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वाराणसी की ये गुफा जहां से भीष्म पितामह ने काशी नरेश की पुत्रियों का किया था हरण

दुनिया की सबसे पुरानी जीवंत नगरी काशी में आज भी कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में जानकर लोग हैरान रह जाते हैं. शहर के मध्य में स्थित मैदानी इलाके से सटे हुए नरहीपूरा में स्थित पातालपुरी मठ में द्वापर काल एक गुफा है. इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि भीष्म पितामह इसी रास्ते से काशी नरेश की पुत्रियों अंबा, अंबे और अंबालिका का हरण कर ले गए थे.

5000 साल पुरानी है काशी की ये गुफा.
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Published : Jun 26, 2019, 10:15 PM IST

वाराणसी: काशी नगरी अपने आप में बहुत से रहस्यों को समेटे हुई है. ऐसा ही एक रहस्य काशी की 5000 साल पुरानी इस गुफा का भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग में भीष्म पितामह ने अपने बाण से बनाई थी. इस गुफा का रास्ता बनारस से सीधे हस्तिनापुर यानी आज की दिल्ली निकलता था. द्वापर काल की इस गुफा का रहस्य पता करने की कोशिश कई लोगों ने की, लेकिन जो गए वे लौटकर फिर न आए. इस गुफा के दर्शन करने और अपनी काशी यात्रा को पूर्ण करने के उद्देश्य से बहुत से लोग दूर-दूर से आते हैं.

क्या कहते हैं पातालपुरी मठ के महंत

शहर के मध्य में स्थित मैदानी इलाके से सटे हुए नरहीपूरा में स्थित पातालपुरी मठ में द्वापर काल की इस गुफा का दर्शन आज भी किया जा सकता है. इस गुफा के बारे में पातालपुरी मठ के महंत बालक दास ने बताते हैं कि मटका जीरो द्वार 2003 में जब चल रहा था. तब इस गुफा में जाने का प्रयास मठ में मौजूद कुछ लोगों और वहां रिनोवेशन करने वाले कारीगरों ने किया. लेकिन करीब 30 फीट तक जाने के बाद ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों का दम घुटने लगा और वह लोग वापस आ गए. बाद में इस गुफा को आगे से पत्थर लगाकर बंद कर दिया गया था ताकि कभी कोई इसमें चला न जाए.

5000 साल पुरानी है काशी की ये गुफा.

ऐसे हुआ था गुफा का निर्माण
इस पौराणिक काल की गुफा का वर्णन पुराणों और मंत्रों में भी है. काशी खंड के मुताबिक काशी नरेश में अपनी तीन बेटियों अंबा, अंबे और अंबालिका के स्वयंबर में सभी राजाओं को बुलाया था, लेकिन इस स्वयंवर में भीष्म पितामह को निमंत्रण नहीं गया था. इसके बाद वह बिना निमंत्रण के ही काशी नरेश की तीनों बेटियों का हरण कर यहां से ले जाने लगे. काशी नरेश को शिव का अंश माना जाता है. इसलिए बीच में उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे और जब उनकी सेना ने भीष्म को घेरना शुरू किया, तो भीष्म पितामह ने अपनी धनुर्विद्या से तीर के जरिए एक विशाल गुफा का निर्माण किया. जो काशी से सीधे हस्तिनापुर को जोड़ती थी.

इसी गुफा के रास्ते भीष्म पितामह काशी से हस्तिनापुर के लिए निकल गए. महाभारत काल से यह गुफा आज भी मौजूद है. फिलहाल रहस्यमई इस गुफा से असलियत में पर्दा कब उठेगा यह तो यहां रिसर्च कर रही बीएचयू और अन्य कई जगह के वैज्ञानिकों की टीम ही बता सकेगी, लेकिन काशी में मौजूद यह गुफा आज भी काशी आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए काफी रहस्य का विषय है. यह भी मान्यता है कि काशी खंड में मौजूद इस गुफा का दर्शन किए बिना काशी यात्रा पूरी नहीं होती.

