वाराणसी: प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काफी सजग दिखाई दे रहे हैं. इसके लिए उन्होंने बारिश खत्म होने के बाद ही 15 नवंबर की डेडलाइन फिक्स कर दी थी. इसके बाद लगातार इसका फीडबैक भी कर रहे हैं, कि सड़कों की स्थिति वर्तमान में क्या है. योगी सरकार के अलग-अलग मंत्री भी गड्ढा मुक्ति अभियान की हकीकत जानने के लिए जिलों में जा रहे हैं. ताकि मुख्यमंत्री के आदेश का पालन कराया जा सके. लेकिन क्या वास्तव में मुख्यमंत्री के आदेश की पूर्ति हर जिले में की जा रही है.
बता दें कि हाल ही में नगर निगम सीमा के विस्तार के तहत कई जिलों में ग्रामीण परीक्षेत्र को शहरी सीमा में शामिल किया गया है. इस लिस्ट में प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी का भी हुआ है. यहां 86 गांव को नगर निगम सीमा में जोड़ा गया है. इन गांव की लगभग 100 किलोमीटर से ज्यादा की सड़क भी नगर निगम की सीमा में शामिल हो गई है. लेकिन दिक्कत इस बात की है कि नगर निगम में आने के बाद भी इन गांवों की सड़कें गड्ढा मुक्त होंगी या नहीं. इस बारे में किसी को नहीं पता है. क्योंकि इनके लिए अब तक सिर्फ प्लान ही तैयार हो रहा है. लेकिन 15 नवंबर की डेडलाइन बीतने को है.
ईटीवी भारत की टीम की इलाकों में ग्राउंड जीरो रिपोर्ट
सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 नवंबर तक नगर क्षेत्र की सारी सड़कों को दुरुस्त करने का आदेश देकर गड्ढा मुक्ति अभियान को बल देने का प्लान तो बना लिया. लेकिन हाल ही में नगर निगम में शामिल हुए गांव की सड़कों का क्या होगा. यह किसी को नहीं पता. हालात यह हैं कि बनारस के तमाम वह इलाके जो ग्रामीण से नगर क्षेत्र में शामिल हुए हैं. उनकी सड़कों की हालत कई सालों से अब भी वैसी ही बनी हुई है.
वाराणसी के इन इलाकों में जाकर ईटीवी भारत की टीम ने जब हालात का जायजा लिया तो पता चला कि ग्राउंड जीरो पर हालात बेहद खराब है. बनारस के शहरी क्षेत्र से सटे मंडौली, मंडुवाडीह, चुरामनपुर, कंचनपुर, लोहता, रामनगर समेत अन्य कई ग्रामीण इलाके शहर में तो आ गए हैं. लेकिन इनके सड़कों की हालत अब भी वैसे ही है.
हालात यह है कि शहर से सटे ग्रामीण इलाकों की सड़कें अभी चलने लायक ही नहीं है. इन सड़कों में इतने बड़े-बड़े गड्ढे हैं कि सड़क दिखाई नहीं देती है. अधिकांश ग्रामीण इलाकों में अब भी सड़कों पर घर से निकले हुए मलबे और अपने खर्च पर सड़कों के निर्माण का काम स्थानीय लोगों के द्वारा करवाया जाता है. जिससे कम से कम परेशानी से बचा जा सके. यहां के क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि बनारस के वह इलाके जो नगर क्षेत्र में शामिल हुए हैं. उनकी सड़कों को गड्ढा मुक्त कब किया जाएगा. यह किसी को नहीं पता है. लोगों में इस बात की भी नाराजगी है कि मुख्यमंत्री ने आदेश तो दे दिया है. लेकिन कभी इन सड़कों की तरफ आएं तब पता चलेगा कि यहां के लोग कितनी समस्याओं से पीड़ित हैं.
शासन की अनुमति के बाद होगा काम
इन इलाकों के रहने वाले लोगों का कहना है कि कई सालों से जब ग्राम सभा में यह सड़के आती थी. तो फंड का रोना रोकर सड़कों का निर्माण नहीं करवाया जाता था. अब जब नगर निगम में आ गई है तो दोनों विभाग आपस में लड़ रहे हैं. अब इसका काम कौन करेगा. वहीं, जब इस पूरे मामले पर जिम्मेदार अधिकारियों से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि इसे लेकर मुख्यमंत्री नवसृजन योजना के तहत एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया है. प्रशासन के द्वारा उन सारे ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों से लेकर उनके ओवरऑल डेवलपमेंट का प्लान तैयार करके शासन के पास भेज दिया गया है. शासन से अनुमति मिलने के बाद ही इस दिशा में कार्य शुरू किया जाएगा.
अधिकारी इन ग्रामीण क्षेत्रों के नगर निगम सीमा में शामिल होने के बाद सड़कों की गड्ढा मुक्ति के लिए अभी भी शासन की प्लानिंग पर ही निर्भर हैं. लोकल स्तर पर इन सड़कों के गड्ढा मुक्ति को लेकर क्या होगा. यह किसी को नहीं पता है. हालात यह हैं कि 15 नवंबर तक गड्ढा मुक्त सड़कों के आदेश की डेडलाइन खत्म हो जाएगी. लेकिन इन क्षेत्रों की सड़कें अभी खराब हैं. इनको दुरुस्त करने का प्लान सिर्फ कागजों में ही दौड़ रहा है.
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