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Project TIGER: 'प्रोजेक्ट टाइगर' की हकीकत, देशभर में हर 40 घंटे में एक बाघ की मौत, तेंदुए को लेकर भी चौंकाने वाला आंकड़ा - Uttarakhand Hindi Latest News

उत्तराखंड सरकार बाघ संरक्षण के लिए सालाना चार से पांच करोड़ रुपए खर्च करती है, बावजूद इसके प्रदेश में हर महीने एक बाघ की मौत हो रही है. ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या आने वाले कुछ सालों में बाघ भी डायनासोर की तरह लुप्त हो जाएंगे?

Tiger Project in Uttarakhand
उत्तराखंड में बाघों की मौत
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Published : Feb 23, 2023, 12:29 PM IST

Updated : Feb 23, 2023, 2:11 PM IST

देहरादून: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक देश में हर 40 घंटे में एक बाघ की मौत हो रही है और इस साल अब तक अलग-अलग राज्यों में 30 बाघों की मौत हो चुकी है, जिसे लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) सहित राज्यों की सरकार भी चिंतित है. दरअसल, एनटीसीए की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे खराब है और वहां इस साल जनवरी से 20 फरवरी तक सबसे ज्यादा 9 मौतें हुईं हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां पर सात बाघों की मौत हुई है.

तीसरे नंबर पर कर्नाटक और राजस्थान हैं, जहां पर तीन-तीन मौतें हुईं हैं. उत्तराखंड और असम में दो-दो और तमिलनाडु, केरल, बिहार और उत्तर प्रदेश में एक-एक बाघ की मौत एक जनवरी से 20 फरवरी के बीच हुई है. ऐसे में एनटीसीए ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वह ना केवल बाघ संरक्षण प्राधिकरण को सवालों में खड़ा कर रहा है. बल्कि यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या डायनासोर की तरह भारत में बाघ भी आने वाले कुछ सालों में लुप्त हो जाएंगे?

इतना खर्च करती है उत्तराखंड सरकार: मोदी सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के बजटीय आवंटन को 185 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2022 में 300 करोड़ रुपए कर दिया था. वहीं, उत्तराखंड सरकार भी प्रदेश में बाघ संरक्षण के लिए चार से पांच करोड़ रुपए खर्च करती है, इसके बाद भी जंगलों से बाघों की संख्या तेजी से कम हो रही है.

उत्तराखंड में बाघों की संख्या: साल 2018 में हुई बाघों की गणना के मुताबिक, देश में कुल 2967 बाघ हैं. बात उत्तराखंड की करें तो आंकड़े सुकूनदायक हैं, क्योंकि प्रदेश में बाघों की संख्या 442 है. वहीं, सबसे ज्यादा 526 बाघ मध्य प्रदेश में हैं. इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघ मौजूद हैं. एक समय था जब मध्य प्रदेश, केरल-कर्नाटक और उत्तराखंड में बाघों की संख्या बहुतायत थी. लेकिन कभी रोड एक्सीडेंट तो कभी इनके शिकार इनकी मौत की मुख्य वजह बन रही है. हलाकि अधिकारी मानते है कि प्राकृतिक मौत से सबसे अधिक बाघ मारे जा रहे हैं.
ये भी पढ़ें: World Tiger Day 2022: बाघ संरक्षण में सीटीआर अव्वल, ट्रिपल सेंचुरी की उम्मीद

उत्तराखंड में हर महीने हो रही एक बाघ की मौत: उत्तराखंड में भी हर महीने में एक बाघ की मौत हो रही है. जबकि तेंदुए की मौत का भी यही हाल है. उत्तराखंड में भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WPSI- Wildlife Protection Society of India) के प्रोग्राम मैनेजर टीटो जोजफ का कहना है कि उत्तराखंड में बाघ अधिकतर नेचुरल डेथ ही मर रहे हैं. लेकिन, ये बात भी गंभीर है कि कुमाऊं और गढ़वाल में कई जगह पर बाघों की खाल के साथ कई लोग गिरफ्तार भी हुए है. ये सभी घटना बताती हैं कि उत्तराखंड के जंगलो में भी बाघों पर शिकारियों की पैनी नजर है, जो चिंता का विषय है. उत्तराखंड के कॉर्बेट से लेकर राजाजी नेशनल पार्क में बाघ और तेंदुआ के साथ-साथ अन्य जानवरों के लिए भी अच्छा माहौल है. ऐसे में हमे शिकारियों पर शिकंजा कसना होगा.

तेंदुए भी तेजी से घट रहे: ऐसा नहीं है की देश में सिर्फ बाघों की संख्या ही घट रही है, इसी श्रेणी में आना वाला तेंदुआ भी अपनी जान से हाथ धो रहा है. NTCA की रिपोर्ट के मुताबिक-

  1. देशभर में 2001 में 167 तेंदुओं की मौत हुई थी.
  2. साल 2002 में 89
  3. 2003 में 148
  4. 2004 में 123
  5. 2005 में 200
  6. 2006 में 165
  7. 2007 में 126
  8. 2008 में 157
  9. 2009 में 165
  10. 2010 में 184
  11. 2011 में 188
  12. 2012 में 140
  13. 2013 में 111
  14. 2014 में 118
  15. 2015 में 127
  16. 2016 में 154
  17. 2017 में 159
  18. 2018 में 169
  19. 2019 में 113
  20. 2020 में 170
  21. 2021 में 182
  22. 2022 में 162
  23. और 2023 में अभी तक 25 तेंदुए मारे जा चुके हैं.

