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शारदीय नवरात्रि: सिर्फ 47 मिनट में ही करनी होगी कलश स्थापना, ऐसे करें माता की आराधना

मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा की आराधना के लिए जाना जाता है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा की जाती है. जानिए 7 अक्टूबर को नवरात्रि के प्रथम दिवस कलश स्थापना का सही मुहूर्त और तरीका.

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Published : Oct 6, 2021, 10:56 AM IST

Updated : Oct 7, 2021, 11:00 AM IST

ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी
ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी

वाराणसी: मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा की आराधना के लिए जाना जाता है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्र के प्रथम दिन यानी प्रतिपदा तिथि को देवी स्थापना का विधान बताया गया है. नवरात्रि के प्रथम दिवस पर देवी स्थापना के साथ कलश पूजन करने के लिए मुहूर्त और सही तरीका जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि माता की कृपा और माता का आशीर्वाद तभी प्राप्त होता है, जब कलश स्थापना व देवी पूजन सही तरीके से पूर्ण किया जाए. जानिए 7 अक्टूबर को नवरात्रि के प्रथम दिवस कलश स्थापना का सही मुहूर्त और तरीका.



7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक नवरात्रि
ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्रि तीन तरह की मानी जाती है. चैत्र महीने में पड़ने वाली वासंतिक नवरात्रि देवी गौरी की पूजन के लिए उपयुक्त होती है, जबकि दूसरी नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के रूप में जानी जाती है. यह नवरात्रि तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है. शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होती है. दुर्गा पूजा के बाद दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर से होने जा रही है और 14 नवंबर को नवमी तिथि के साथ नवरात्र का समापन होगा, जबकि 15 अक्टूबर को दशहरे का पर्व मनाया जाएगा.

ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी.



कलश स्थापना के लिए सिर्फ 47 मिनट का वक्त
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्रि में सबसे महत्वपूर्ण होता है, कलश स्थापना. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना वैसे तो सुबह सूर्य उदय के साथ ही की जाती है, लेकिन हिंदू धर्म शास्त्र में चित्रा नक्षत्र और वैद्यती योग मिले तो घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त में करनी चाहिए. यानी इस बार घटस्थापना के लिए सुबह 11:37 से लेकर 12:23 तक का ही समय उपयुक्त मिल रहा है. हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक यह स्पष्ट है कि यदि नक्षत्र और योग सही न हो तो अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना उपयुक्त होता है, यानी इस बार कलश स्थापना के लिए नवरात्रि के प्रथम दिन लगभग 47 मिनट का ही समय मिल रहा है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि इस बार षष्ठी तिथि की हानि है यानी नवरात्रि 8 दिन का होगा.



ऐसे करना चाहिए देवी का आह्वान
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए सबसे पहले सुबह स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले 9 दिवस के व्रत के लिए संकल्प लेना चाहिए. संकल्प लेने के लिए हाथ में जल लेकर उसमें कुछ दक्षिणा पुष्प रखकर माता की आराधना करते हुए भगवान गणेश का ध्यान करना चाहिए और फिर माता से आशीर्वाद लेते हुए 9 दिवस तक व्रत रखने और पूजा अनुष्ठान पूर्ण करने का संकल्प लेना चाहिए.



यह है कलश स्थापना का तरीका
इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुए मिट्टी के घड़े में या फिर पीतल, तांबे या स्टील के जल पात्र में जल भरकर उसके ऊपर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल रखना चाहिए. नारियल के बीच में नारा बंधा होना आवश्यक होता है. इसके बाद उस पर सतिया बनाकर श्री गणेश का आह्वान करते हुए गणेश अंबिका पूजन पूर्ण करने के बाद माता दुर्गा का आह्वान किया जाता है. माता के आह्वान के बाद कलश पर चुनरी चढ़ाकर पुष्प-अक्षत इत्यादि से षोडशोपचार पूजन संपन्न किया जाएगा.

इसके बाद मातृका पूजन नवग्रह पूजन पूर्ण करने के बाद माता की तस्वीर या प्रतिमा को एक पटरे पर स्थापित करते हुए कलश के पीछे रखना चाहिए. बहुत से लोग खेती भी करते हैं. इसलिए एक मिट्टी में थोड़ी सी जो मिलाकर उसे कलश के नीचे रखा जा सकता है. माता की कृपा के लिए 9 दिन सुबह शाम जय अंबे गौरी जय माता की आरती करनी चाहिए और दोनों वक्त माता से शमा याचना करने के लिए देवी सूक्त यानी नमो देवी महादेवी का पाठ भी करना चाहिए. माता रानी को नमो देव्यै महादेव्यै यानी देवी सूक्त के पाठ से बेहद पसंद हैं. इस पाठ में अलग-अलग सभी चीजें माता से मांगी जाती हैं. माता की विशेष कृपा इस एक पाठ के नियमित स्वाध्याय से मिलती है.


