वाराणसी: काशी राज परिवार के बीच छिड़ा विवाद एक बार फिर से चर्चा का विषय बना हुआ है. महाराजा विभूति नारायण सिंह के निधन के 5 सालों बाद 2005 से भाई-बहनों के बीच विवाद शुरू हो गया था. इसके बाद विवाद ने साल दर साल कई मोड़ लिए. जमीन और प्रॉपर्टी का विवाद धीरे-धीरे भाइयों-बहनों में चोरी जैसी आरोपों तक पहुंच चुका है. 2005 से चल रहा यह विवाद मुकदमों के तौर पर समय-समय पर सामने आता रहा है. आइए विस्तार से बताते हैं कुंवर अनंत नारायण सिंह और उनकी बहनों कृष्णप्रिया, हरिप्रिया और विष्णु प्रिया के बीच चल रहे प्रॉपर्टी विवाद के बारे में...
2005 में पहला विवाद:पूर्व काशी नरेश डॉ विभूति नारायण सिंह की तीन बेटियां हैं. विष्णु प्रिया, हरि प्रिया और कृष्ण प्रिया जबकि एक बेटे कुंवर अनंत नारायण सिंह किले के अंदर ही रहते हैं. तीनों बहनों और कुंवर के बीच का यह विवाद किले के अंदर से लेकर बाहर तक की प्रॉपर्टी को लेकर बना हुआ है. 2005 में पहला विवाद एक जमीन को लेकर हुआ जिसमें मुकदमे बाजी शुरु हुई. इसके बाद रामनगर किले के अंदर अपने हिस्से में चोरी छुपे घुसने और तोड़फोड़ करने जैसे आरोप लगाकर बहनों ने तरफ से अपने भाई के खिलाफ तहरीर दी गई. इसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और 2018 में कुंवर अनंत नारायण सिंह की तरफ से काशी स्टेट के राजकीय चिन्ह के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए बहन हरिप्रिया के खिलाफ रामनगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया. यह मुकदमा इसलिए था क्योंकि हरिप्रिया के बेटे के वैवाहिक कार्यक्रम में छपे शादी के निमंत्रण कार्ड में राजकीय चिन्ह का प्रयोग किया गया था. जिस पर अनंत नारायण सिंह को आपत्ति थी.
राजकीय चिन्ह का इस्तेमाल:अनंत नारायण सिंह का आरोप था कि काशी नरेश के द्वारा उसके उत्तराधिकारी के लिए ही इस चिन्ह का प्रयोग करने का निर्देश था, जो लिखित तौर पर सारी चीजों में स्पष्ट भी है. उसके बाद भी राजकीय चिन्ह का इस्तेमाल गद्दी नशीन के द्वारा करने के अलावा बिना किसी आधिकारिक सूचना परमिशन के किसी और के द्वारा किया जाना ही गलत है. यह सिर्फ उत्तराधिकारी कर सकता है, क्योंकि उसके लिए वह रजिस्टर्ड हैं. जिसके बाद दूसरी बहन कृष्णप्रिया ने भाई पर गंभीर आरोप लगाए थे और कुंवर अनंत नारायण ने दावा किया था कि विभूति नारायण सिंह ने सन 2000 में एक वसीयतनामा लिखा था. विवाद के बाद 2011 में उन्होंने बहनों से रिश्ते खत्म कर लिए थे
जमीन बेचने का आरोप: वहीं, अक्टूबर 2019 में काशी राजपरिवार की आपसी तकरार एक बार फिर सामने आई थी. इसमें राज परिवार की सदस्य कृष्ण प्रिया ने जमीन के विवाद में 4 लोगों के खिलाफ तहरीर दी थी. जिसमें राज परिवार के सदस्य को भी आरोपी बनाया था. तहरीर में उन्होंने बिना बताए मिंट हाउस और पटनवा की जमीन के साथ कुछ और क्षेत्रों में मौजूद काशीराज परिवार की जमीन कारोबारियों को बेचने का आरोप लगाया था. जिस पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया. फिलहाल वर्तमान में मुकदमे को लेकर एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस संतोष कुमार सिंह का कहना है कि सुरक्षा अधिकारी की तरफ से जो तहरीर दी गई थी उसके हिसाब से एफआईआर दर्ज कर ली गई है, जो भी चीजें जांच में सामने आएंगी. उस हिसाब से कार्रवाई होगी.
विवाद का घटना क्रम: 25 दिसंबर 2000 को पूर्व काशी नरेश विभूति नारायण सिंह का निधन हुआ. 2005 से अनंत नारायण और उनकी तीनों बहनों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद शुरू हुआ. इसके बाद रामनगर किले में अपने हिस्से में जबरदस्ती घुस कर कमरे में तोड़फोड़ व अन्य का आरोप लगाकर बहनों ने भाई के खिलाफ तहरीर दी थी. इसके अलावा 2018 में बनारस स्टेट के राजकीय चिन्ह का गलत इस्तेमाल करने के आरोप में अनंत नारायण की तरफ से बहन हरी प्रिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया गया था. 2019 में बहन हरिप्रिया की तरफ से भाई अनंत नारायण समेत अन्य के खिलाफ चोरी छुपे प्रॉपर्टी बेचने का आरोप लगाकर तहरीर दी गई लेकिन मुकदमा नहीं हुआ.
2021 में कोल्हापुर में जमीन की रजिस्ट्री करने के मामले में विवाद हुआ जिस पर काशीराज परिवार की बेटियों ने काम रुकवाने को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से बात की तीनों बहनों का यह आरोप है कि राजशाही परिवार में जो भी प्रॉपर्टी है वह उसकी बराबर की हकदार हैं.आनंद नारायण सिंह का आरोप है कि वह जबरदस्ती प्रॉपर्टी में हिस्सा मानती हैं जबकि पिता ने शादी के बाद तीनों के लिए बराबर हिस्सेदारी करते हुए तीनों के विवाह के बाद इनके हिस्से में बैराठ फॉर्म, कटेसर, नदेसर और बिहार के समस्तीपुर की काशीराज परिवार की संपत्तियों को बंटवारे में इन्हें दिया था.
काशीराज परिवार का दबदबा इस कदर अंग्रेजों के समय में हुआ करता था कि 1961 में एलिजाबेथ द्वितीय जब काशी आईं तो महाराजा विभूति नारायण सिंह ने उनका भव्य स्वागत किया था. उस वक्त काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने एलिजाबेथ द्वितीय को चांदी के हौदे लगे हाथी पर बैठाकर काशी का भ्रमण भी करवाया था और रामनगर किले से बाहर निकल कर उन्होंने लोगों का अभिवादन भी स्वीकार किया था. इसके अलावा महारानी ने उस वक्त मौजूद महाराजा काशी नरेश की बेंटले कार की भी सवारी की थी.
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