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हिंदी दिवस: बदहाल पड़ी है हिंदी की सबसे प्राचीन पीठ नागरी प्रचारिणी सभा

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Published : Sep 14, 2019, 9:52 PM IST

हिंदी और देवनागरी लिपि को बढ़ावा देने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाने वाली वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा आज बदहाल पड़ी हुई है. यहां हिंदी दिवस के अवसर पर भी किसी तरह का कोई आयोजन नहीं किया जा सका.

नागरी प्रचारिणी सभा

वाराणसी: हिंदी दिवस के मौके पर देशभर में हिंदी को बढ़ावा देने को लेकर लंबी-लंबी बातें होती हैं. कहीं बैठकें तो कहीं हिंदी दिवस का आयोजन कर मातृभाषा को नमन किया जा रहा है. इन सब के बावजूद हिंदी के हालात कब सुधरेंगे यह सवाल बड़ा है. हिंदी की वास्तविक पीठ जिसने हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया आज वह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.

देखें खास रिपोर्ट.

वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना 126 साल पहले तीन नाबालिग छात्रों ने मिलकर की थी. 1893 में क्वींस कॉलेज के नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले श्याम सुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र और शिव कुमार सिंह ने जिस तरह से इस पीठ को शुरू किया उसने हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया. दरअसल इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का प्रचार-प्रसार करना था. उस समय सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी नहीं थी, बल्कि फारसी और उर्दू थी. देवनागरी लिपि को विश्व की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि सिद्ध करने वाले प्रमाणिक दस्तावेज नागरी प्रचारिणी सभा ने ही तैयार करवाए थे. न्यायालय और सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी को लिपि के रूप में देवनागरी की मान्यता का आंदोलन करने में भी सभा का महत्वपूर्ण योगदान था.

इसे भी पढ़ें- हिंदी दिवस: क्यों हिंदी है जनमानस की भाषा, जानें

नागरी प्रचारिणी सभा ने हिंदी के हस्त लेखों की खोज कर उसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब और देश के अलग-अलग प्रांतों से इकट्ठा कर एक ही स्थान पर लाकर रखने का काम किया. इस वजह से आज 50,000 से ज्यादा पांडुलिपि या उपन्यास और डेढ़ लाख से ज्यादा पत्रिकाएं आज भी यहां पर सुरक्षित हैं. वहीं अब इनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, क्योंकि इस सभा को न ही सरकारी मदद दी जा रही है और न ही कोई सरकार इस ओर ध्यान दे रही है.

हिंदी की सबसे पुरानी शोध पत्रिका मानी जाती है नागरी प्रचारिणी पत्रिका
हिंदी की सबसे प्राचीन शोध पत्रिका नागरी प्रचारिणी पत्रिका को माना जाता है. इस पत्रिका के संपादक मंडल में बाबू श्याम सुंदर दास, गौरी शंकर, हीराचंद ओझा, रामचंद्र शुक्ल, चंद्रधर शर्मा, गुलेरी जय, चंद्र विद्यालकार, डॉक्टर संपूर्णानंद आचार्य, नरेंद्र देव और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान थे. यहां मौजूद वाचनालय में आज भी हिंदी के तमाम उन पुरोधाओं की तस्वीरें मौजूद हैं, जिन्होंने हिंदी के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. आज यह स्थान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. हिंदी दिवस पर दोपहर तक यहां कोई कार्यक्रम तक आयोजित नहीं हुआ था, बस यह कहा गया कि शाम को आयोजन होगा. इसके बावजूद पूरा दिन बीत जाने के बाद भी हिंदी की इस पीठ पर एक दिया जलाने वाला कोई नहीं था.

बताया जाता है कि नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना कर हजारों पत्र-पत्रिकाओं की फाइलें, जिनमें लगभग 50,000 हस्त लेख और हिंदी के अन्य ग्रंथों का विशाल संग्रह तैयार किया गया. डॉ. श्याम सुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र, हीरानंद शास्त्री, माया शंकर, राहुल सांकृत्यायन समेत महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जैसी शख्सियतों ने इस पूरे संग्रह को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. इतना ही नहीं महावीर प्रसाद द्विवेदी, डॉक्टर संपूर्णानंद, कृष्णदेव प्रसाद गौड़, बाबू हरिश्चंद्र समेत अन्य कई बड़े हिंदी के कथाकार साहित्यकारों का भी यहां अविस्मरणीय योगदान है.

