अपनी तासीर और गुणों के चलते, चिकित्सीय कारणों से सरसों के तेल को घरेलू नुस्खों और आयुर्वेद में प्राथमिकता दी जाती है। ऐंटिफंगल, ऐंटिबैक्टीरियल और ऐंटिइंफ्लामेट्री गुणों से भरपूर सरसों के तेल में बना भोजन न सिर्फ स्वादिष्ट होता है साथ ही कई बीमारियों से बचाने में भी सक्षम होता है। सिर्फ आयुर्वेद ही नहीं, पोषण विशेषज्ञों का भी मानना है की जिन घरों में तीनों समय का खाना शुद्ध सरसों के तेल में बनाया जाता उन घर में लोग रिफाइंड और दूसरे तेल खाने वाले लोगों की तुलना में कम बीमार पड़ते हैं।
आयुर्वेद की माने तो सरसों के तेल की तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में इसका सेवन ज्यादा फायदेमंद होता है। सरसों का तेल ग्राही अर्थात् मल बांधने और कब्ज दूर करने वाले, दोनों ही गुणों से युक्त माना गया है। यह तेल सिर्फ खाने में ही फायदेमंद नहीं होता है बल्कि उसका बाहरी उपयोग भी न सिर्फ हमारी त्वचा बल्कि बालों को भी फायदा पहुंचाता है। हमारे आयुर्वेदिक विशेषज्ञ, डॉ. पी वी रंगनायकुलु, आयुर्वेद के इतिहास के पीएचडी ने इसके बारे में और क्या जानकारी दी, आइये देखते हैं|
कैसे बनता है सरसों का तेल और उसके उपयोग
सरसों का तेल सरसों के बीजों से निकाला जाता है, जिसे हम भारत में आम भाषा में राई बोलते हैं। इसका इस्तेमाल उत्तर प्रदेश और बंगाल में ज्यादा किया जाता है, लेकिन पूरे भारत में अचार बनाने में आमतौर पर सरसों के तेल का ही इस्तेमाल किया जाता है।
शरीर और सिर की मालिश के लिए भी सरसों का तेल आदर्श माना जाता है। इसके अतिरिक्त दवाओं, साबुन और लुब्रिकेंट बनाने में भी इस तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं तेल निकलने के बाद बचा हुआ सरसों का खड़ पशुओं के लिए चारे के रूप और खाद बनाने में प्रयुक्त होता है।
सरसों के तेल के पोषक तत्व
सरसों के तेल में 60 % मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होते हैं, जिनमें 42 % ईरूसिक एसिड तथा 12 % ओलेइक एसिड होते हैं, तथा पोली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड जिनमें 6% ओमेगा-3 फैटी एसिड और 15% ओमेगा-6 फैटी एसिड होते हैं। सरसों के तेल में लगभग 12 % सैचुरेटेड एसिड होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें ऐंटिफंगल, ऐंटिबैक्टीरियल और ऐंटिइंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं।
माना जाता है की यदि शुद्ध सरसों के तेल का सेवन किया जाए तो न सिर्फ हमारा शरीर इस तेल को आसानी से पचा लेता है, बल्कि यह तेल हमारे गट (आंत) के बैक्टीरिया को लाभ पहुंचाता है और पाचनतंत्र की मरम्मत करने का काम करता है। इसके अतिरिक्त इसके सेवन से हानिकारक एलडीएल नामक कोलेस्ट्रॉल कम होता है और फायदेमंद कोलेस्ट्रॉल एचडीएल में वृद्धि होती है। अतः यह दिल की सेहत के लिए भी अच्छा होता है। यह गुर्दे स्वस्थ रखता है तथा थायराइड की समस्या से भी बचाता है।
सरसों के तेल के फायदे
- सरसों के तेल में बना खाना शरीर में अन्य तेलों में बने भोजन के मुकाबले जल्दी और आसानी से पचता है। यही कारण है कि जो लोग इस तेल से बने भोजन का सेवन करते हैं, उन्हें कब्ज की शिकायत कम होती है।
- सरसों के तेल में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं। यह मूत्र प्रक्रिया को दुरुस्त रखने के साथ ही आँतों तथा पाचन तंत्र संबंधित संक्रमणों को दूर करने में सक्षम होता है।
- यह भूख बढ़ाता है और लिवर तथा आमाशय के रस में वृद्धि करके पाचन क्रिया सुचारु करता है।
- त्वचा पर इसका उपयोग उसे फ्री-रेडिकल के नुकसान, अल्ट्रा वॉइलेट किरणों तथा प्रदुषण से बचाने में मदद करता है। साथ ही यह झुर्रियों से भी बचाता है। इसलिए पारंपरिक उबटन में भी इसका उपयोग होता है।
- सरसों के तेल की मालिश से रक्त संचार बढ़ता है जिसके कारण महत्वपूर्ण अंगों को रक्त के माध्यम से भरपूर ऑक्सीजन मिलती है।
- इससे तनाव दूर होता है। माँसपेशी के अधिक उपयोग से होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
- यह एंटी फंगल की तरह काम करता है। यह फंगस मिटाता और इसे बढ़ने से रोकता भी है।
- बालों के लिए सरसों का तेल बहुत लाभदायक होता है। इसमें मौजूद लिनोलिक एसिड जैसे फैटी एसिड बालों की जड़ों को पोषण देते हैं। लम्बे समय तक इसका उपयोग बालों का गिरना मिटा देता है।
हालांकि, डॉ. रंगनायकुलु का कहना है कि जो लोग एसिडिटी, गैस्ट्राइटिस या ब्लीडिंग डिसऑर्डर से पीड़ित हैं, उन्हें सरसों के तेल के सेवन से बचना चाहिए।