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पीएम केयर फंड से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित - पीएम केयर्स फंड के खिलाफ याचिका

केन्द्र ने सोमवार को पीएम केयर्स कोष का पुरजोर बचाव किया. मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधानमंत्री केयर्स कोष के बारे में बयान दिया. मेहता ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिये यह ‘स्वैच्छिक योगदान’ का कोष है और राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष तथा राज्य आपदा मोचन कोष के लिये बजट में किये गये आबंटन को हाथ भी नहीं लगाया गया है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 27, 2020, 11:12 PM IST

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ के समक्ष पीएम केयर्स से जुड़े मामले की सुनवाई की गई. पीठ ने कोविड-19 महामारी के लिये इस कोष के तहत एकत्र धनराशि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष में हस्तांतरित करने के लिये गैर सरकारी संगठन की याचिका में किये गये अनुरोध पर सुनवाई पूरी करते हुये कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा.

केन्द्र ने 28 मार्च को प्रधानमंत्री केयर्स कोष का गठन किया था. इसका मुख्य उद्देश्य कोविड-19 जैसी महामारी जैसी किसी भी आपात स्थिति से निबटने के लिये धन एकत्र करना और प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करना था. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री इस कोष के पदेन अध्यक्ष हैं जबकि रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री इसके पदेन न्यासी हैं.

गैर सरकारी संगठन 'सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस' की याचिका पर सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीएम केयर्य फंड एक स्वैच्छिक कोष है जबकि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के लिये बजट के माध्यम से धन का आबंटन किया जाता है.

मेहता ने कहा, 'यह सार्वजनिक न्यास है. यह ऐसी संस्था है जिसमे आप स्वेच्छा से योगदान कर सकते हैं और एनडीआरएफ या एसडीआरएफ के बजटीय आबंटन को हाथ भी नहीं लगाया जा रहा है. इसमें जो भी खर्च करना होगा, खर्च किया जायेगा. इस मामले में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है.'

याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि वह इस कोष के सृजन का लेकर सदाशयता पर किसी प्रकार का संदेह नहीं कर रहे हैं लेकिन पीएम केयर्स फण्ड का सृजन आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों के खिलाफ है.

दवे ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट किया जाता है लेकिन सरकार ने बताया है कि पीएम केयर्स फंड का निजी ऑडिटर्स से ऑडिट कराया जायेगा. दवे ने इस कोष की वैधता पर सवाल उठाया और कहा कि यह संविधान के साथ धोखा है.

एक अन्य पक्षकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवकता कपिल सिब्बल ने कहा कि सीएसआर योगदान के सारे लाभ पीएम केयर्स फण्ड को दिये जा रहे हैं ओर वे राज्य आपदा राहत कोष के लिये इंकार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है जिस पर विस्तार से गौर करने की आवश्यकता है.

मेहता ने कहा कि 2019 में एक राष्ट्रीय योजना तैयार की गयी थी और इसमें 'जैविक आपदा' जैसी स्थिति से निबटने के तरीकों को शामिल किया गया था. उन्होंने कहा, 'उस समय किसी को भी कोविड के बारे में जानकारी नहीं थी. यह जैविक ओर जन स्वास्थ्य योजना है जो राष्ट्रीय योजना का हिस्सा है. अत: कोई राष्ट्रीय योजना नहीं होने संबंधी दलील गलत है उन्होंने कहा कि जरूरत के हिसाब से आपदा से निबटने की योजना में बदलाव किया जाता है. हमे समय समय पर अपनी योजना को अद्यतन करना होता है.

दवे ने कहा कि कोविड के लिये एक विशेष योजना तैयार की जानी चाहिए ताकि इसकी चुनौतियों का समन्वित तरीके से मुकाबला किया जा सके. शीर्ष अदालत ने 17 जून को केन्द्र को इस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था.

इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि पीएम केयर्स फण्ड में आज तक मिले धन के उपयोग के बारे में केन्द्र कोई भी जानकारी देने से बच रहा है.

याचिका में सरकार को आपदा प्रबंधन कानून के तहत राष्ट्रीय योजना बनाने, उसे अधिसूचित करने और लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ के समक्ष पीएम केयर्स से जुड़े मामले की सुनवाई की गई. पीठ ने कोविड-19 महामारी के लिये इस कोष के तहत एकत्र धनराशि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष में हस्तांतरित करने के लिये गैर सरकारी संगठन की याचिका में किये गये अनुरोध पर सुनवाई पूरी करते हुये कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा.

केन्द्र ने 28 मार्च को प्रधानमंत्री केयर्स कोष का गठन किया था. इसका मुख्य उद्देश्य कोविड-19 जैसी महामारी जैसी किसी भी आपात स्थिति से निबटने के लिये धन एकत्र करना और प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करना था. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री इस कोष के पदेन अध्यक्ष हैं जबकि रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री इसके पदेन न्यासी हैं.

गैर सरकारी संगठन 'सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस' की याचिका पर सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीएम केयर्य फंड एक स्वैच्छिक कोष है जबकि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के लिये बजट के माध्यम से धन का आबंटन किया जाता है.

मेहता ने कहा, 'यह सार्वजनिक न्यास है. यह ऐसी संस्था है जिसमे आप स्वेच्छा से योगदान कर सकते हैं और एनडीआरएफ या एसडीआरएफ के बजटीय आबंटन को हाथ भी नहीं लगाया जा रहा है. इसमें जो भी खर्च करना होगा, खर्च किया जायेगा. इस मामले में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है.'

याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि वह इस कोष के सृजन का लेकर सदाशयता पर किसी प्रकार का संदेह नहीं कर रहे हैं लेकिन पीएम केयर्स फण्ड का सृजन आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों के खिलाफ है.

दवे ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट किया जाता है लेकिन सरकार ने बताया है कि पीएम केयर्स फंड का निजी ऑडिटर्स से ऑडिट कराया जायेगा. दवे ने इस कोष की वैधता पर सवाल उठाया और कहा कि यह संविधान के साथ धोखा है.

एक अन्य पक्षकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवकता कपिल सिब्बल ने कहा कि सीएसआर योगदान के सारे लाभ पीएम केयर्स फण्ड को दिये जा रहे हैं ओर वे राज्य आपदा राहत कोष के लिये इंकार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है जिस पर विस्तार से गौर करने की आवश्यकता है.

मेहता ने कहा कि 2019 में एक राष्ट्रीय योजना तैयार की गयी थी और इसमें 'जैविक आपदा' जैसी स्थिति से निबटने के तरीकों को शामिल किया गया था. उन्होंने कहा, 'उस समय किसी को भी कोविड के बारे में जानकारी नहीं थी. यह जैविक ओर जन स्वास्थ्य योजना है जो राष्ट्रीय योजना का हिस्सा है. अत: कोई राष्ट्रीय योजना नहीं होने संबंधी दलील गलत है उन्होंने कहा कि जरूरत के हिसाब से आपदा से निबटने की योजना में बदलाव किया जाता है. हमे समय समय पर अपनी योजना को अद्यतन करना होता है.

दवे ने कहा कि कोविड के लिये एक विशेष योजना तैयार की जानी चाहिए ताकि इसकी चुनौतियों का समन्वित तरीके से मुकाबला किया जा सके. शीर्ष अदालत ने 17 जून को केन्द्र को इस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था.

इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि पीएम केयर्स फण्ड में आज तक मिले धन के उपयोग के बारे में केन्द्र कोई भी जानकारी देने से बच रहा है.

याचिका में सरकार को आपदा प्रबंधन कानून के तहत राष्ट्रीय योजना बनाने, उसे अधिसूचित करने और लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

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