छोटे बच्चों को पौष्टिक भोजन खिलाना कई बार माता-पिता के लिए टेढ़ी खीर बन जाता है क्योंकि भोजन को खिलाने के तरीको व उससे जुड़ी आदतों को लेकर माता-पिता कई बार भ्रमित हो जाते हैं. यह सही है कि छोटे बच्चे अक्सर घर का खाना खाने में नखरे करते हैं, ऐसे में बच्चों को स्वस्थ खाने की आदत डलवाना न सिर्फ भारतीय बल्कि दुनिया भर के माता-पिता के लिए मुश्किल होता है. ऐसी अवस्था में बहुत जरूरी है की माता-पिता ऐसे प्रयास करें की बच्चे स्वस्थ आहार की जरूरत को समझते हुए उन्हे अपने नियमित जीवन में अपनाए. अपने विशेषज्ञों की सलाह पर ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ साँझा कर रहा है कुछ ऐसे ही भ्रम तथा उनसे जुड़े तथ्य तथा खानपान संबंधी आदतों से जुड़ी जानकारियाँ , जिन्हे अपनाकर माता-पिता अपने बच्चों में स्वस्थ्य खानपान की आदतों का विकास कर सकते हैं.
बच्चों की भोजन आदतों से जुड़े भ्रम और तथ्य
- खाना बनाने में बच्चों को करें शामिल
इंदौर, मध्यप्रदेश की शेफ तथा बच्चों के लिए कुकिंग क्लास व वर्कशॉप आयोजित करने वाली शेफ दीपाली खण्डेलवाल बताती हैं कि यह सही है कि बच्चे को जो चीज नापसंद है वह उसे बिल्कुल नही खातें हैं. लेकिन इस प्रवत्ति से बचने तथा बच्चों में खाने की अच्छी आदतों के विकास के लिए जरूरी है की माता--पिता बच्चों में भोजन से जुड़ी स्वस्थ आदतों के विकास के लिए प्रयास करें. जैसे नियमित तौर पर माता-पिता बच्चों साथ बैठ कर भोजन करें तथा उन्हे हरी पत्तेदार सब्जियां, नट्स, स्प्राउट्स तथा अन्य वस्तुओं से बने पौष्टिक आहार की जरूरत से वाकिफ कराएं. बहुत जरूरी है कि बच्चों को जिद या गुस्से से नहीं बल्कि प्यार से हर भोजन का स्वाद लेने के लिए प्रेरित करें जिससे उन्हे सभी प्रकार के भोजन का स्वाद पता हो.
आमतौर पर बच्चे सिर्फ भोजन की शक्ल देखकर उन्हे खाने से मना कर देते हैं जबकि उन्हे उन वस्तुओं का स्वाद भी पता नही होता है. इसके अतिरिक्त घर का राशन, सब्जियां तथा फल खरीदते समय बच्चे को भी साथ लेकर जाएं तथा उन्हे रंगों, बनावट और कई बार खुशबू के आधार पर सेहतमंद खाद्य पदार्थ चुनने के लिए प्रोत्साहित करें. जब बच्चे स्वयं खाना बनाने की प्रक्रिया में किसी भी तरह से भागेदारी करते हैं तो वह ज्यादा उत्साह के साथ भोजन ग्रहण भी करते हैं.
- संतुलित और सही मात्रा में भोजन जरूरी
आमतौर पर माता-पिता को लगता है की चूंकि बच्चे को विकास के लिए ज्यादा पोषण की जरूरत होती है इसलिए वे जितना ज्यादा आहार ग्रहण करेंगे , उतना ही उनका विकास बेहतर होगा और वे स्वस्थ होंगे , जो सही नही है. जरूरत से ज्यादा भोजन फायदे की बजाय नुकसान भी पहुँचा सकता है. निर्धारित मात्रा में और नियमित समय पर संतुलित मात्रा में भोजन बच्चों को मोटापे तथा अन्य पाचन संबंधी समस्याओं से तो बचाता ही है साथ है उन्हे जरूरी मात्रा में पोषण भी पहुंचाता है. वहीं बच्चे की शरीर की जरूरत से अनजान कई माता-पिता उन्हे ज्यादा शक्कर, घी तथा तेल से बना खाना खिलाना बेहतर मानते हैं. जो बिल्कुल गलत है.
