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प्रेमचंद जयंती: पहचान को आज भी मोहताज है लमही, अंधेरे में है मुंशी जी का घर

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Published : Jul 31, 2021, 8:03 AM IST

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी (Varanasi) के निकट लमही गांव में हुआ था. प्रेमचंद (Munshi Premchand) की माता का नाम आनन्दी देवी और पिता का नाम अजायबराय था. आज उनकी 141 वीं जयंती है. अब उनके गांव लमही (Lamhi Village) और उनके पैतृक आवास की हालत बद से बदतर हो गई है. इतने सालों में बहुत सी सरकारें आईं, लेकिन किसी ने इस महान साहित्यकार की विरासत को संवारने का प्रयास नहीं किया.

मुंशी प्रेमचंद जयंती पर विशेष.
मुंशी प्रेमचंद जयंती पर विशेष.

वाराणसी: देश के महान साहित्यकार, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म (Birth of Munshi Premchand) आज के ही दिन 1880 में हुआ था. आजादी (Independence) के पहले भारत (India) की वास्तविकता का जो लेखन प्रेमचंद ने किया. वैसा आज तक कोई दूसरा साहित्यकार नहीं कर पाया है. मुंशी प्रेमचंद आम जनता के लेखक थे. कहानीकार, कथाकार और साहित्यकार (litterateur) जिनकी लेखनी से अंग्रेज भी थरथर कांपते थे. यही कारण है कि उनकी किताब सोजे वतन को अंग्रेजों ने जला दिया था. मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी (Varanasi) से पांच मील दूर लमही गांव (Lamhi Village) में हुआ था. उनकी माता का नाम आनंदी देवी और पिता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में नौकरी करते थे. प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपतराय था. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था.

कलम की जादूगरी से रूढ़िवादी परंपराओं (orthodox traditions) के साथ समाज की कुरीतियों को तोड़ने वाले महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की आज 141 वीं जयंती है. उनकी जयंती के मौके पर हम आपको लेकर चलते हैं लमही. बनारस शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में आज भी मुंशी प्रेमचंद की लेखनी की तासीर महसूस होती है. यहां कथा सम्राट की कहानियों का तिलिस्म है. उनके घर से लेकर उनके नाम पर बनाए गए म्यूजियम में आज भी उन चीजों को संजो कर रखा गया है. जिनका इस्तेमाल मुंशी प्रेमचंद किया करते थे. यहां ईदगाह के हामिद का चिमटा, गोदान (Godan) का होरी और नमक का दारोगा का नायक सभी मौजूद हैं, लेकिन बस तकलीफ इस बात की है कि इस महान कथाकार को आज सरकारें भूल चुकी हैं. उनका घर हो या उनका गांव वर्तमान में बदहाली की उस स्थिति से गुजर रहा है जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी.

मुंशी प्रेमचंद के घर से संवाददाता की रिपोर्ट.
2004 से प्रयास लेकिन सब फेल
2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की सरकार में मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही को नए रूप में विकसित करने की प्लानिंग की गई. मुंशी प्रेमचंद के गांव पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) के घर और लमही गांव के विकास के लिए 25 लाख रुपये दिए थे. जिसके बाद उनके पैतृक आवास को नया रूप देने का काम शुरू हुआ. घर रिनोवेट तो हो गया,लेकिन इसे संभाल कर रखना आगे की सरकारों के बस में शायद नहीं रहा. वर्तमान में हालात यह हैं कि आज इतने साल बीत जाने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस गांव को पहचान नहीं मिल सकी है. मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में जिस तरह के गांवों के दर्शन होते हैं वही दशा इस समय उनके गांव की है. प्रेमचंद स्मारक (Premchand Memori) न्यास लमही के अध्यक्ष सुरेश चंद्र दुबे का कहना है कि इस गांव में अब भी कफन की बुधिया, बूढ़ी काकी और निर्मला जैसे किरदार हैं, लेकिन उनके दर्द को लिखने वाला कोई नहीं. साहित्यकार रचनाकारों के लिए मुंशी प्रेमचंद का स्थान निश्चित तौर पर किसी मंदिर से कम नहीं है. कट गई बिजली, मीटर गायबमुंशी प्रेमचंद के पैतृक आवास के ठीक सामने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध करने के लिए मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर (Munshi Premchand Memorial Research Center) की बिल्डिंग बनी है. मगर सियासत के मकड़जाल के चलते मुंशी जी के पैतृक घर में अंधेरे का साम्राज्य है. क्योंकि यहां पर लंबे वक्त से बिजली नहीं है. इस बार भी उनकी जयंती के मौके पर बिजली रहेगी या नहीं यह भी नहीं पता. इतना ही नहीं बारिश के मौसम में घर के बाहर जमा कीचड़ और घर के अंदर बारिश का पानी लग जाने की वजह से घर की स्थिति भी अब खराब हो चली है. मरम्मत के सरकारी प्रयास किये जाने के बावजूद दीवारों की सीलन खत्म नहीं हुई है. प्रशासनिक स्तर पर रख-रखाव पर ध्यान नहीं दिए जाने के चलते हालत और खस्ताहाल हो चली है.

