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जब काशी में गांधी जी के भाषण से नाराज हो गए थे महाराज और वायसराय - पवित्र हो गई बीएचयू की भूमि

वाराणसी का काशी हिंदू विश्वविद्यालय अपने नाम से स्वत: ही हिंदी के विस्तार और महानता की गाथा गाता है. गांधी जी का भी यहां से गहरा लगाव था. अपने पूरे जीवन काल में महात्मा गांधी लगभग 11 बार बनारस आए, जिसमें से चार बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आए. इस दौरान एक बार अपने भाषण के दौरान मंच से ही राजाओं और वायसराय पर तीखी टिप्पणी की थी.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष.
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Published : Jan 30, 2021, 12:42 PM IST

वाराणसी : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 73वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश आज उनको याद कर रहा है. साल 1948 में आज के ही दिन भले ही गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई हो, लेकिन आज भी वे विचारों में जीवित हैं. गांधीजी का काशी से गहरा लगाव था, खास करके बीएचयू और महामना मदन मोहन मालवीय से. यही वजह थी कि कई बार महात्मा गांधी बनारस आए. जिनमें से चार बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों और मालवीय जी से मिलने आए. वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना दिवस पर महात्मा गांधी ने मंच से ही वहां मौजूद राजाओं और वायसराय पर तीखी टिप्पणी की थी. जिससे यह लोग नाराज भी हो गए थे.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

यादों को रखा है संरक्षित
महात्मा गांधी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय और भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय, तीनों एक कड़ी हैं. आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन, भारत कला भवन बीएचयू स्थापना से लेकर स्वतंत्रा आंदोलन तक के चित्रों को संजो कर रखा गया है. उसके साथ ही बीएचयू कैंपस में गांधी चबूतरा मौजूद है, जहां 1942 सें गांधी जी ने यहीं पर संध्या वन्दन किया था. आने वाली पीढ़ी को एक सही दिशा निर्देश देने के लिए भारत के कई विभूतियों का चित्र यहां पर संजोकर रखा गया है. यहां एनी बेसेंट, जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, ऐसे तमाम विभूतियों का चित्र संरक्षित है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

महात्मा गांधी चार बार आए बीएचयू
अपने पूरे जीवन काल में महात्मा गांधी लगभग 11 बार बनारस आए, जिसमें से चार बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आए. पहली बार 6 फरवरी 1916, दूसरी बार 1920 सें लगभग 1 हफ्ते का समय गुजारा, इसके बाद 10 फरवरी 1921 को काशी विद्यापीठ की स्थापना के समय, वहीं आखिरी बार राष्ट्रपिता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रजत समारोह में 21 जनवरी 1942 को आए थे.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

गांधी जी के भाषण से नाराज हो गए थे वायसराय
वहीं बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर बाला लखेंद्र ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 फरवरी में हुई थी. वहीं स्थापना दिवस कार्यक्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी शामिल हुए. इस दौरान महात्मा गांधी ने अपनी बातों को हिंदी में रखा. लौगौं को संबोधित करते हुए गांधी जी ने कहा कि इस महान विद्या पीठ के प्रांगण में अपने ही देशवासियों से एक विदेशी भाषा में बोलना पड़ा है, यह बड़ी शर्म की बात है. गांधीजी यहीं नहीं रुके उन्होंने तत्कालीन वायसराय और दरभंगा नरेश सहित बड़े-बड़े राजाओं को रेशमी वस्त्र और गहने पहने देखकर मंच से कहा, ''मुझे लगता है कि मैं इन अमीरों से कहूं कि जब तक आप लोग यह जेवरात उतारकर गरीबों को नहीं देते, इन्हें गरीबों की धरोहर मानकर नहीं चलते, तब तक भारत का कल्याण नहीं होगा. भारत की ऐसी स्थिति में ऐसे लोगों का भी बहुत योगदान है". इसके बाद कई राजा-महाराजा नाराज होकर जाने लगे. वहीं एनी बेसेंट के मना करने पर गांधी जी अपना भाषण समाप्त करने जा रहे थे, तब वहां मौजूद जनता ने और बोलिए के नारे लगाए.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
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यादों को रखा गया है संरक्षित.

पवित्र हो गई बीएचयू की भूमि
डॉक्टर. बाला लखेंद्र ने बताया कि गांधी जी 1942 में बीएचयू आए. उस समय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे. उस दौरान उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा था, "हमारी काशी तो पवित्र है लेकिन महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आने से यह संस्थान और पवित्र हो गया".

