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काशी में धूमधाम से निकाली गई शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी

धर्मनगरी काशी में विश्व शांति के लिए गंगा-जमुनी तहजीब के मिसाल के साथ शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी निकाली जाती है. इसकी शुरुआत 1998 से हुई थी. इस दैनिक प्रभात में लोग मां गंगा और मां शीतल से विश्व से आतंकवाद के खात्मे के लिए प्रार्थना करते हैं.

बनारस.
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Published : Jun 23, 2019, 1:24 PM IST

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं. ऐसे में विश्व से आतंकवाद खत्म हो, वसुधैव कुटुम्बकम की सोच के साथ कई लोग शिवगंगा दैनिक प्रभात निकालते हैं. इस दैनिक प्रभात की खास बात यह है कि लोग ओम नमः शिवाय के जाप के साथ डमरु-शंख बजाते हुए मां गंगा से प्रार्थना करते हैं.

जानकारी देते संगठन प्रमुख नगेंद्र बाजपेई.
  • शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से निकलती है.
  • यह फेरी काशी विश्वनाथ मंदिर से निकलकर चौक-गोदौलिया होते हुए शीतला घाट तक जाती है.
  • 1998 से विश्व शांति के उद्देश्य से यह प्रभात फेरी निकाली जाती है.
  • इसमें लोग हाथों में ढोल-मजीरा और डमरू लिए ओम नमः शिवाय का जाप करते हैं.
  • विश्व आतंकवाद से मुक्त हो, वसुधैव कुटुम्बकम रहे इसके लिए लोग मां गंगा और मां शीतला से प्रार्थना करते हैं.

28 अप्रैल 1998 को हम लोगों ने विश्व शांति और गंगा-जमुनी तहजीब के मिसाल के साथ इस यात्रा को शुरू किया. यह प्रतिदिन चलता है. चाहे बारिश हो या ठंड पड़े या गर्मी हम फेरी को निकालते हैं. बाबा विश्वनाथ के दर से लेकर लगभग 4 किलोमीटर का सफर तय करके हम गंगा और मां शीतला का आशीर्वाद लेने यहां आते हैं. हम चाहते हैं कि विश्व से आतंकवाद खत्म हो और शांति रहे.
नगेंद्र बाजपेई, संगठन प्रमुख, शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं. ऐसे में विश्व से आतंकवाद खत्म हो, वसुधैव कुटुम्बकम की सोच के साथ कई लोग शिवगंगा दैनिक प्रभात निकालते हैं. इस दैनिक प्रभात की खास बात यह है कि लोग ओम नमः शिवाय के जाप के साथ डमरु-शंख बजाते हुए मां गंगा से प्रार्थना करते हैं.

जानकारी देते संगठन प्रमुख नगेंद्र बाजपेई.
  • शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से निकलती है.
  • यह फेरी काशी विश्वनाथ मंदिर से निकलकर चौक-गोदौलिया होते हुए शीतला घाट तक जाती है.
  • 1998 से विश्व शांति के उद्देश्य से यह प्रभात फेरी निकाली जाती है.
  • इसमें लोग हाथों में ढोल-मजीरा और डमरू लिए ओम नमः शिवाय का जाप करते हैं.
  • विश्व आतंकवाद से मुक्त हो, वसुधैव कुटुम्बकम रहे इसके लिए लोग मां गंगा और मां शीतला से प्रार्थना करते हैं.

28 अप्रैल 1998 को हम लोगों ने विश्व शांति और गंगा-जमुनी तहजीब के मिसाल के साथ इस यात्रा को शुरू किया. यह प्रतिदिन चलता है. चाहे बारिश हो या ठंड पड़े या गर्मी हम फेरी को निकालते हैं. बाबा विश्वनाथ के दर से लेकर लगभग 4 किलोमीटर का सफर तय करके हम गंगा और मां शीतला का आशीर्वाद लेने यहां आते हैं. हम चाहते हैं कि विश्व से आतंकवाद खत्म हो और शांति रहे.
नगेंद्र बाजपेई, संगठन प्रमुख, शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी

Intro:धर्म की नगरी काशी में विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं ऐसे में विश्व से आतंकवाद खत्म हो वसुदेव कुटुंबकम की सोच के साथ दर्जनों लोग प्रत्येक दिन दैनिक प्रभात निकालते हैं यह प्रभात फेरी में खास बात यह होती है यह गंगा जमुना तहजीब की भी मिसाल है जहां एक तरफ सुबह मस्जिद से अजान होती है और वही मंदिर में शंखनाद होती है।शिव गंगा दैनिक प्रभात फेरी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से निकलती है।


फ्री की खास बात यह होती है कि एक ही रंग के टीशर्ट पहने रहते हैं और ओम नमः शिवाय के जाप के साथ डमरु शंख के साथ लोग प्रभात फेरी निकालते हैं।


Body:श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से निकलकर चौक होते हुए गोदौलिया होते हुए पूरे शीतला घाट तक जाती है लगभग 4 किलोमीटर किया शिव दैनिक गंगा प्रभात फेरी। निकाली जाती है 1998 से विश्व शांति के उद्देश्य से या प्रभात फेरी निकाली जाती है जिसमें लोगों के हाथों में मजीरा ढोल डमरू त्रिशूल और ओम नमः शिवाय बोलते हुए सुबह-सुबह यह बाबा विश्वनाथ की मंदिर से लेकर मां गंगा के तट तक जाते हैं और मां गंगा से और मां शीतला से विश्व आतंकवाद से मुक्त हो वसुदेव कुटुंबकम रहे इसके लिए वह प्रार्थना करते हैं।





Conclusion:शिवगंगा दैनिक प्रभात फेरी के संगठन प्रमुख नगेंद्र बाजपेई ने बताया 28 अप्रैल 1998 को हम लोगों ने विश्व शांति और गंगा जमुना तहजीब को मिसाल के साथ इस यात्रा को शुरू किया था या प्रतिदिन चलता है चाहे बारिश हो या ठंडी पड़े या गर्मी हम फेरी को निकालते हैं और बाबा विश्वनाथ के दर से लेकर लगभग 4 किलोमीटर का सफर तय करके हम्मा गंगा और मां शीतला का आशीर्वाद लेने यहां आते हैं हम चाहते हैं कि विश्व से आतंकवाद खत्म हो और शांति रहे।

प्रभात फेरी का इंतजार काशी के लोगों को भी रहता है जैसे ही वह लोग चलते हैं लोग खुद-ब-खुद कितनी भी त्योहार होते हैं फिर भी उन लोगों को जगह दे दिया जाता है।


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