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मालाबार नौसैनिक अभ्यास : जानें, चीन और ऑस्ट्रेलिया में से किसे चुनेगा भारत - ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित

मालाबार नौसैनिक अभ्यास के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करना है या नहीं इस बात को लेकर रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी के साउथ ब्लॉक में बैठक की. बैठक में आस्ट्रेलिया को बुलावा देने पर फैसला लिया जाना था लेकिन इसका निर्णय नहीं हो सका. आस्ट्रेलिया को अभ्यास में शामिल करने को लेकर पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट...

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Published : Jul 19, 2020, 8:35 PM IST

नई दिल्ली : मालाबार नौसैनिक अभ्यास के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करना है या नहीं, इस बात को लेकर रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी के साउथ ब्लॉक में बैठक की. बैठक में आस्ट्रेलिया को शामिल करने और न करने को लेकर काफी हंगामा भी हुआ. हंगामें के कारण इस बैठक में भी फैसला नहीं हो सका है. हालांकि आने वाले सप्ताह में इस पर निर्णय लिए जाने की संभावना है. यह फैसला चरणबद्ध तरीके से कई स्तर पर लिया जाएगा.

खबर के मुताबिक, भारतीय नौसेना, रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और उसके बाद शीर्ष स्तर पर राजनीतिक नेतृत्व से अनुमति के बाद अंतिम फैसला लेंगे.

एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि फिलहाल हम पहले और दूसरे स्तर पर हैं, लेकिन अंत में यह निर्णय राजनेताओं द्वारा लिया जाएगा.

नौसेना वार्ता के पहले स्तर पर कोई समस्या नहीं है और इंटरऑपरेबिलिटी की भी कोई समस्या नहीं है, क्योंकि पहले ही ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के साथ भारत-ऑस्ट्रेलिया नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX) में संयुक्त अभ्यास कर रहे हैं, जिसमें पिछले साल पनडुब्बियों की भी भागीदारी देखी गई थी.

द्विपक्षीय भारत-ऑस्ट्रेलिया नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX) 2015 में शुरू हुआ, लेकिन 2019 में इसको बड़े पैमाने पर किया गया.

मालाबार नौसैनिक अभ्यास, जो 1992 में द्विपक्षीय भारत-अमेरिकी नौसैनिक अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था, 2015 में जापान के प्रवेश के साथ एक त्रिपक्षीय मामला बन गया.

2007 में ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर ने बंगाल की खाड़ी में हुए अभ्यास में गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में भाग लिया, जिसके बाद चीन ने इसे 'चीन विरोधी' अभ्यास के रूप में देखा.

भारत नहीं चाहता ऑस्ट्रेलिया शामिल हो !

यह भारत की अनिच्छा ही है, जिसने ऑस्ट्रेलियाई प्रवेश को रोक रखा है, जबकि अमेरिका और जापान, ऑस्ट्रेलिया में रोपिंग को लेकर काफी उत्साहित लग रहे हैं.

भारत की अनिच्छा के पीछे तीन मुख्य कारण हो सकते हैं :-

सबसे पहला, यह जग जाहिर है कि चीन चार देशों- भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के क्वाड से नाखुश है. साथ ही चीन इस बार झगड़ालू व्यवहार दिखाकर विरोध प्रदर्शन दिखाना चाहता है. लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव के कारण भारत-चीन संबंध नाजुक मोड़ पर हैं. अगर भारत, ऑस्ट्रेलिया को क्वाड में शामिल करना चाहता है तो उसे चीनी विरोध को नजरअंदाज करना होगा.

साथ ही, सीमा पर विघटन और डी-एस्केलेशन पर केंद्रित सैन्य, राजनयिक, विशेष प्रतिनिधि और राजनीतिक स्तरों पर भारत-चीन के बीच चर्चा जारी है.

दिलचस्प बात यह है कि भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने अब तक सीधे तौर पर चीन का नाम नहीं लिया है. वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसा को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है.