हालांकि बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रयास किए जा रहे हैं. जल्द ही मुफ्त बिजली कनेक्शन के साथ मुंशी जी के घर को रोशन किया जाएगा.इसके साथ ही वाराणसी डेवलपमेंट अथॉरिटी भी 25 लाख रूपये के बजट से अब मुंशी प्रेमचंद के गांव और घर को नया रूप देने की तैयारी कर रहा है.

इसे भी पढ़ें-Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary: वो क्रांतिकारी जिसने कहा 'आजाद हूं, आजाद रहूंगा'...


सैकडों कहनियों और दर्जनों उपन्यास से बयां की जन की आवाज
भारत के ग्रामीण जीवन को प्रेमचंद ने आम लोगों की भाषा में लिखा. उन्होंने 'निर्मला', 'मंगलसूत्र', 'कर्मभूमि', 'रंगभूमि' 'सेवासदन', 'कायाकल्प', 'प्रतिज्ञा' जैसे 15 उपन्यास और 'कफ़न', 'पूस की रात', 'नमक का दारोगा', 'बड़े घर की बेटी', 'घासवाली' जैसी तीन सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं. इतना ही नहीं 10 पुस्तकों का अनुवाद करने के साथ ही साथ बाल साहित्य की किताबें भी लिखीं. प्रेमचंद ने न केलव अपनी लेखनी के जरिए अंग्रेजी हुकूमत पर करारा प्रहार किया था बल्कि विधवा विवाह जैसी रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ भी प्रेमचंद ने 'निर्मला' लिखकर आवाज उठाई और खुद भी एक विधवा से ही शादी की. जिसकी वजह से उन्हें घर से निकाल दिया गया था.

इसे भी पढ़ें-कबीर जयंती : काशी में जन्मे कबीर ने भ्रांतियां तोड़ने के लिए मगहर में बिताया अंतिम समय

संजोकर रखा गया है मुशी जी की यादों को
मुंशी प्रेमचंद के पैतृक आवास के ठीक सामने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध करने के लिए मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर की बिल्डिंग बनी है. जहां उनकी लिखी किताबों का संग्रह, उनके हाथों से बनाया गया करघा, उनका हुक्का, घड़ियां और बहुत कुछ आज भी मौजूद है. जो मुंशी प्रेमचंद की याद दिलाता है. अगल-बगल के गांवों से ये गांव भले ही देखने सुनने में समृद्ध हो, लेकिन इस गांव में अब भी बहुत कुछ अधूरा है. फिर भी साहित्यकार रचनाकारों के लिए मुंशी प्रेमचंद का स्थान निश्चित तौर पर किसी मंदिर से कम नहीं है.

वाराणसी: देश के महान साहित्यकार, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म (Birth of Munshi Premchand) आज के ही दिन 1880 में हुआ था. आजादी (Independence) के पहले भारत (India) की वास्तविकता का जो लेखन प्रेमचंद ने किया. वैसा आज तक कोई दूसरा साहित्यकार नहीं कर पाया है. मुंशी प्रेमचंद आम जनता के लेखक थे. कहानीकार, कथाकार और साहित्यकार (litterateur) जिनकी लेखनी से अंग्रेज भी थरथर कांपते थे. यही कारण है कि उनकी किताब सोजे वतन को अंग्रेजों ने जला दिया था. मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी (Varanasi) से पांच मील दूर लमही गांव (Lamhi Village) में हुआ था. उनकी माता का नाम आनंदी देवी और पिता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में नौकरी करते थे. प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपतराय था. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था.

कलम की जादूगरी से रूढ़िवादी परंपराओं (orthodox traditions) के साथ समाज की कुरीतियों को तोड़ने वाले महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की आज 141 वीं जयंती है. उनकी जयंती के मौके पर हम आपको लेकर चलते हैं लमही. बनारस शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में आज भी मुंशी प्रेमचंद की लेखनी की तासीर महसूस होती है. यहां कथा सम्राट की कहानियों का तिलिस्म है. उनके घर से लेकर उनके नाम पर बनाए गए म्यूजियम में आज भी उन चीजों को संजो कर रखा गया है. जिनका इस्तेमाल मुंशी प्रेमचंद किया करते थे. यहां ईदगाह के हामिद का चिमटा, गोदान (Godan) का होरी और नमक का दारोगा का नायक सभी मौजूद हैं, लेकिन बस तकलीफ इस बात की है कि इस महान कथाकार को आज सरकारें भूल चुकी हैं. उनका घर हो या उनका गांव वर्तमान में बदहाली की उस स्थिति से गुजर रहा है जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी.

