ETV Bharat / bharat

अनिर्णय व कुप्रबंध के कारण नहीं बन सके दुर्गम क्षेत्रों में सैनिक आवास

author img

By

Published : Aug 10, 2020, 10:32 PM IST

Updated : Aug 11, 2020, 6:21 AM IST

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर गतिरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव को कम करने के लिए सैन्य, राजनयिक और प्रतिनिधि स्तरों पर बातचीत हुई है, लेकिन यह बातचीत अब तक सीमा पर तनाव को कम करने में विफल साबित हुई है. इससे आसार दिख रहे हैं कि सेना को आने वाले दिनों में भी ऊंचाई वाले स्थानों पर रहना पड़ सकता है. आने वाले दिनों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ठंड काफी बढ़ जाएगी. इस वजह से सेना को रसद और बुनियादी चीजों की जरूरत होगी. पढ़िए, हमारे वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

high-altitude shelter plan for Indian soldiers
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद

नई दिल्ली : वर्तमान में भारत और चीन के बीच सीमा पर सैन्य तनाव असमान छू रहा है. इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है और आगे भी कम होने के संकेत नहीं दिख रहे हैं, जिससे भारतीय सैनिकों को शीत ऋतु में भी ऊंचाई वाले स्थानों पर रहना पड़ सकता है. शीत ऋतु में यहां पर हाड़कपाती ठंड पड़ती है. इससे बचने के लिए सेना को रसद और बुनियादी चीजों की जरूरत होगी. ऐसे में अगर सरकार भारतीय सेना को उचित व्यवस्था मुहैया करवाती है, तो इससे सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा.

लोक लेखा समित (एक प्रमुख संसदीय स्थायी समिति) ने सोमवार को एक बैठक में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा हाल ही में प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार किया. कैग की यह रिपोर्ट सेना से जुड़े सौदों में देरी की एक घिनौनी कहानी बयां करती है. साथ ही सरकार के अनिर्णय और दोषपूर्ण प्रबंध के कारण अधिक ऊचांई पर तैनात सैनिकों के आवास और रहने की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है.

सेना की आवास योजना को 13 वर्ष के पूर्व स्थगित कर दी गई थी. वहीं तीन पायलट परियोजनाओं पर जबर्दस्त खर्च का प्रयास किया गया. इसकी 274.11 करोड़ रुपये की लागत आई थी, जब नवंबर 2017 में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) ने इस परियोजना को बंद कर दिया.

अगस्त 2019 में मुख्य निर्माण अभियंता (केंद्रीय आयुध डिपो से), जिन्होंने पायलट परियोजनाओं को निष्पादित किया था. उसने राष्ट्रीय लेखा परीक्षक कैग को एक रिपोर्ट में कहा था कि मुख्य परियोजना के बंद होने के कारणों का पता नहीं चल पाया है.

अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जलवायु चुनौतियों का सामना करने के लिए फाइबर युक्त प्लास्टिक (FRP) या फाइबर ग्लास हट्स (FGH), बिजली, हीटिंग, पानी की आपूर्ति आदि सहायक सेवाएं सेनाओं को प्रदान की जाती हैं.

साल 2007 में भारतीय सेना ने रहने की जगह में सुधार करने के लिए आश्रय के लिए एक मानक प्रारूप, फंड की आवश्यकता और पूर्णता के लिए एक समय सीमा विकसित करन के लिए उत्तरी कमान के मुख्य अभियंता की देखरेख में एक अध्ययन किया था.

इसके बाद अप्रैल 2008 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. रिपोर्ट में पूरी परियोजना के लिए 3,180 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत बताई गई थी, जो पांच साल में पूरी होनी थी.

रक्षा मंत्रालय द्वारा अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उभरती प्रौद्योगिकियों की प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए 95 करोड़ रुपये की लागत से एक पायलट प्रोजेक्ट (चरण-1) के साथ प्रयास शुरू करने का निर्णय किया गया था. चौंकाने वाली बात यह है कि रक्षा मंत्रालय ने इसमें चयनात्मक निविदा का प्रावधान किया था.

दिलचस्प बात यह है कि जब अक्टूबर 2007 में अध्ययन शुरू किया गया था, तो एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी द्वारा इसी वर्ष एक कंसल्टेंसी फर्म की स्थापना की गई थी, जिसने पायलट प्रोजेक्ट का अधिकार प्राप्त किया था. बाद के चरणों के लिए भी कंसल्टेंसी एग्रीमेंट उसी फर्म को दिया गया था.