इसलिए दोनों देशों के बीच हो रही वार्ता के बाद हो सकता है कि भारत पहले की तरह ऑस्ट्रेलिया को फिर से आमंत्रित करने का जोखिम न उठाए और चीन के साथ संबंध बेहतर बनाने की संभावनाओं को तलाशने का विकल्प चुने.

भारत की अनिच्छा के पीछे दूसरा पहलू यह भी है कि रूस ने आधिकारिक तौर पर 'मालाबार नौसैनिक अभ्यास' पर आपत्ति नहीं जताई है. ऐसे में संभावना है कि ऑस्ट्रेलिया के आने और 'क्वाड' को आकार देने से भारत की पारंपरिक गुटनिरपेक्ष भूमिका समाप्त हो जाएगी और इससे अमेरिकी गुट में स्थान मिल जाएगा. रूस-चीन सहयोग पहले से ही मजबूत हो चुके हैं. ऐसे में रूस के साथ भारत के संबंध रक्षा सौदों के बावजूद काफी खराब हो सकते हैं.

पढ़ें - विवाद के बीज बो रहा अमेरिका : चीनी विदेश मंत्रालय

अब तक, क्वाडरीलेटेरियल सुरक्षा संवाद या QSD, 2017 में शुरू हुए चारों देशों के बीच एक अनौपचारिक रणनीतिक सौदा बनकर रह जाएगा.

तीसरा यह कि 'मालाबार नौसैनिक अभ्यास 2007' में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी पर चीन की आपत्तियों के बाद, भारत क्वाड के लिए ऑस्ट्रेलिया की प्रतिबद्धता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है.

बता दें कि ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री स्टीफन स्मिथ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि यह अभ्यास एक 'आदेश' था और इस तरह के संवाद में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा. ऑस्ट्रेलिया की यह छाप भारत पर हावी हो सकती है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'मालाबार अभ्यास 2020' में ऑस्ट्रेलिया का समावेश या बहिष्कार 'क्वाड' की स्थिति के लिए एक अग्रदूत है, जो कि सामान्य रूप से वैश्विक स्तर पर और विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक में भू-रणनीति को फिर से खोलने की क्षमता के साथ एक नया संरेखण है.

नई दिल्ली : मालाबार नौसैनिक अभ्यास के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करना है या नहीं, इस बात को लेकर रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी के साउथ ब्लॉक में बैठक की. बैठक में आस्ट्रेलिया को शामिल करने और न करने को लेकर काफी हंगामा भी हुआ. हंगामें के कारण इस बैठक में भी फैसला नहीं हो सका है. हालांकि आने वाले सप्ताह में इस पर निर्णय लिए जाने की संभावना है. यह फैसला चरणबद्ध तरीके से कई स्तर पर लिया जाएगा.

खबर के मुताबिक, भारतीय नौसेना, रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और उसके बाद शीर्ष स्तर पर राजनीतिक नेतृत्व से अनुमति के बाद अंतिम फैसला लेंगे.

एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि फिलहाल हम पहले और दूसरे स्तर पर हैं, लेकिन अंत में यह निर्णय राजनेताओं द्वारा लिया जाएगा.

नौसेना वार्ता के पहले स्तर पर कोई समस्या नहीं है और इंटरऑपरेबिलिटी की भी कोई समस्या नहीं है, क्योंकि पहले ही ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के साथ भारत-ऑस्ट्रेलिया नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX) में संयुक्त अभ्यास कर रहे हैं, जिसमें पिछले साल पनडुब्बियों की भी भागीदारी देखी गई थी.

द्विपक्षीय भारत-ऑस्ट्रेलिया नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX) 2015 में शुरू हुआ, लेकिन 2019 में इसको बड़े पैमाने पर किया गया.

