता है. मान्यताओं के अनुसार मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर (Makhdoom Alauddin Ali Ahmed Sabir) ने गूलर के पेड़ के नीचे खड़े होकर ही बरसों खुदा की इबादत की थी. भोजन के नाम पर हजरत साबिर साहब गूलर ही खाते थे. आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन गूलर ले जाना नहीं भूलते.

गूलर की अहमियत: एक बार हजरत साबिर साहब के पीर मुर्शीद बाबा फरीदगंज शक्कर के पाक पट्टन स्थित आवास से जो अब पाकिस्तान में है से कव्वाल आए थे. पहले उन्होंने हजरत निजामुददीन औलिया देहलवी की खानकाह में कलाम पेश किए. कव्वालों के कलाम महबूबे इलाही हजरत निजामुद्दीन औलिया को इस कदर पसंद आए कि उन्होंने कव्वालों को बेशकीमती हीरे मोती दिए. जिस पर कव्वाल बेहद प्रभावित हुए. उन्हें उम्मीद जगी कि कलियर से उन्हें और ज्यादा कीमती तोहफे हासिल होंगे. दिल में उम्मीद की शमां रोशन किए कव्वाल कलियर पहुंचे और हजरत साबिर साहब के रूबरू अपने कलाम पेश किए तो साबिर साहब ने खुश होकर कव्वालों को गूलर के पेड़ से गूलर तोड़कर बतौर इनाम दिए. कव्वालों को गूलर जैसी मामूली चीज मिलने से गहरी मायूसी हुई.

पाकिस्तान तक चर्चित है पिरान कलियर का गूलर का पेड़.
पढ़ें-CM धामी ने कलियर दरगाह में भेजी सद्भावना चादर, प्रदेश की खुशहाली के लिए मांगी दुआ

बीमारी ठीक होने का दावा: वापसी में जब कव्वाल पाक पट्टन पहुंचे तो बाबा फरीद ने कव्वालों से पूछा कि मेरे साबिर ने क्या दिया है, तो कव्वालों ने उपेक्षित भाव से उनके सामने गूलर की पोटली खोलकर रख दी. गूलर देखते ही बाबा फरीद ने बड़ी अकीदत से गूलरों को उठाकर आंखों से लगा लिया और हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की हम्दो सना पेश की. इस माजरे को देखकर कव्वालों को हैरत हुई. तब उन्हें गूलर की अहमियत का अहसास हुआ. आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन गूलर ले जाना नहीं भूलते. मान्यता है कि जिनके यहां संतान नहीं होती या लाइलाज बीमारी का शिकार होते हैं, उन्हें गूलर का सेवन करने से संतान प्राप्त होती है और बीमारों को बीमारियों से छुटकारा मिलता है.
पढ़ें-रुड़की पहुंचा 150 पाकिस्तानी जायरीनों का जत्था, दरगाह साबिर पाक के उर्स में होंगे शामिल

लोगों में गूलर का महत्व: दरगाह परिसर में गूलर मुख्य दरवाजे से गुजरने पर बाएं हाथ पर स्थित है. उस पर संगमरमर का पत्थर लगा है. जिस पर हर वक्त चिराग जले रहते हैं. अकीदतमंद अपने दुख दर्द की दास्तान एक अर्जी में लिखकर उस गूलर पर टांग देते हैं. उन्हें यकीन होता है कि साबिर साहब उनकी अर्जी में लिखे दुख दर्द दूर करेंगे. वहीं स्थानी निवासी मौसम अली का कहना है कि दरगाह परिसर में खड़े गूलर के पेड़ की यहां पर सबसे बड़ी मान्यता है. दूर दराज से यहां पर जायरीन आते हैं और गूलर को लेकर जाते हैं. उन्होंने बताया कि साबिर पाक ने 12 साल तक भोजन नहीं किया था. सिर्फ गूलर के ऊपर उंगली लगाते थे और उंगली को चाट लिया करते थे. वहीं दरगाह खादिम इमरान साबरी ने बताया कि इस गूलर को दूर दराज से जायरीन लेने के लिए आते हैं. गूलर का तबर्रुक (प्रसाद) इसलिए कीमती माना जाता है कि साबिर पाक ने इस पेड़ को पकड़ कर तपस्या की थी. अल्लाह ने इसमें ऐसी तासीर रखी कि सबकी मुराद पूरी होती है, ये पेड़ साबिर पाक की दुआओं का सदका है.

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