वाराणसी: देश के महान साहित्यकार, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म (Birth of Munshi Premchand) आज के ही दिन 1880 में हुआ था. आजादी (Independence) के पहले भारत (India) की वास्तविकता का जो लेखन प्रेमचंद ने किया. वैसा आज तक कोई दूसरा साहित्यकार नहीं कर पाया है. मुंशी प्रेमचंद आम जनता के लेखक थे. कहानीकार, कथाकार और साहित्यकार (litterateur) जिनकी लेखनी से अंग्रेज भी थरथर कांपते थे. यही कारण है कि उनकी किताब सोजे वतन को अंग्रेजों ने जला दिया था. मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी (Varanasi) से पांच मील दूर लमही गांव (Lamhi Village) में हुआ था. उनकी माता का नाम आनंदी देवी और पिता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में नौकरी करते थे. प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपतराय था. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था.
कलम की जादूगरी से रूढ़िवादी परंपराओं (orthodox traditions) के साथ समाज की कुरीतियों को तोड़ने वाले महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की आज 141 वीं जयंती है. उनकी जयंती के मौके पर हम आपको लेकर चलते हैं लमही. बनारस शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में आज भी मुंशी प्रेमचंद की लेखनी की तासीर महसूस होती है. यहां कथा सम्राट की कहानियों का तिलिस्म है. उनके घर से लेकर उनके नाम पर बनाए गए म्यूजियम में आज भी उन चीजों को संजो कर रखा गया है. जिनका इस्तेमाल मुंशी प्रेमचंद किया करते थे. यहां ईदगाह के हामिद का चिमटा, गोदान (Godan) का होरी और नमक का दारोगा का नायक सभी मौजूद हैं, लेकिन बस तकलीफ इस बात की है कि इस महान कथाकार को आज सरकारें भूल चुकी हैं. उनका घर हो या उनका गांव वर्तमान में बदहाली की उस स्थिति से गुजर रहा है जिसकी कल्पना भी शायद किसी ने नहीं की होगी.
हालांकि बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रयास किए जा रहे हैं. जल्द ही मुफ्त बिजली कनेक्शन के साथ मुंशी जी के घर को रोशन किया जाएगा.इसके साथ ही वाराणसी डेवलपमेंट अथॉरिटी भी 25 लाख रूपये के बजट से अब मुंशी प्रेमचंद के गांव और घर को नया रूप देने की तैयारी कर रहा है.
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सैकडों कहनियों और दर्जनों उपन्यास से बयां की जन की आवाज
भारत के ग्रामीण जीवन को प्रेमचंद ने आम लोगों की भाषा में लिखा. उन्होंने 'निर्मला', 'मंगलसूत्र', 'कर्मभूमि', 'रंगभूमि' 'सेवासदन', 'कायाकल्प', 'प्रतिज्ञा' जैसे 15 उपन्यास और 'कफ़न', 'पूस की रात', 'नमक का दारोगा', 'बड़े घर की बेटी', 'घासवाली' जैसी तीन सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं. इतना ही नहीं 10 पुस्तकों का अनुवाद करने के साथ ही साथ बाल साहित्य की किताबें भी लिखीं. प्रेमचंद ने न केलव अपनी लेखनी के जरिए अंग्रेजी हुकूमत पर करारा प्रहार किया था बल्कि विधवा विवाह जैसी रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ भी प्रेमचंद ने 'निर्मला' लिखकर आवाज उठाई और खुद भी एक विधवा से ही शादी की. जिसकी वजह से उन्हें घर से निकाल दिया गया था.
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संजोकर रखा गया है मुशी जी की यादों को
मुंशी प्रेमचंद के पैतृक आवास के ठीक सामने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध करने के लिए मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर की बिल्डिंग बनी है. जहां उनकी लिखी किताबों का संग्रह, उनके हाथों से बनाया गया करघा, उनका हुक्का, घड़ियां और बहुत कुछ आज भी मौजूद है. जो मुंशी प्रेमचंद की याद दिलाता है. अगल-बगल के गांवों से ये गांव भले ही देखने सुनने में समृद्ध हो, लेकिन इस गांव में अब भी बहुत कुछ अधूरा है. फिर भी साहित्यकार रचनाकारों के लिए मुंशी प्रेमचंद का स्थान निश्चित तौर पर किसी मंदिर से कम नहीं है.