मालाबार नौसैनिक अभ्यास, जो 1992 में द्विपक्षीय भारत-अमेरिकी नौसैनिक अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था, 2015 में जापान के प्रवेश के साथ एक त्रिपक्षीय मामला बन गया.

2007 में ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर ने बंगाल की खाड़ी में हुए अभ्यास में गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में भाग लिया, जिसके बाद चीन ने इसे 'चीन विरोधी' अभ्यास के रूप में देखा.

भारत नहीं चाहता ऑस्ट्रेलिया शामिल हो !

यह भारत की अनिच्छा ही है, जिसने ऑस्ट्रेलियाई प्रवेश को रोक रखा है, जबकि अमेरिका और जापान, ऑस्ट्रेलिया में रोपिंग को लेकर काफी उत्साहित लग रहे हैं.

भारत की अनिच्छा के पीछे तीन मुख्य कारण हो सकते हैं :-

सबसे पहला, यह जग जाहिर है कि चीन चार देशों- भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के क्वाड से नाखुश है. साथ ही चीन इस बार झगड़ालू व्यवहार दिखाकर विरोध प्रदर्शन दिखाना चाहता है. लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव के कारण भारत-चीन संबंध नाजुक मोड़ पर हैं. अगर भारत, ऑस्ट्रेलिया को क्वाड में शामिल करना चाहता है तो उसे चीनी विरोध को नजरअंदाज करना होगा.

साथ ही, सीमा पर विघटन और डी-एस्केलेशन पर केंद्रित सैन्य, राजनयिक, विशेष प्रतिनिधि और राजनीतिक स्तरों पर भारत-चीन के बीच चर्चा जारी है.

दिलचस्प बात यह है कि भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने अब तक सीधे तौर पर चीन का नाम नहीं लिया है. वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसा को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है.

इसलिए दोनों देशों के बीच हो रही वार्ता के बाद हो सकता है कि भारत पहले की तरह ऑस्ट्रेलिया को फिर से आमंत्रित करने का जोखिम न उठाए और चीन के साथ संबंध बेहतर बनाने की संभावनाओं को तलाशने का विकल्प चुने.

भारत की अनिच्छा के पीछे दूसरा पहलू यह भी है कि रूस ने आधिकारिक तौर पर 'मालाबार नौसैनिक अभ्यास' पर आपत्ति नहीं जताई है. ऐसे में संभावना है कि ऑस्ट्रेलिया के आने और 'क्वाड' को आकार देने से भारत की पारंपरिक गुटनिरपेक्ष भूमिका समाप्त हो जाएगी और इससे अमेरिकी गुट में स्थान मिल जाएगा. रूस-चीन सहयोग पहले से ही मजबूत हो चुके हैं. ऐसे में रूस के साथ भारत के संबंध रक्षा सौदों के बावजूद काफी खराब हो सकते हैं.

पढ़ें - विवाद के बीज बो रहा अमेरिका : चीनी विदेश मंत्रालय

अब तक, क्वाडरीलेटेरियल सुरक्षा संवाद या QSD, 2017 में शुरू हुए चारों देशों के बीच एक अनौपचारिक रणनीतिक सौदा बनकर रह जाएगा.

तीसरा यह कि 'मालाबार नौसैनिक अभ्यास 2007' में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी पर चीन की आपत्तियों के बाद, भारत क्वाड के लिए ऑस्ट्रेलिया की प्रतिबद्धता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है.

बता दें कि ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री स्टीफन स्मिथ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि यह अभ्यास एक 'आदेश' था और इस तरह के संवाद में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा. ऑस्ट्रेलिया की यह छाप भारत पर हावी हो सकती है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'मालाबार अभ्यास 2020' में ऑस्ट्रेलिया का समावेश या बहिष्कार 'क्वाड' की स्थिति के लिए एक अग्रदूत है, जो कि सामान्य रूप से वैश्विक स्तर पर और विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक में भू-रणनीति को फिर से खोलने की क्षमता के साथ एक नया संरेखण है.

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