मुंशी प्रेमचंद के घर से संवाददाता की रिपोर्ट.
2004 से प्रयास लेकिन सब फेल2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की सरकार में मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही को नए रूप में विकसित करने की प्लानिंग की गई. मुंशी प्रेमचंद के गांव पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) के घर और लमही गांव के विकास के लिए 25 लाख रुपये दिए थे. जिसके बाद उनके पैतृक आवास को नया रूप देने का काम शुरू हुआ. घर रिनोवेट तो हो गया,लेकिन इसे संभाल कर रखना आगे की सरकारों के बस में शायद नहीं रहा. वर्तमान में हालात यह हैं कि आज इतने साल बीत जाने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस गांव को पहचान नहीं मिल सकी है. मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में जिस तरह के गांवों के दर्शन होते हैं वही दशा इस समय उनके गांव की है. प्रेमचंद स्मारक (Premchand Memori) न्यास लमही के अध्यक्ष सुरेश चंद्र दुबे का कहना है कि इस गांव में अब भी कफन की बुधिया, बूढ़ी काकी और निर्मला जैसे किरदार हैं, लेकिन उनके दर्द को लिखने वाला कोई नहीं. साहित्यकार रचनाकारों के लिए मुंशी प्रेमचंद का स्थान निश्चित तौर पर किसी मंदिर से कम नहीं है. कट गई बिजली, मीटर गायबमुंशी प्रेमचंद के पैतृक आवास के ठीक सामने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध करने के लिए मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर (Munshi Premchand Memorial Research Center) की बिल्डिंग बनी है. मगर सियासत के मकड़जाल के चलते मुंशी जी के पैतृक घर में अंधेरे का साम्राज्य है. क्योंकि यहां पर लंबे वक्त से बिजली नहीं है. इस बार भी उनकी जयंती के मौके पर बिजली रहेगी या नहीं यह भी नहीं पता. इतना ही नहीं बारिश के मौसम में घर के बाहर जमा कीचड़ और घर के अंदर बारिश का पानी लग जाने की वजह से घर की स्थिति भी अब खराब हो चली है. मरम्मत के सरकारी प्रयास किये जाने के बावजूद दीवारों की सीलन खत्म नहीं हुई है. प्रशासनिक स्तर पर रख-रखाव पर ध्यान नहीं दिए जाने के चलते हालत और खस्ताहाल हो चली है.

हालांकि बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रयास किए जा रहे हैं. जल्द ही मुफ्त बिजली कनेक्शन के साथ मुंशी जी के घर को रोशन किया जाएगा.इसके साथ ही वाराणसी डेवलपमेंट अथॉरिटी भी 25 लाख रूपये के बजट से अब मुंशी प्रेमचंद के गांव और घर को नया रूप देने की तैयारी कर रहा है.

इसे भी पढ़ें-Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary: वो क्रांतिकारी जिसने कहा 'आजाद हूं, आजाद रहूंगा'...


सैकडों कहनियों और दर्जनों उपन्यास से बयां की जन की आवाज
भारत के ग्रामीण जीवन को प्रेमचंद ने आम लोगों की भाषा में लिखा. उन्होंने 'निर्मला', 'मंगलसूत्र', 'कर्मभूमि', 'रंगभूमि' 'सेवासदन', 'कायाकल्प', 'प्रतिज्ञा' जैसे 15 उपन्यास और 'कफ़न', 'पूस की रात', 'नमक का दारोगा', 'बड़े घर की बेटी', 'घासवाली' जैसी तीन सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं. इतना ही नहीं 10 पुस्तकों का अनुवाद करने के साथ ही साथ बाल साहित्य की किताबें भी लिखीं. प्रेमचंद ने न केलव अपनी लेखनी के जरिए अंग्रेजी हुकूमत पर करारा प्रहार किया था बल्कि विधवा विवाह जैसी रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ भी प्रेमचंद ने 'निर्मला' लिखकर आवाज उठाई और खुद भी एक विधवा से ही शादी की. जिसकी वजह से उन्हें घर से निकाल दिया गया था.

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संजोकर रखा गया है मुशी जी की यादों को
मुंशी प्रेमचंद के पैतृक आवास के ठीक सामने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध करने के लिए मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर की बिल्डिंग बनी है. जहां उनकी लिखी किताबों का संग्रह, उनके हाथों से बनाया गया करघा, उनका हुक्का, घड़ियां और बहुत कुछ आज भी मौजूद है. जो मुंशी प्रेमचंद की याद दिलाता है. अगल-बगल के गांवों से ये गांव भले ही देखने सुनने में समृद्ध हो, लेकिन इस गांव में अब भी बहुत कुछ अधूरा है. फिर भी साहित्यकार रचनाकारों के लिए मुंशी प्रेमचंद का स्थान निश्चित तौर पर किसी मंदिर से कम नहीं है.

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