इसे भी पढ़ें- हिंदी दिवस: प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ने बताई हिंदी की असली परिभाषा

सभा की तरफ से 1904 में अथ्यून्नाथन वैज्ञानिक शैली पर हिंदी शब्दकोश तैयार करने का बीड़ा भी उठाया गया, जिसे ढाई दशक में मूर्त रूप दिया गया. बाबू श्याम सुंदर दास इसके संपादक और हिंदी के शीर्षस्थ विद्वान बालकृष्ण भट्ट आचार्य, रामचंद्र शुक्ल आदि इसके संपादक मंडल में थे. अब हिंदी की पीठ बदहाल है और यहां सैलरी देने को भी पैसे नहीं हैं. इस वजह से कर्मचारी बस अपना जीवन यापन करने के लिए यहां पर रुके हुए हैं. बिल्डिंग की स्थिति जर्जर है. यहां रखे तमाम लेख व पांडुलिपियों की हालत भी अब खराब होती जा रही है.

वाराणसी: हिंदी दिवस के मौके पर देशभर में हिंदी को बढ़ावा देने को लेकर लंबी-लंबी बातें होती हैं. कहीं बैठकें तो कहीं हिंदी दिवस का आयोजन कर मातृभाषा को नमन किया जा रहा है. इन सब के बावजूद हिंदी के हालात कब सुधरेंगे यह सवाल बड़ा है. हिंदी की वास्तविक पीठ जिसने हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया आज वह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.

देखें खास रिपोर्ट.

वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना 126 साल पहले तीन नाबालिग छात्रों ने मिलकर की थी. 1893 में क्वींस कॉलेज के नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले श्याम सुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र और शिव कुमार सिंह ने जिस तरह से इस पीठ को शुरू किया उसने हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया. दरअसल इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का प्रचार-प्रसार करना था. उस समय सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी नहीं थी, बल्कि फारसी और उर्दू थी. देवनागरी लिपि को विश्व की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि सिद्ध करने वाले प्रमाणिक दस्तावेज नागरी प्रचारिणी सभा ने ही तैयार करवाए थे. न्यायालय और सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी को लिपि के रूप में देवनागरी की मान्यता का आंदोलन करने में भी सभा का महत्वपूर्ण योगदान था.

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नागरी प्रचारिणी सभा ने हिंदी के हस्त लेखों की खोज कर उसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब और देश के अलग-अलग प्रांतों से इकट्ठा कर एक ही स्थान पर लाकर रखने का काम किया. इस वजह से आज 50,000 से ज्यादा पांडुलिपि या उपन्यास और डेढ़ लाख से ज्यादा पत्रिकाएं आज भी यहां पर सुरक्षित हैं. वहीं अब इनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, क्योंकि इस सभा को न ही सरकारी मदद दी जा रही है और न ही कोई सरकार इस ओर ध्यान दे रही है.

हिंदी की सबसे पुरानी शोध पत्रिका मानी जाती है नागरी प्रचारिणी पत्रिका
हिंदी की सबसे प्राचीन शोध पत्रिका नागरी प्रचारिणी पत्रिका को माना जाता है. इस पत्रिका के संपादक मंडल में बाबू श्याम सुंदर दास, गौरी शंकर, हीराचंद ओझा, रामचंद्र शुक्ल, चंद्रधर शर्मा, गुलेरी जय, चंद्र विद्यालकार, डॉक्टर संपूर्णानंद आचार्य, नरेंद्र देव और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान थे. यहां मौजूद वाचनालय में आज भी हिंदी के तमाम उन पुरोधाओं की तस्वीरें मौजूद हैं, जिन्होंने हिंदी के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. आज यह स्थान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. हिंदी दिवस पर दोपहर तक यहां कोई कार्यक्रम तक आयोजित नहीं हुआ था, बस यह कहा गया कि शाम को आयोजन होगा. इसके बावजूद पूरा दिन बीत जाने के बाद भी हिंदी की इस पीठ पर एक दिया जलाने वाला कोई नहीं था.

