वाराणसी: भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का प्रमुख पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित है.
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि ज्योतिष गणना के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन ही चन्द्रमा षोडश कलाओं से युक्त होता है. पोडश कलायुक्त चन्द्रमा से निकली किरणें समस्त रोग व शोक हरनेवाली बतलाई गई है. इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है. इस रात्रि को दिखाई देने वाला चन्द्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा दिखलाई पड़ता है. ऐसी मान्यता है कि भू-लोक पर शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मीजी घर-घर विचरण करती हैं, जो व्यक्ति रात्रि में जागृत रहता है. उसपर लक्ष्मीजी अपनी विशेष कृपा वर्षा करती हैं.
विमल जैन के अनुसार आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 8 अक्टूबर, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 43 मिनट पर लग रही है, जो कि 9 अक्टूबर रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 25 मिनट तक रहेगी. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र 8 अक्टूबर, शनिवार को सायं 5 बजकर 08 मिनट से 9 अक्टूबर रविवार को सायं 4 बजकर 21 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् रेवती नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा. पूर्णिमा तिथि का मान 9 अक्टूबर रविवार को होने के फलस्वरूप स्नान-दान-व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे.
श्रीलक्ष्मीजी के माने गए हैं 8 स्वरूप
धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्यलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजयलक्ष्मी श्रीलक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना आदि निशा बेला में की जाती है. इस बार 9 अक्टूबर रविवार को रात्रि में लक्ष्मीजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा का आयोजन किया जाएगा. कार्तिक स्नान के यम, व्रत व नियम तथा दीपदान 10 अक्टूबर, सोमवार से प्रारंभ हो जाएंगे.
पूजा का विधान
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा के पश्चात् शरद पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए श्रीगणेश जी, लक्ष्मीजी व श्रीविष्णुजी का विधि-विधानपूर्वक पूजन-अर्चन करना चाहिए. आज के दिन भगवान श्रीशिवजी के सुपुत्र श्रीकार्तिकेय जी की भी पूजा अर्चना करने का विधान है.
लक्ष्मी को क्या करें अर्पित
लक्ष्मी जी का मनोरम श्रृंगार किया जाता है तथा वस्त्र, पुष्प, धूप-दीप, गन्ध, अक्षत, ताम्बूल, सुपारी, मेवा, ऋतुफल एवं विविध प्रकार के मिष्ठान्नादि अर्पित किए जाते हैं. गौ दूध से बनी खीर जिसमें दूध, चावल, मिश्री, मेवा, शुद्ध देशी घी मिश्रित हो, उसका नैवेद्य भी लगाया जाता है. रात्रि व्यापिनी शरद पूर्णिमा तिथि पर भगवती श्रीलक्ष्मीजी की आराधना करने से मनोभिलाषित कामनाएँ पूर्ण होती हैं. लक्ष्मीजी के समक्ष शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीपक प्रज्वलित करें तथा लक्ष्मीजी की महिमा में सम्बन्धित पाठ भी करें.
कौन से पाठ से मिलेगी समृद्धि
श्रीसूक्त, श्रीकनकधारास्तोत्र, श्रीलक्ष्मीस्तुति, श्रीलक्ष्मी चालीसा का पाठ करना एवं श्रीलक्ष्मीजी - का प्रिय मन्त्र ॐ श्रीं नमः ' जप करना अत्यन्त फलदायी माना गया है.
चन्द्रकिरणों से मिलेगा आरोग्य लाभ
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि आरोग्य लाभ के लिए शरद पूर्णिमा के चन्द्रकिरणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं. शरद पूर्णिमा की रात्रि में गौ दुग्ध एवं चावल, मिश्री, पंचमेवा, शुद्ध देशी घी से बनी खीर को चाँदनी की रोशनी में अति महीन श्वेत व स्वच्छ वस्त्र से ढँककर रखो जाती है, जिससे खीर पर चन्द्रमा के प्रकाश की किरणें पड़ती रहे. इस खीर को भक्तिभाव से प्रसाद के तौर पर भक्तों में वितरण करके स्वयं भी ग्रहण करते हैं, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है तथा जीवन में सुख-सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है. कार्तिक मास में होता है दीपदान शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि तक आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा है. दीपदान करने से घर के समस्त दुःख दारिद्र्य दूर होता है तथा सुख समृद्धि का आगमन होता है.
शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ने आश्विन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन यमुना तट पर मुरली वादन करके असंख्य गोपियों के संग महारास रचाया था जिसके फलस्वरूप वैष्णवजन इस दिन व्रत उपवास रखते हुए इस उत्सव को मनाते हैं. इस दिन वैष्णवजन खुशियों के साथ हर्ष, उमंग, उल्लास के संग रात्रि जागरण भी करते हैं. इस पूर्णिमा को 'कोजागरी पूर्णिमा' भी कहा जाता है.
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