महंत बालक दास का कहना है कि उनके गुरु द्वारा उनको यह भी बताया गया था कि लगभग 30 साल पहले दो अंग्रेज काशी घूमने आए थे. और वह इस रहस्यमई गुफा पर रिसर्च करने के लिए मठ पहुंचे थे. पूरे साजो सामान के साथ वह इस गुफा में प्रवेश को कर गए ,लेकिन कई दिन बीतने के बाद वह लौटकर नहीं आये. जिसके बाद जब प्रशासन को इस बात की जानकारी हुई तो प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में इस गुफा को बंद करवा दिया गया. तब से अब तक यह गुफा बंद ही है.
-महंत बालकदास, महंत पातालपुरी मठ

वाराणसी: काशी नगरी अपने आप में बहुत से रहस्यों को समेटे हुई है. ऐसा ही एक रहस्य काशी की 5000 साल पुरानी इस गुफा का भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग में भीष्म पितामह ने अपने बाण से बनाई थी. इस गुफा का रास्ता बनारस से सीधे हस्तिनापुर यानी आज की दिल्ली निकलता था. द्वापर काल की इस गुफा का रहस्य पता करने की कोशिश कई लोगों ने की, लेकिन जो गए वे लौटकर फिर न आए. इस गुफा के दर्शन करने और अपनी काशी यात्रा को पूर्ण करने के उद्देश्य से बहुत से लोग दूर-दूर से आते हैं.

क्या कहते हैं पातालपुरी मठ के महंत

शहर के मध्य में स्थित मैदानी इलाके से सटे हुए नरहीपूरा में स्थित पातालपुरी मठ में द्वापर काल की इस गुफा का दर्शन आज भी किया जा सकता है. इस गुफा के बारे में पातालपुरी मठ के महंत बालक दास ने बताते हैं कि मटका जीरो द्वार 2003 में जब चल रहा था. तब इस गुफा में जाने का प्रयास मठ में मौजूद कुछ लोगों और वहां रिनोवेशन करने वाले कारीगरों ने किया. लेकिन करीब 30 फीट तक जाने के बाद ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों का दम घुटने लगा और वह लोग वापस आ गए. बाद में इस गुफा को आगे से पत्थर लगाकर बंद कर दिया गया था ताकि कभी कोई इसमें चला न जाए.

5000 साल पुरानी है काशी की ये गुफा.

ऐसे हुआ था गुफा का निर्माण
इस पौराणिक काल की गुफा का वर्णन पुराणों और मंत्रों में भी है. काशी खंड के मुताबिक काशी नरेश में अपनी तीन बेटियों अंबा, अंबे और अंबालिका के स्वयंबर में सभी राजाओं को बुलाया था, लेकिन इस स्वयंवर में भीष्म पितामह को निमंत्रण नहीं गया था. इसके बाद वह बिना निमंत्रण के ही काशी नरेश की तीनों बेटियों का हरण कर यहां से ले जाने लगे. काशी नरेश को शिव का अंश माना जाता है. इसलिए बीच में उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे और जब उनकी सेना ने भीष्म को घेरना शुरू किया, तो भीष्म पितामह ने अपनी धनुर्विद्या से तीर के जरिए एक विशाल गुफा का निर्माण किया. जो काशी से सीधे हस्तिनापुर को जोड़ती थी.

इसी गुफा के रास्ते भीष्म पितामह काशी से हस्तिनापुर के लिए निकल गए. महाभारत काल से यह गुफा आज भी मौजूद है. फिलहाल रहस्यमई इस गुफा से असलियत में पर्दा कब उठेगा यह तो यहां रिसर्च कर रही बीएचयू और अन्य कई जगह के वैज्ञानिकों की टीम ही बता सकेगी, लेकिन काशी में मौजूद यह गुफा आज भी काशी आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए काफी रहस्य का विषय है. यह भी मान्यता है कि काशी खंड में मौजूद इस गुफा का दर्शन किए बिना काशी यात्रा पूरी नहीं होती.

महंत बालक दास का कहना है कि उनके गुरु द्वारा उनको यह भी बताया गया था कि लगभग 30 साल पहले दो अंग्रेज काशी घूमने आए थे. और वह इस रहस्यमई गुफा पर रिसर्च करने के लिए मठ पहुंचे थे. पूरे साजो सामान के साथ वह इस गुफा में प्रवेश को कर गए ,लेकिन कई दिन बीतने के बाद वह लौटकर नहीं आये. जिसके बाद जब प्रशासन को इस बात की जानकारी हुई तो प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में इस गुफा को बंद करवा दिया गया. तब से अब तक यह गुफा बंद ही है.
-महंत बालकदास, महंत पातालपुरी मठ

Intro:नोट: इस स्टोरी का वीडियो पैकेज बनाकर नहीं भेजा है. पर्याप्त विजुअल वाइट और वॉक थ्रू के साथ या स्टोरी फाइल की है, यदि स्पेशल लायक हो तो बेहतर पैकेज बन सकता है.