डॉ लतिका जोशी बताती हैं कि आयु चाहे जो भी हो हद से ज्यादा मीठा, तथा तला भुना भोजन बच्चे को मधुमेह तथा मोटापे सहित कई गंभीर रोग भी दे सकता हैं. इस तरह के आहार का सिर्फ उन्हे शारीरिक स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य तथा व्यवहार पर भी असर पड़ता है और उनमें हाईपर एक्टिविटी, मूड स्विंग, गुस्सा, चिड़चिड़ापन आदि समस्याएं नजर आ सकती हैं. निसन्देह बच्चों को मीठा ज्यादा पसंद होता है ऐसे में उन्हे फल या ड्राई फ्रूट खिलाना ज्यादा स्वास्थ्यकारी विकल्प होता है.
डॉ जोशी बताती हैं कि आमतौर पर माता-पिता को शिकायत रहती है की हमारा बच्चा तो बहुत कम खाना खाता है. दरअसल हर बच्चे की भूख अलग होती है जो उम्र के साथ बदलती रहती है. अगर आपके बच्चे का वज़न और कद सही है तो इसका मतलब है कि वह पर्याप्त मात्रा में भोजन कर रहा है. लेकिन यदि बच्चे का विकास सही ढंग से नहीं हो रहा है तो अवश्य चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए.
- जूस से बेहतर है फलों का सेवन
पोषण विशेषज्ञ डॉ संगीता मालू बताती हैं कि आमतौर पर माता-पिता को लगता है कि बच्चों को जूस पिलाना जरूरी है भले ही वह फल खाए या नहीं. दरअसल फलों का सेवन जूस के मुकाबले काफी ज्यादा फायदा पहुंचाता है क्योंकि जूस की तुलना में फलों से ज़्यादा फ़ाइबर तथा अन्य पोषक तत्व मिलते हैं. वे बताती हैं कि कोल्ड ड्रिंक या अन्य पेय पदार्थों के मुकाबले निसन्देह जूस ज्यादा बेहतर विकल्प होता है, लेकिन फलों का सम्पूर्ण पोषण उनका सेवन करने से ही मिलता है क्योंकि जूस में फाइबर तथा अन्य पोषक तत्वों की मात्रा कम हो जाती है.
कई बार जब बच्चे सब्जी और फल खाने में आनाकानी करने लगते हैं तो अक्सर माएं उन्हे सॉस या अन्य माध्यम से छिपाकर सब्जियां खिलाने का प्रयास करते हैं. यही नही कई बार माताएं लौकी जैसी सब्जियों या दाल को पीस कर उनका आटा बनाकर उनकी रोटियाँ बच्चों को खिलाने का प्रयास करती है. डॉ मालू बताती हैं कि जायका बदलने के लिए ऐसा करना गलत नही है लेकिन सिर्फ बच्चों को उनकी नापसंद वाला भोजन खिलाने के लिए ऐसा करना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से बच्चे उक्त सब्जी य दाल के महत्व को नहीं समझते हैं. वे बताती हैं कि बहुत जरुरी है की अपने बच्चों को प्रत्येक खाद्य समूह के पोषण के बारे में बताएं और उन्हे बनाते समय बच्चों को रसोई के कामों में मदद करने के लिए कहें, जिससे वे सब्जियों तथा भोजन को बनाने की प्रक्रिया में शामिल हो सकें. ऐसा करने से वे भोजन को लेकर आकर्षित होंगे और उसे खाने में कम नखरे करेंगे.
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