वाराणसी: काशी नगरी अपने आप में बहुत से रहस्यों को समेटे हुई है. ऐसा ही एक रहस्य काशी की 5000 साल पुरानी इस गुफा का भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग में भीष्म पितामह ने अपने बाण से बनाई थी. इस गुफा का रास्ता बनारस से सीधे हस्तिनापुर यानी आज की दिल्ली निकलता था. द्वापर काल की इस गुफा का रहस्य पता करने की कोशिश कई लोगों ने की, लेकिन जो गए वे लौटकर फिर न आए. इस गुफा के दर्शन करने और अपनी काशी यात्रा को पूर्ण करने के उद्देश्य से बहुत से लोग दूर-दूर से आते हैं.
क्या कहते हैं पातालपुरी मठ के महंत
शहर के मध्य में स्थित मैदानी इलाके से सटे हुए नरहीपूरा में स्थित पातालपुरी मठ में द्वापर काल की इस गुफा का दर्शन आज भी किया जा सकता है. इस गुफा के बारे में पातालपुरी मठ के महंत बालक दास ने बताते हैं कि मटका जीरो द्वार 2003 में जब चल रहा था. तब इस गुफा में जाने का प्रयास मठ में मौजूद कुछ लोगों और वहां रिनोवेशन करने वाले कारीगरों ने किया. लेकिन करीब 30 फीट तक जाने के बाद ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों का दम घुटने लगा और वह लोग वापस आ गए. बाद में इस गुफा को आगे से पत्थर लगाकर बंद कर दिया गया था ताकि कभी कोई इसमें चला न जाए.
ऐसे हुआ था गुफा का निर्माण
इस पौराणिक काल की गुफा का वर्णन पुराणों और मंत्रों में भी है. काशी खंड के मुताबिक काशी नरेश में अपनी तीन बेटियों अंबा, अंबे और अंबालिका के स्वयंबर में सभी राजाओं को बुलाया था, लेकिन इस स्वयंवर में भीष्म पितामह को निमंत्रण नहीं गया था. इसके बाद वह बिना निमंत्रण के ही काशी नरेश की तीनों बेटियों का हरण कर यहां से ले जाने लगे. काशी नरेश को शिव का अंश माना जाता है. इसलिए बीच में उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे और जब उनकी सेना ने भीष्म को घेरना शुरू किया, तो भीष्म पितामह ने अपनी धनुर्विद्या से तीर के जरिए एक विशाल गुफा का निर्माण किया. जो काशी से सीधे हस्तिनापुर को जोड़ती थी.
इसी गुफा के रास्ते भीष्म पितामह काशी से हस्तिनापुर के लिए निकल गए. महाभारत काल से यह गुफा आज भी मौजूद है. फिलहाल रहस्यमई इस गुफा से असलियत में पर्दा कब उठेगा यह तो यहां रिसर्च कर रही बीएचयू और अन्य कई जगह के वैज्ञानिकों की टीम ही बता सकेगी, लेकिन काशी में मौजूद यह गुफा आज भी काशी आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए काफी रहस्य का विषय है. यह भी मान्यता है कि काशी खंड में मौजूद इस गुफा का दर्शन किए बिना काशी यात्रा पूरी नहीं होती.
महंत बालक दास का कहना है कि उनके गुरु द्वारा उनको यह भी बताया गया था कि लगभग 30 साल पहले दो अंग्रेज काशी घूमने आए थे. और वह इस रहस्यमई गुफा पर रिसर्च करने के लिए मठ पहुंचे थे. पूरे साजो सामान के साथ वह इस गुफा में प्रवेश को कर गए ,लेकिन कई दिन बीतने के बाद वह लौटकर नहीं आये. जिसके बाद जब प्रशासन को इस बात की जानकारी हुई तो प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में इस गुफा को बंद करवा दिया गया. तब से अब तक यह गुफा बंद ही है.
-महंत बालकदास, महंत पातालपुरी मठ