भारतीय सेना के जवान, जो अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात हैं. यहां पर ऑक्सीजन की कमी और अधिक ठंड होती है. ऐसे में सेना के जवानों को शेल्टर में रखा जाता सकता है. इसके अलावा लद्दाख क्षेत्र के आस-पास में सैनिकों को ठंड से बचाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जा सकते हैं.

नई दिल्ली : वर्तमान में भारत और चीन के बीच सीमा पर सैन्य तनाव असमान छू रहा है. इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है और आगे भी कम होने के संकेत नहीं दिख रहे हैं, जिससे भारतीय सैनिकों को शीत ऋतु में भी ऊंचाई वाले स्थानों पर रहना पड़ सकता है. शीत ऋतु में यहां पर हाड़कपाती ठंड पड़ती है. इससे बचने के लिए सेना को रसद और बुनियादी चीजों की जरूरत होगी. ऐसे में अगर सरकार भारतीय सेना को उचित व्यवस्था मुहैया करवाती है, तो इससे सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा.

लोक लेखा समित (एक प्रमुख संसदीय स्थायी समिति) ने सोमवार को एक बैठक में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा हाल ही में प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार किया. कैग की यह रिपोर्ट सेना से जुड़े सौदों में देरी की एक घिनौनी कहानी बयां करती है. साथ ही सरकार के अनिर्णय और दोषपूर्ण प्रबंध के कारण अधिक ऊचांई पर तैनात सैनिकों के आवास और रहने की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है.

सेना की आवास योजना को 13 वर्ष के पूर्व स्थगित कर दी गई थी. वहीं तीन पायलट परियोजनाओं पर जबर्दस्त खर्च का प्रयास किया गया. इसकी 274.11 करोड़ रुपये की लागत आई थी, जब नवंबर 2017 में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) ने इस परियोजना को बंद कर दिया.

अगस्त 2019 में मुख्य निर्माण अभियंता (केंद्रीय आयुध डिपो से), जिन्होंने पायलट परियोजनाओं को निष्पादित किया था. उसने राष्ट्रीय लेखा परीक्षक कैग को एक रिपोर्ट में कहा था कि मुख्य परियोजना के बंद होने के कारणों का पता नहीं चल पाया है.

अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जलवायु चुनौतियों का सामना करने के लिए फाइबर युक्त प्लास्टिक (FRP) या फाइबर ग्लास हट्स (FGH), बिजली, हीटिंग, पानी की आपूर्ति आदि सहायक सेवाएं सेनाओं को प्रदान की जाती हैं.

साल 2007 में भारतीय सेना ने रहने की जगह में सुधार करने के लिए आश्रय के लिए एक मानक प्रारूप, फंड की आवश्यकता और पूर्णता के लिए एक समय सीमा विकसित करन के लिए उत्तरी कमान के मुख्य अभियंता की देखरेख में एक अध्ययन किया था.

इसके बाद अप्रैल 2008 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. रिपोर्ट में पूरी परियोजना के लिए 3,180 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत बताई गई थी, जो पांच साल में पूरी होनी थी.

रक्षा मंत्रालय द्वारा अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उभरती प्रौद्योगिकियों की प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए 95 करोड़ रुपये की लागत से एक पायलट प्रोजेक्ट (चरण-1) के साथ प्रयास शुरू करने का निर्णय किया गया था. चौंकाने वाली बात यह है कि रक्षा मंत्रालय ने इसमें चयनात्मक निविदा का प्रावधान किया था.

दिलचस्प बात यह है कि जब अक्टूबर 2007 में अध्ययन शुरू किया गया था, तो एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी द्वारा इसी वर्ष एक कंसल्टेंसी फर्म की स्थापना की गई थी, जिसने पायलट प्रोजेक्ट का अधिकार प्राप्त किया था. बाद के चरणों के लिए भी कंसल्टेंसी एग्रीमेंट उसी फर्म को दिया गया था.

भारतीय सेना के जवान, जो अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात हैं. यहां पर ऑक्सीजन की कमी और अधिक ठंड होती है. ऐसे में सेना के जवानों को शेल्टर में रखा जाता सकता है. इसके अलावा लद्दाख क्षेत्र के आस-पास में सैनिकों को ठंड से बचाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जा सकते हैं.

Last Updated : Aug 11, 2020, 6:21 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.