बताया जाता है कि नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना कर हजारों पत्र-पत्रिकाओं की फाइलें, जिनमें लगभग 50,000 हस्त लेख और हिंदी के अन्य ग्रंथों का विशाल संग्रह तैयार किया गया. डॉ. श्याम सुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र, हीरानंद शास्त्री, माया शंकर, राहुल सांकृत्यायन समेत महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जैसी शख्सियतों ने इस पूरे संग्रह को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. इतना ही नहीं महावीर प्रसाद द्विवेदी, डॉक्टर संपूर्णानंद, कृष्णदेव प्रसाद गौड़, बाबू हरिश्चंद्र समेत अन्य कई बड़े हिंदी के कथाकार साहित्यकारों का भी यहां अविस्मरणीय योगदान है.

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सभा की तरफ से 1904 में अथ्यून्नाथन वैज्ञानिक शैली पर हिंदी शब्दकोश तैयार करने का बीड़ा भी उठाया गया, जिसे ढाई दशक में मूर्त रूप दिया गया. बाबू श्याम सुंदर दास इसके संपादक और हिंदी के शीर्षस्थ विद्वान बालकृष्ण भट्ट आचार्य, रामचंद्र शुक्ल आदि इसके संपादक मंडल में थे. अब हिंदी की पीठ बदहाल है और यहां सैलरी देने को भी पैसे नहीं हैं. इस वजह से कर्मचारी बस अपना जीवन यापन करने के लिए यहां पर रुके हुए हैं. बिल्डिंग की स्थिति जर्जर है. यहां रखे तमाम लेख व पांडुलिपियों की हालत भी अब खराब होती जा रही है.

Intro:हिंदी दिवस स्पेशल:

वाराणसी: आज हिंदी दिवस है और हिंदी दिवस के मौके पर देशभर में हिंदी को बढ़ावा देने और हिंदी को सभी की भाषा बनाने के लिए लंबी-लंबी बातें हो रही हैं कहीं बैठक हो रही है तो कहीं हिंदी दिवस पर आयोजन कर मातृभाषा को नमन किया जा रहा है लेकिन इन सब से क्या सच में हिंदी की हालात सुधरेंगे यह सवाल बड़ा है यह सवाल महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाता है क्योंकि हिंदी की वास्तविक पीठ जिसने हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया आज वह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है या पीठ है वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा 126 साल पहले तीन नाबालिग छात्रों ने मिलकर नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की 1893 में क्वींस कॉलेज के नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले श्याम सुंदर दास पंडित रामनारायण मिश्र और शिव कुमार सिंह ने जिस तरह से इस पीठ को शुरू किया उसने हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया लेकिन आज जब हिंदी दिवस का मौका है तो यह पीठ वीरान है हिंदी के कर्ताधर्ता हिंदी साहित्य में एक अलग पहचान बना चुके लोग ही शायद हिंदी दिवस के मौके पर इस पीठ पर आकर नमन करना मुनासिब नहीं समझते पेश है हिंदी की इस पीठ की बदहाली पर यह खास रिपोर्ट.


