वाराणसी: सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय सांख्ययोगतंत्रागम विभाग एवं नागरी प्रचारिणी सभा के संयुक्त तत्वावधान में महामहोपाध्याय पद्मविभूषण डॉ गोपीनाथ कविराज प्रतिभा-सम्मान समारोह एवं 'योगतंत्रविमर्शिनी' शोध पत्रिका का लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि नागरी प्रचारिणी, काशी के विशेष कार्याधिकारी पं बृजेश चन्द्र पान्डेय ने कहा कि महामहोपाध्याय पं गोपीनाथ कविराज जी स्वयं में एक साक्षात् शास्त्र के रूप में थे. इस तरह से काव्य विविध गुणों से युक्त दोष रहित एवं अलंकार परिपूर्ण होता है. उसी प्रकार से कविराज जी सांसारिक दोषों से मुक्त और अध्यात्मिक गुणों से ओत प्रोत थे.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के वरिष्ठ आचार्य प्रो. शीतला प्रसाद पान्डेय ने कहा कि कविराज जी संस्कृत के तन्त्र विद्या के एक मात्र मानक विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित थे. कविराज जी संस्कृत जगत के कर्णधारों के लिए आदर्श व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते रहे. आज यह सम्मान प्राप्त कर महामहोपाध्याय कविराज जी के जीवन के आदर्शों के पथ पर चलने का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे. कविराज जी भारतीय संस्कृति एवं संस्कार के साक्षात् प्रतिमूर्ति थे. उनका जीवन वृत्त आज की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और आत्मसात् का पथ है.
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि पद्मविभूषण कविराज जी शास्त्रों के प्रकांड विद्वान थे. उनके विषय में यह कहना बहुत कठिन होगा कि वे अमुक शास्त्र के विद्वान थे, बल्कि वे समूचे शास्त्रों के अतिविशिष्ट विद्वान के रूप में स्थापित थे.