देहरादून (उत्तराखंड): जोशीमठ में आयी दरारों के रहस्य को भारत सरकार के आठ संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट के जरिए खोलने की कोशिश की है. NDMA की 130 पेज की Post Disaster Need Assessment (PDNA) रिपोर्ट में दरारें आने की वजह के वैज्ञानिक कारण बताए गए हैं. इस रिपोर्ट में जोशीमठ भू धंसाव मामले पर एनटीपीसी की टनल को क्लीन चिट दी गई है. जिसके बाद बहस तेज हो गई है. रिपोर्ट में लूज मैटेरियल पर ज्यादा कंस्ट्रक्शन को भू धंसाव की वजह बताया गया है. जिसके चलते नए कंस्ट्रक्शन पर रोक लगाना जरूरी माना गया है.
भारत सरकार की आठ एजेंसियों ने तैयार की रिपोर्ट: जोशीमठ के सैकड़ों घरों में आई दरारों ने न केवल स्थानीय लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर दी, बल्कि प्रदेश और भारत सरकार को भी इसपर सोचने के लिए मजबूर कर दिया. यही कारण रहा कि एक तरफ क्षेत्र से प्रभावित लोगों को हटाए जाने का काम किया गया, तो दूसरी तरफ भारत सरकार की आठ महत्वपूर्ण एजेंसियों को इस पर अध्ययन करने की भी जिम्मेदारी दी. बहरहाल, अब इन संस्थाओं ने अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी है. इस रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद पोस्ट डिजास्टर नीड एसेसमेंट की रिपोर्ट भारत सरकार को भी भेज दी गई है.
इन एजेंसियों ने तैयार की रिपोर्ट
- केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की (Central Building Research Institute)
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI)
- वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology)
- राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (National Geophysical Research Institute)
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board)
- भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (Indian Institute of Remote Sensing)
- राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की (National Institute of Hydrology)
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (Indian Institute Of Technology Roorkee- IIT Roorkee)
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लूज मैटेरियल पर बेतरतीब निर्माण से भू धंसाव : NDMA की 130 पेज की Post Disaster Need Assessment (PDNA) रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि लूज मैटेरियल पर बसे जोशीमठ शहर में क्षमता से बेहद ज्यादा कंस्ट्रक्शन किया गया. इस क्षेत्र में ड्रेनेज सिस्टम की खामी ने भी शहर को काफी नुकसान पहुंचाया. पानी के रिसाव से लेकर अलकनंदा नदी से भू कटाव तक ने जोशीमठ में दरारों को बढ़ाने का काम किया. इन तमाम रिपोर्ट्स के बावजूद यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि जोशीमठ में अचानक बढ़ी दरारों के पीछे कौन सी वजह सबसे महत्वपूर्ण रही.
तीन जोन में बांटा गया जोशीमठ, चार जोन में घरों को बांटा: सरकार को मिली आठ संस्थाओं की इस रिपोर्ट के बाद कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए हैं. यह रिपोर्ट काफी लंबे समय से सार्वजनिक नहीं हो पाई थी. नैनीताल हाईकोर्ट के दखल देने के बाद रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया. राज्य सरकार की तरफ से विशेषज्ञों की सलाह पर जोशीमठ में मौजूद घरों को चार कैटेगरी में चिन्हित किया गया है. जिसमें ब्लैक और रेड केटेगरी में आए घरों को पूरी तरह से हटाए जाने का फैसला लिया गया है. उधर येलो केटेगरी में चिन्हित किए गए घरों का एक बार परीक्षण किया जाएगा. जोशीमठ में दरारें आने के बाद करीब 150 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है. इन्हें मुआवजा देने का काम भी हो चुका है. PDNA की रिपोर्ट के साथ ही भारत सरकार से जोशीमठ को लेकर करीब 1800 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया है. जिसमें भारत सरकार ने 1465 करोड़ का हिस्सा दिया जाएगा. भारत सरकार ने इसके लिए मंजूरी भी दे दी है.
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एनटीपीसी की टनल को क्लीन चिट: इस रिपोर्ट में पहले ही क्षमता से ज्यादा निर्माण होने की बात कही गई है. रिपोर्ट आने से पहले ही सरकार की तरफ से इस क्षेत्र में विभिन्न जोन चिन्हित किए गए. इसमें हाई रिस्क जोन क्षेत्र में सभी निर्माण हटाए जाने का भी फैसला हुआ. यही नहीं इस पूरे क्षेत्र में नए निर्माण पर भी सरकार रोक लगा चुकी है. इस सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा एनटीपीसी की उस टनल को लेकर है, जिसे इस आपदा के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा था. दरअसल, अब तक आई रिपोर्ट में एनटीपीसी की इस टनल को करीब करीब क्लीन चिट दे दी गई है. रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि टनल के कारण शहर के विभिन्न क्षेत्रों में दरार नहीं आई हैं.
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एनटीपीसी टनल क्लीन चिट पर जियोलॉजिस्ट जता रहे संदेह: स्थानीय लोग और विशेषज्ञ फिलहाल रिपोर्ट के इस अंश पर संदेह जाता रहे हैं. जोशीमठ में पहले भी इस स्थिति को लेकर अध्ययन कर चुके जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर एसपी सती कहते हैं जो रिपोर्ट आई है, उस पर संदेह किया जा सकता है, लेकिन यह बात भी सही है कि टनल का इस पूरे मामले में रोल निकलना आसान काम भी नहीं है. इतना तय है कि यदि सीधे तौर पर टनल का कोई रोल नहीं भी है तो इसके निर्माण के दौरान तमाम जल स्रोतों में आए पंचर और ब्लास्टिंग का निश्चित रूप से इन दरारों पर असर पड़ा होगा.
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जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने भी उठाये सवाल: जोशीमठ की इन दरारों को लेकर आक्रामक दिखाई देने वाले और इसके लिए क्षेत्र में आंदोलन खड़ा करने वाले और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का नेतृत्व करने वाले अतुल सती भी इस रिपोर्ट पर संदेह जाहिर कर रहे हैं. वह कहते हैं कि अब तक उन्हें यह रिपोर्ट नहीं मिली है. सवाल यह उठता है कि आखिरकार जब परियोजना बनने के दौरान ही GSI ने 2005 में इससे होने वाले नुकसान का जिक्र कर दिया था, तो अब जीएसआई की रिपोर्ट इससे भिन्न क्यों है? वह कहते हैं पानी के नमूने टनल के पानी से नहीं मिलने का तर्क दिया जा रहा है. लेकिन रिपोर्ट में यह बताया जाए कि आखिरकार जो पानी शहर में उस दौरान आया वह कहां का था?