Body:वीओ-01 दरअसल इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का प्रचार प्रसार करना था उस समय सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी नहीं थी बल्कि फारसी और उर्दू थी देवनागरी लिपि को विश्व की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि सिद्ध करने वाले प्रमाणिक दस्तावेज नागरी प्रचारिणी सभा नहीं तैयार करवाए थे न्यायालय और सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी होली पी के रूप में देवनागरी की मान्यता का आंदोलन करने में भी सभा का महत्वपूर्ण योगदान था हिंदी के हंसते लेखों की खोज नागरी प्रचारिणी सभा ने कर उसे उत्तर प्रदेश बिहार राजस्थान पंजाब और देश के अलग-अलग प्रांतों से इकट्ठा कर एक ही स्थान पर लाकर रखने का काम किया जिसकी वजह से आज 50,000 से ज्यादा पांडुलिपि या उपन्यास डेढ़ लाख से ज्यादा पत्रिकाएं आज भी यहां पर सुरक्षित हैं लेकिन अब इनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है क्योंकि नाही सरकारी मदद इस सभा को दी जा रही है और ना ही कोई सरकार इस ओर ध्यान दे रही है हिंदी की सबसे प्राचीन शोध पत्रिका नागरी प्रचारिणी पत्रिका को माना जाता है इस पत्रिका के संपादक मंडल में बाबू श्याम सुंदर दास गौरी शंकर हीराचंद ओझा रामचंद्र शुक्ल चंद्रधर शर्मा गुलेरी जय चंद्र विद्यालकार डॉक्टर संपूर्णानंद आचार्य नरेंद्र देव और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान थे जिसकी बांध की आज भी इस स्थान पर देखने को मिलती है यहां पर मौजूद वाचनालय में आज भी हिंदी के तमाम उन पुरोधाओं की तस्वीरें मौजूद हैं जिन्होंने हिंदी के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया लेकिन आज यह स्थान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है हिंदी दिवस के मौके पर यहां मौजूद हिंदी दिवस का बोर्ड जमीन पर पड़ा रहा और किसी को उसे उठाने की सुध नहीं थी हिंदी दिवस पर कोई कार्यक्रम दोपहर तक आयोजित नहीं हुआ था बस यह कहा गया शाम को आयोजन होगा लेकिन पूरा दिन बीत जाने के बाद भी हिंदी की इस पीठ पर एक दिया जलाने वाला कोई नहीं था अब बिजली ना होने पर यहां आने वाले हिंदी भाषा को जानने और समझने की इच्छा रखने वाले अंधेरे में ही अपने ज्ञान अर्जन में जुटे थे.

बाईट- राघवेन्द्र प्रताप यादव, सदस्य, नागरी प्रचारिणी सभा काशी
बाईट- कनिष्क कुमार, हिंदी के छात्र
बाईट- इंद्रजीत, कर्मचारी, नागरी प्रचारिणी सभा


Conclusion:बताया जाता है कि नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना कर हजारों पत्र-पत्रिकाओं की फाइलें जिनमें लगभग 50,000 हस्त लेख और हिंदी के अन्य ग्रंथों का विशाल संग्रह तैयार किया गया. डॉ श्याम सुंदर दास पंडित रामनारायण मिश्र आगे के पिता हीरानंद शास्त्री माया शंकर याज्ञिक राहुल सांकृत्यायन समेत महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जैसी शख्सियतों ने इस पूरे संग्रह को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया इतना ही नहीं महावीर प्रसाद द्विवेदी डॉक्टर संपूर्णानंद कृष्णदेव प्रसाद गौड़ बाबू हरिश्चंद्र समेत अन्य कई बड़े हिंदी के कथाकार साहित्यकारों का योगदान भी यहां अविस्मरणीय है सभा की तरफ से 1904 में अथ्यून्नाथन वैज्ञानिक शैली पर हिंदी शब्दकोश तैयार करने का बीड़ा भी उठाया गया जिसे ढाई दशक में मूर्त रूप दिया गया बाबू श्याम सुंदर दास दिए इसके संपादक और हिंदी के शीर्षस्थ विद्वान बालकृष्ण भट्ट आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि इसके संपादक मंडल में थे या कोर्स उस युग में भी आज की भांति आधुनिक भारतीय भाषाओं का सबसे अधिक विस्तृत और प्रामाणिक माना जाता है लेकिन अब हिंदी की पीठ बदहाल है सैलरी देने को पैसे नहीं है जिसकी वजह से कर्मचारी बस अपना जीवन यापन करने के लिए यहां पर रुके हुए हैं बिल्डिंग की स्थिति जर्जर है यहां रखे तमाम लेख व पांडुलिपियों की हालत भी अब खराब होती जा रही है कुल मिलाकर हिंदी की हफीत बदहाली की स्थिति से गुजर रही है और ना ही यहां कोई दिया दिखाने वाला है ना हिंदी दिवस के मौके पर इस पीठ में नमन करने वाला.

बाईट- सभाजीत शुक्ल, असिस्टेंट सेक्रेटरी नागरी प्रचारिणी सभा काशी

गोपाल मिश्र

9839809074
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