देहरादून: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक देश में हर 40 घंटे में एक बाघ की मौत हो रही है और इस साल अब तक अलग-अलग राज्यों में 30 बाघों की मौत हो चुकी है, जिसे लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) सहित राज्यों की सरकार भी चिंतित है. दरअसल, एनटीसीए की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे खराब है और वहां इस साल जनवरी से 20 फरवरी तक सबसे ज्यादा 9 मौतें हुईं हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां पर सात बाघों की मौत हुई है.

तीसरे नंबर पर कर्नाटक और राजस्थान हैं, जहां पर तीन-तीन मौतें हुईं हैं. उत्तराखंड और असम में दो-दो और तमिलनाडु, केरल, बिहार और उत्तर प्रदेश में एक-एक बाघ की मौत एक जनवरी से 20 फरवरी के बीच हुई है. ऐसे में एनटीसीए ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वह ना केवल बाघ संरक्षण प्राधिकरण को सवालों में खड़ा कर रहा है. बल्कि यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या डायनासोर की तरह भारत में बाघ भी आने वाले कुछ सालों में लुप्त हो जाएंगे?

इतना खर्च करती है उत्तराखंड सरकार: मोदी सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के बजटीय आवंटन को 185 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2022 में 300 करोड़ रुपए कर दिया था. वहीं, उत्तराखंड सरकार भी प्रदेश में बाघ संरक्षण के लिए चार से पांच करोड़ रुपए खर्च करती है, इसके बाद भी जंगलों से बाघों की संख्या तेजी से कम हो रही है.

उत्तराखंड में बाघों की संख्या: साल 2018 में हुई बाघों की गणना के मुताबिक, देश में कुल 2967 बाघ हैं. बात उत्तराखंड की करें तो आंकड़े सुकूनदायक हैं, क्योंकि प्रदेश में बाघों की संख्या 442 है. वहीं, सबसे ज्यादा 526 बाघ मध्य प्रदेश में हैं. इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघ मौजूद हैं. एक समय था जब मध्य प्रदेश, केरल-कर्नाटक और उत्तराखंड में बाघों की संख्या बहुतायत थी. लेकिन कभी रोड एक्सीडेंट तो कभी इनके शिकार इनकी मौत की मुख्य वजह बन रही है. हलाकि अधिकारी मानते है कि प्राकृतिक मौत से सबसे अधिक बाघ मारे जा रहे हैं.
ये भी पढ़ें: World Tiger Day 2022: बाघ संरक्षण में सीटीआर अव्वल, ट्रिपल सेंचुरी की उम्मीद

उत्तराखंड में हर महीने हो रही एक बाघ की मौत: उत्तराखंड में भी हर महीने में एक बाघ की मौत हो रही है. जबकि तेंदुए की मौत का भी यही हाल है. उत्तराखंड में भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WPSI- Wildlife Protection Society of India) के प्रोग्राम मैनेजर टीटो जोजफ का कहना है कि उत्तराखंड में बाघ अधिकतर नेचुरल डेथ ही मर रहे हैं. लेकिन, ये बात भी गंभीर है कि कुमाऊं और गढ़वाल में कई जगह पर बाघों की खाल के साथ कई लोग गिरफ्तार भी हुए है. ये सभी घटना बताती हैं कि उत्तराखंड के जंगलो में भी बाघों पर शिकारियों की पैनी नजर है, जो चिंता का विषय है. उत्तराखंड के कॉर्बेट से लेकर राजाजी नेशनल पार्क में बाघ और तेंदुआ के साथ-साथ अन्य जानवरों के लिए भी अच्छा माहौल है. ऐसे में हमे शिकारियों पर शिकंजा कसना होगा.

तेंदुए भी तेजी से घट रहे: ऐसा नहीं है की देश में सिर्फ बाघों की संख्या ही घट रही है, इसी श्रेणी में आना वाला तेंदुआ भी अपनी जान से हाथ धो रहा है. NTCA की रिपोर्ट के मुताबिक-

  1. देशभर में 2001 में 167 तेंदुओं की मौत हुई थी.
  2. साल 2002 में 89
  3. 2003 में 148
  4. 2004 में 123
  5. 2005 में 200
  6. 2006 में 165
  7. 2007 में 126
  8. 2008 में 157
  9. 2009 में 165
  10. 2010 में 184
  11. 2011 में 188
  12. 2012 में 140
  13. 2013 में 111
  14. 2014 में 118
  15. 2015 में 127
  16. 2016 में 154
  17. 2017 में 159
  18. 2018 में 169
  19. 2019 में 113
  20. 2020 में 170
  21. 2021 में 182
  22. 2022 में 162
  23. और 2023 में अभी तक 25 तेंदुए मारे जा चुके हैं.
Last Updated : Feb 23, 2023, 2:11 PM IST
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