इसे भी पढ़ें- इन रंगों के कपड़े पहनकर मां दुर्गा की करें आराधना, मुरादें होंगी पूरी

वाराणसी: मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा की आराधना के लिए जाना जाता है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्र के प्रथम दिन यानी प्रतिपदा तिथि को देवी स्थापना का विधान बताया गया है. नवरात्रि के प्रथम दिवस पर देवी स्थापना के साथ कलश पूजन करने के लिए मुहूर्त और सही तरीका जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि माता की कृपा और माता का आशीर्वाद तभी प्राप्त होता है, जब कलश स्थापना व देवी पूजन सही तरीके से पूर्ण किया जाए. जानिए 7 अक्टूबर को नवरात्रि के प्रथम दिवस कलश स्थापना का सही मुहूर्त और तरीका.



7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक नवरात्रि
ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्रि तीन तरह की मानी जाती है. चैत्र महीने में पड़ने वाली वासंतिक नवरात्रि देवी गौरी की पूजन के लिए उपयुक्त होती है, जबकि दूसरी नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के रूप में जानी जाती है. यह नवरात्रि तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है. शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होती है. दुर्गा पूजा के बाद दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर से होने जा रही है और 14 नवंबर को नवमी तिथि के साथ नवरात्र का समापन होगा, जबकि 15 अक्टूबर को दशहरे का पर्व मनाया जाएगा.

ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी.



कलश स्थापना के लिए सिर्फ 47 मिनट का वक्त
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्रि में सबसे महत्वपूर्ण होता है, कलश स्थापना. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना वैसे तो सुबह सूर्य उदय के साथ ही की जाती है, लेकिन हिंदू धर्म शास्त्र में चित्रा नक्षत्र और वैद्यती योग मिले तो घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त में करनी चाहिए. यानी इस बार घटस्थापना के लिए सुबह 11:37 से लेकर 12:23 तक का ही समय उपयुक्त मिल रहा है. हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक यह स्पष्ट है कि यदि नक्षत्र और योग सही न हो तो अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना उपयुक्त होता है, यानी इस बार कलश स्थापना के लिए नवरात्रि के प्रथम दिन लगभग 47 मिनट का ही समय मिल रहा है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि इस बार षष्ठी तिथि की हानि है यानी नवरात्रि 8 दिन का होगा.



ऐसे करना चाहिए देवी का आह्वान
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए सबसे पहले सुबह स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले 9 दिवस के व्रत के लिए संकल्प लेना चाहिए. संकल्प लेने के लिए हाथ में जल लेकर उसमें कुछ दक्षिणा पुष्प रखकर माता की आराधना करते हुए भगवान गणेश का ध्यान करना चाहिए और फिर माता से आशीर्वाद लेते हुए 9 दिवस तक व्रत रखने और पूजा अनुष्ठान पूर्ण करने का संकल्प लेना चाहिए.



यह है कलश स्थापना का तरीका
इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुए मिट्टी के घड़े में या फिर पीतल, तांबे या स्टील के जल पात्र में जल भरकर उसके ऊपर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल रखना चाहिए. नारियल के बीच में नारा बंधा होना आवश्यक होता है. इसके बाद उस पर सतिया बनाकर श्री गणेश का आह्वान करते हुए गणेश अंबिका पूजन पूर्ण करने के बाद माता दुर्गा का आह्वान किया जाता है. माता के आह्वान के बाद कलश पर चुनरी चढ़ाकर पुष्प-अक्षत इत्यादि से षोडशोपचार पूजन संपन्न किया जाएगा.

इसके बाद मातृका पूजन नवग्रह पूजन पूर्ण करने के बाद माता की तस्वीर या प्रतिमा को एक पटरे पर स्थापित करते हुए कलश के पीछे रखना चाहिए. बहुत से लोग खेती भी करते हैं. इसलिए एक मिट्टी में थोड़ी सी जो मिलाकर उसे कलश के नीचे रखा जा सकता है. माता की कृपा के लिए 9 दिन सुबह शाम जय अंबे गौरी जय माता की आरती करनी चाहिए और दोनों वक्त माता से शमा याचना करने के लिए देवी सूक्त यानी नमो देवी महादेवी का पाठ भी करना चाहिए. माता रानी को नमो देव्यै महादेव्यै यानी देवी सूक्त के पाठ से बेहद पसंद हैं. इस पाठ में अलग-अलग सभी चीजें माता से मांगी जाती हैं. माता की विशेष कृपा इस एक पाठ के नियमित स्वाध्याय से मिलती है.


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Last Updated : Oct 7, 2021, 11:00 AM IST
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