वाराणसीः आज पूरा वर्ल्ड विश्व पर्यावरण दिवस मना रहा है. ऐसे में वाराणसी में भी जल्द ही लोगों को प्रकृति का भरपूर आनंद मिलने वाला है. वेट लैंड विकसित करने के साथ मियावाकी तकनीक से जंगल बसाया जाएगा. जिससे पर्यावरण संरक्षण को मदद मिलेगी और ईको टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा.
जापान की मियावाकी तकनीक बनी वनों के लिए वरदान
इस बाबत डीएफओ महावीर कलौजगी ने बताया कि जापान की मियावाकी तकनीक से 10 गुना तेजी से पौधे विकसित होते हैं और 30 गुना ज्यादा घने जंगल बन जाते हैं. बायोडाइवर्स और ऑर्गेनिक महत्व भी 100 गुना बढ़ जाता है. इस तकनीक में पानी का भी कम इस्तेमाल होता है. हवा की क्वालिटी अच्छी हो जाती है. उन्होंने बताया कि मियावाकी तकनीक में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही जंगल का पूरा ईको सिस्टम विकसित होता है. पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पशु-पक्षी इस ईको सिस्टम में खुद ही आ जाते हैं. जापान के वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी के नाम पर इस तकनीक का नाम मियावाकी पड़ा है. वाराणसी में कुछ जगह प्रयोग किया जा चुका है. डोमरी गांव में रेलवे ब्रिज के नीचे इसी तकनीक से एक घने जंगल का निर्माण किया गया है. जिसका परिणाम बेहद सकारात्मक रहा है. इसके साथ ही शहर के कुछ अन्य स्थानों पर इसी तकनीक के द्वारा वृक्षारोपण का काम किया गया है. जिससे इको टूरिज्म को बढ़ावा मिले, साथ ही पर्यावरण हमारा संरक्षित रहे. इसी क्रम में उंदी गांव में भी इस तकनीक से इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए विकास प्राधिकरण के तत्वावधान में वन विभाग के सहयोग से वहां पर भी मियावाकी तकनीक से एक जंगल का निर्माण किया जा रहा है. ये पर्यावरण संरक्षण करने के साथ-साथ पक्षियों और जानवरों के लिए भी काफी हितकारी होगा.
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नेचर लवर्स के लिए अनूठा होगा अल्टरनेटिव टूरिज्म स्पॉट
वाराणसी मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर उंदी गांव में पर्यावरण पर्यटन के लिए जंगल विकसित किये जाने की योजना पर योगी सरकार अब तेजी से काम कर रही है. जापान की मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल इस नेचुरल फॉरेस्ट को बनाने में किया जाएगा. इस क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त रखे जाने के साथ पर्यावरण संरक्षण बनाए रखने के लिए वेट लैंड (वाटर बॉडी) कम फारेस्ट के रूप में विकसित किया जाएगा. अब धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में पर्यटक नैसर्गिक जंगल का भी मजा ले पाएंगे.
वाराणसी में नेचर लवर्स के लिए ईको टूरिज्म और अल्टरनेटिव टूरिज्म के लिए ये पहली जगह होगी, जो जापान की मियावाकी तकनीक पर आधारित होगी. ये पर्यावरण संरक्षण में काफी मददगार साबित होगी. उन्होंने इसकी खासियत बताते हुए कहा कि बांस के वृक्षों की नेचुरल फेंसिंग के बीच जंगल का प्राकृतिक रूप ऐसा होगा कि आप प्रकृतिक सौन्दर्य का पूरा आनंद ले पाएंगे. पहले से मौजूद करीब 5 से 6 तालाबों को विकसित किया जा रहा है. जहां पर्यटकों को प्रवासी पक्षियों की चहक सुनाई देगी. साईकिलिंग के लिए ट्रैक, पैदल पथ, वैटलैंड, बर्ड डाइवर्सिटी जोन, यहां लकड़ी के पुल से आप प्राकृतिक झीलों के साथ लोटस पॉण्ड और पुष्प तालाब पार कर सकेंगे. जहां कई किस्म के फूल के सुगंध ले सकेंगे. पुष्पों की एक बड़ी वाटिका होगी. जहां सभी किस्म के फूलों की सुंगंध बिखरेगी. हर्बल गार्डन होगा. इसके अलावा गज़िबो होगा. प्रकृति के गोद में वाच टावर पर बैठकर आप जंगल का नजारा भी देख सकेंगे. बर्ड वाचिंग प्वाइंट होगा.
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नेचर फोटोग्राफी करने वालों के लिए काशी में ये जगह होगी वरदान
उन्होंने बताया कि नेचर फोटोग्राफी करने वालों के लिए ये जगह वरदान साबित होगी. पर्यटक घने जंगल के बीच चिड़ियों के चहक के साथ बोटिंग का लुफ़्त ले सकेंगे. पर्यटकों को योग करने के लिए एक खास जगह होगी. प्रकाश के सोलर एनर्जी का प्रयोग किया जायेगा. फूड कोर्ट में लोग काशी के लजीज व्यंजनों का लुफ्त ले सकेंगे. योगी सरकार काशी में पर्यटन स्थलों को इस तरह से विकसित करने में जुटी है, जिससे दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों को काशी में सात दिनों तक रोका जा सके. ये प्राकृतिक पर्यटन स्थल इसमें मददगार साबित होगा.