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

मिलती है प्रेरणा
डॉ. बाला लखेंद्र ने कहा कि आज भी बीएचयू कैंपस में गांधी चबूतरा मौजूद है. जहां पर हम 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को बापू को याद करते हैं. उसके साथ ही मालवीय भवन है, जहां पर इन दो महापुरुषों की स्मृति संजो कर रखी गई है. यह दोनों स्थान हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जो हमें प्रेरणा देती है.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
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वाराणसी : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 73वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश आज उनको याद कर रहा है. साल 1948 में आज के ही दिन भले ही गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई हो, लेकिन आज भी वे विचारों में जीवित हैं. गांधीजी का काशी से गहरा लगाव था, खास करके बीएचयू और महामना मदन मोहन मालवीय से. यही वजह थी कि कई बार महात्मा गांधी बनारस आए. जिनमें से चार बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों और मालवीय जी से मिलने आए. वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना दिवस पर महात्मा गांधी ने मंच से ही वहां मौजूद राजाओं और वायसराय पर तीखी टिप्पणी की थी. जिससे यह लोग नाराज भी हो गए थे.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
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यादों को रखा है संरक्षित
महात्मा गांधी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय और भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय, तीनों एक कड़ी हैं. आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन, भारत कला भवन बीएचयू स्थापना से लेकर स्वतंत्रा आंदोलन तक के चित्रों को संजो कर रखा गया है. उसके साथ ही बीएचयू कैंपस में गांधी चबूतरा मौजूद है, जहां 1942 सें गांधी जी ने यहीं पर संध्या वन्दन किया था. आने वाली पीढ़ी को एक सही दिशा निर्देश देने के लिए भारत के कई विभूतियों का चित्र यहां पर संजोकर रखा गया है. यहां एनी बेसेंट, जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, ऐसे तमाम विभूतियों का चित्र संरक्षित है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

महात्मा गांधी चार बार आए बीएचयू
अपने पूरे जीवन काल में महात्मा गांधी लगभग 11 बार बनारस आए, जिसमें से चार बार वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आए. पहली बार 6 फरवरी 1916, दूसरी बार 1920 सें लगभग 1 हफ्ते का समय गुजारा, इसके बाद 10 फरवरी 1921 को काशी विद्यापीठ की स्थापना के समय, वहीं आखिरी बार राष्ट्रपिता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रजत समारोह में 21 जनवरी 1942 को आए थे.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

गांधी जी के भाषण से नाराज हो गए थे वायसराय
वहीं बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर बाला लखेंद्र ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 फरवरी में हुई थी. वहीं स्थापना दिवस कार्यक्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी शामिल हुए. इस दौरान महात्मा गांधी ने अपनी बातों को हिंदी में रखा. लौगौं को संबोधित करते हुए गांधी जी ने कहा कि इस महान विद्या पीठ के प्रांगण में अपने ही देशवासियों से एक विदेशी भाषा में बोलना पड़ा है, यह बड़ी शर्म की बात है. गांधीजी यहीं नहीं रुके उन्होंने तत्कालीन वायसराय और दरभंगा नरेश सहित बड़े-बड़े राजाओं को रेशमी वस्त्र और गहने पहने देखकर मंच से कहा, ''मुझे लगता है कि मैं इन अमीरों से कहूं कि जब तक आप लोग यह जेवरात उतारकर गरीबों को नहीं देते, इन्हें गरीबों की धरोहर मानकर नहीं चलते, तब तक भारत का कल्याण नहीं होगा. भारत की ऐसी स्थिति में ऐसे लोगों का भी बहुत योगदान है". इसके बाद कई राजा-महाराजा नाराज होकर जाने लगे. वहीं एनी बेसेंट के मना करने पर गांधी जी अपना भाषण समाप्त करने जा रहे थे, तब वहां मौजूद जनता ने और बोलिए के नारे लगाए.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

पवित्र हो गई बीएचयू की भूमि
डॉक्टर. बाला लखेंद्र ने बताया कि गांधी जी 1942 में बीएचयू आए. उस समय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे. उस दौरान उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा था, "हमारी काशी तो पवित्र है लेकिन महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आने से यह संस्थान और पवित्र हो गया".

यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.
यादों को रखा गया है संरक्षित.

मिलती है प्रेरणा
डॉ. बाला लखेंद्र ने कहा कि आज भी बीएचयू कैंपस में गांधी चबूतरा मौजूद है. जहां पर हम 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को बापू को याद करते हैं. उसके साथ ही मालवीय भवन है, जहां पर इन दो महापुरुषों की स्मृति संजो कर रखी गई है. यह दोनों स्थान हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जो हमें प्रेरणा देती है.

यादों को रखा गया है संरक्षित.
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