वाराणसी: अपने आप में बहुत से रहस्यों को समेटे हुई है काशी नगरी सबसे पुरानी जीवंत नगरी काशी में आज भी कई ऐसे रहस्य शायद जिनके बारे में जानकर लोगों को हैरानी होंगी. ऐसा ही एक रहस्य द्वापर युग में भीष्म पितामह की तरफ से वाराणसी में बनाई गई एक गुफा का भी है, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि 5000 साल पुरानी इस गुफा का रास्ता बनारस से सीधे हस्तिनापुर जो वर्तमान में दिल्ली से महज 100 किलोमीटर दूर है वहां निकलता था. द्वापर काल की इस गुफा का रहस्य क्या है इस बारे में तो अब तक रिसर्च करने वाले कई लोग गुफा में जाकर इसका पता लगाने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन जो इसमें गए वह लौटकर फिर ना आए. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है पुरातन समय की किस गुफा का दर्शन करने और अपनी काशी यात्रा को पूर्ण करने के उद्देश्य से बहुत से लोग इस गुफा का दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं.


Body:वीओ-01 दरअसल वाराणसी शहर के मध्य में स्थित मैदानी इलाके से सटे हुए नरहीपूरा में स्थित पातालपुरी मठ में द्वापर काल की इस गुफा का दर्शन आज भी किया जा सकता है. इस गुफा के बारे में पातालपुरी मठ के महंत बालक दास ने बताया कि मटका जीरो द्वार 2003 में जब चल रहा था तब इस गुफा में जाने का प्रयास मठ में मौजूद कुछ लोगों और वहां रिनोवेशन करने वाले कारीगरों ने किया लेकिन करीब 30 फीट तक जाने के बाद ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों का दम घुटने लगा और वह लोग वापस आ गए. बाद में इस गुफा को आगे से पत्थर लगाकर बंद कर दिया गया था ताकि कभी कोई इसमें चला ना जाए और कोई हादसा ना हो. महंत बालक दास का कहना है कि उनके गुरु द्वारा उनको यह भी बताया गया था कि लगभग 30 साल पहले दो अंग्रेज काशी घूमने आए थे और वह इस रहस्यमई गुफा पर रिसर्च करने के लिए मठ पहुंचे थे. पूरे साजो सामान के साथ वह इस गुफा में प्रवेश को कर गए लेकिन कई दिन बीतने के बाद वह लौटकर नहीं आये. जिसके बाद जब प्रशासन को इस बात की जानकारी हुई तो प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में इस गुफा को बंद करवा दिया गया. तब से अब तक यह गुफा बंद ही है.

बाईट- महंत बालकदास, महंत पातालपुरी मठ


Conclusion:वीओ-02 पातालपुरी मठ के महंत स्वामी बालक दास खतरनाक की इस पौराणिक काल की गुफा का वर्णन पुराणों और मंत्रों में भी है इस केंद्र पुराण और काशी खंड के मुताबिक काशी नरेश में अपनी तीन बेटियों अंबा, अंबे और अंबालिका के स्वयंबर मैं सभी राजाओं को बुलाया था लेकिन इस स्वयंवर में भीष्म पितामह को निमंत्रण नहीं गया था इसके बाद वह बिना निमंत्रण के ही काशी और काशी नरेश की तीनों बेटियों का हरण कर यहां से ले जाने लगे काशी नरेश को शिव का अंश माना जाता है इसलिए बीच में उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे और जब उनकी सेना ने भीष्म को घेरना शुरू किया तो भीष्म पितामह ने अपनी धनुर्विद्या से तीर के जरिए एक विशाल गुफा का निर्माण किया जो काशी से सीधे हस्तिनापुर को जोड़ती थी. इसी गुफा के रास्ते भीष्म पितामह काशी से हस्तिनापुर के लिए निकल गए महाभारत काल से यह गुफा आज भी मौजूद है. फिलहाल रहस्यमई इस गुफा से असलियत में पर्दा कब उठेगा यह तो यहां रिसर्च कर रही बीएचयू और अन्य कई जगह के वैज्ञानिकों की टीम ही बता सकेगी, लेकिन काशी में मौजूद यह गुफा आज भी काशी आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए काफी रहस्य का विषय है यह भी मान्यता है कि काशी खंड में मौजूद इस गुफा का दर्शन किए बिना काशी यात्रा पूरी नहीं होती.

बाईट- श्रीराम तिवारी, दर्शनार्थी

गोपाल मिश्र

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