वाराणसी: इंजीनियरिंग की पढ़ाई... विदेशों में लाखों का पैकेज... ये सब छोड़कर देश सेवा का जज्बा पाले गांव का लड़का बना लेफ्टिनेंट (Lieutenant). सुनने में यह आपको फिल्मी लग सकता है पर यह हकीकत है. इसे सच करके दिखाया है वाराणसी के चोलापुर विकास खंड के बाबतपुर गांव के रहने वाले किशन चौबे (Kishan Choubey) ने, जो मलेशिया की कंपनी में 36 लाख रुपये सालाना का पैकेज छोड़कर सेना में लेफ्टिनेंट बने हैं.
किशन चौबे के पिता का नाम तरुण कुमार चौबे है. वह अध्यापक हैं. किशन उनके इकलौते बेटे हैं. किशन को अपने चाचा ए.के चतुर्वेदी (जूनियर कमिश्नर ऑफिसर) से बचपन से ही सेना के बारे में जानकारी मिली. उनसे ही प्रेरणा और उत्साहवर्धन के कारण किशन के अंदर सेना में शामिल होने की भावना जागृत हुई. पढ़ाई के साथ-साथ सेना में शामिल होने का इरादा बढ़ता गया. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत होने के बाद भी किशन एसएसबी की तैयारी करते रहे.
शांत और सरल स्वभाव
किशन के पिता ने बताया कि बचपन से ही किशन शालीन एवं शांत स्वभाव स्वभाव के प्रेजेंट आफ माइंड थे. उन्हें प्राकृतिक सुंदरता, खेलकूद काफी पसंद था. किताबें पढ़ने का भी उन्हें काफी शौक था. ट्रेनिंग के दौरान करीब 500 किताबें किशन ने पढ़ ली थी. किशन को सन 2015 में इंजीनियरिंग पास आउट होने के बाद कैंपस सेलेक्शन में पांच लाख का पैकेज मिला था. कंपनी में अच्छे काम के कारण मेडल और पुरस्कार भी दिया गया. कंपनी ने 6 महीने में काम करने के लिए उन्हें मलेशिया भेज दिया, जहां पर 18 लाख का पैकेज था. इसके बाद अन्य कंपनी के भी ऑफर आने लगे, जिसके बाद किशन बैंकॉक चले गए, जहां पर 24 लाख का पैकेज मिला था. बैंकॉक के बाद सिंगापुर के लिए ऑफर आया, जहां 36 लाख का पैकेज था पर उसको त्याग कर किशन ने देश सेवा को चुना.
बचपन से थे होनहार
किशन की माता ऊषा चौबे ने बताया कि किशन बहुत शांत और सरल स्वभाव का लड़का है. उसकी कोई शिकायत अभी तक नहीं मिली है. बचपन से ऐसा लग रहा था कि वह बड़ा होकर कुछ करके दिखाएगा. मां ने आगे बताया कि पैसा बहुत कमा लेंगे पर ये जो देश सेवा है, ये हर जगह नहीं हो पाएगा. किशन ने देश सेवा का चुनाव कर अपने परिवार, गांव, समाज और रिश्तेदारों का मान बढ़ाया है.
किशन को देखकर मिलती है प्रेरणा
किशन के बचपन के साथी सुनील चौबे ने बताया कि किशन को देखकर बचपन से ही प्रेरणा मिलती थी. वह लेफ्टिनेंट बन गए हैं. लेफ्टिनेंट होना देश के सर्वोच्च पदों में से एक है. लेफ्टिनेंट बनना गांव के लिए सम्मान की बात है. उनसे मिलकर हम लोगों ने ट्रेनिंग एवं तैयारियों के विषय में बात की, जिस पर उन्होंने हम लोगों का मार्गदर्शन किया.
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'बचपन से था सेना की तरफ झुकाव'
लेफ्टिनेंट किशन ने बताया कि इंजीनियरिंग करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा था. चाचा सेना में सर्विंग सूबेदार हैं. उनके यहां गर्मी की छुट्टियों में जाना होता था, जहां से सेना के लाइफस्टाइल के बारे में पता चला. हमेशा से सेना की तरफ से झुकाव था. जॉब के समय सेना में जाने की तैयारियां करता रहता था. इस बार फाइनली सेलेक्शन हो गया.
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किशन ने बताया, बेसिक शिक्षा कक्षा 1 तक गांव के ही सरला एकेडमी में हुई. इसके बाद मुंबई के अभिनव विद्यालय में कक्षा 2 से 10 तक और केवी पेंडिकर कॉलेज में 11 और 12 की पढ़ाई हुई. इसके बाद मुंबई यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की डिग्री ली. इस दौरान एसएसबी की तैयारी भी कर रहा था. तीन जून 2020 को लेफ्टिनेंट के रूप में चयन हो गया था, जिसके बाद ट्रेनिंग के लिए कोरोना के कारण 3 महीने की देरी हो गई. उसी समय सिंगापुर से 36 लाख रुपये सालाना पैकेज का ऑफर मिला. उस समय दुविधा हो गई कि क्या किया जाए. फाइनली मैंने देश सेवा को चुना.