ETV Bharat / state

विश्‍व साक्षरता दिवस: बीना सिंह के सहारे जीवन के अंतिम पड़ाव पर 'अनपढ़ का टैग' हटा रहीं महिलाएं

बीना सिंह कहती हैं कि बच्चों की तरह वो अनपढ़ और असहाय महिलाओं को शिक्षित करना चाहती हैं. शादी के बाद पति और परिवार के सहयोग से आसपास की अनपढ़ वृद्ध माताओं को शिक्षित करने लगी. इस काम के प्रति उनका जज्बा देख आसपास की अनेक वृद्ध महिलाएं जुड़ती गईं.

बुजुर्ग माताओं को शिक्षित कर रहीं बीना सिंह
बुजुर्ग माताओं को शिक्षित कर रहीं बीना सिंह
author img

By

Published : Aug 31, 2021, 3:11 PM IST

Updated : Sep 8, 2021, 9:32 AM IST

वाराणसी: कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती बस सिखाने वाला मिलना चाहिए. जब सिखाने वाला उम्र की परवाह किए बिना सामने वाले को ज्ञान देने को तैयार हो तो फिर उम्र के अंतिम पड़ाव में भी बहुत कुछ सीख मिल जाती है. ऐसा ही नजारा वाराणसी स्थित भुल्लनपुर गांव में देखने को मिल रहा है. यहां पर कल तक अंगूठा छाप का टैग लेकर लोगों के बीच अनपढ़ गवार कहलाने वाली वह वृद्ध महिलाएं अब अपने हाथों से हस्ताक्षर करना सीख गई हैं, जो कल तक हाथों में पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रयास इसी गांव की रहने वाली बीना सिंह की वजह से सफल हो सका है. आज बीना की पाठशाला में 50 साल पर लेकर 95 साल तक की वृद्ध महिलाएं ककहरा पढ़कर जीवन के अंतिम समय में अपने ऊपर लगे अनपढ़ के धब्बे को हटाने में जुटी हैं.

दरअसल, भुल्लनपुर गांव की रहने वाली बीना सिंह जब शादी होने के बाद गांव आईं तो महिलाओं के कम पढ़ा लिखा होने का दर्द उनको परेशान करने लगा. बीना खुद पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ ही प्रोफेशनल कोर्स भी कर चुकी हैं. इसलिए, उन्हें महिलाओं के शिक्षित होने की जरूरत का अंदाजा है. वृद्ध महिलाओं की इस तकलीफ को देखकर उन्होंने अनपढ़ वृद्ध माताओं की एक टीम तैयार करनी शुरू की. गांव-गांव घूम कर घर-घर जाकर वृद्ध महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने ही घर के एक कमरे से वृद्ध माताओं की पाठशाला शुरू की. देखते ही देखते संख्या 5 से 50 और 50 से 65 हो गई. वर्तमान समय में यहां पर हर रोज शाम को 2 घंटे की क्लास लगा करती है. 7 सालों से बीना सिंह वृद्ध महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आइडियल वूमेन वेलफेयर सोसाइटी के साथ मिलकर काम कर रही हैं. बीना की मुहिम पति गार्गी सिंह, बिहार की रहने वाली राखी रानी, सुरेश सिंह सहित अन्य लोग सहयोग करते रहते हैं.

वाराणसी में बीना सिंह बुजुर्ग माताओं को कर रहीं शिक्षा
सबसे बड़ी बात यह है कि बिना के यहां आने वाली महिलाएं (जो कल तक अंगूठा छाप थी) वे बैंक से लेकर अन्य कामों में अंगूठे की जगह सिग्नेचर करने लगी हैं. बीना की क्लास की सबसे बुजुर्ग महिला 90 साल की शांति देवी हैं. शांति के चेहरे पर पड़ी झुर्रियां और आंखों पर लगे मोटे पावर का चश्मा उनकी उम्र को बयां करने के लिए काफी है, लेकिन शांति के अंदर जो जज्बा है वह किसी बच्चे से कम नहीं है. हाथों में पेन और कॉपी पकड़कर वह एबीसीडी भी लिखती हैं और अपना नाम भी बखूबी लिख लेती है. शांति का कहना है पहले वह पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. नाम लिखना तो बहुत दूर की बात है, लेकिन बीना सिंह के प्रयासों से वह अब बैंक में अपने सिग्नेचर करती हैं. पैसा निकालना हो तो फॉर्म भर कर देती हैं, जिसके बाद बैंक के लोग भी हैरान हैं.

शांति की ही तरह यहां पर और भी बहुत सी महिलाएं हैं जो पूरा दिन अपने घर के कामकाज को खत्म करके समय से अपने इस खास पाठशाला में पहुंच जाती हैं. हाथों में कॉपी, पेंसिल स्लेट और किताबें लेकर क, ख, ग, घ ए, बी, सी, डी पढ़ने वाली यह महिलाएं निश्चित तौर पर आज के बदलते सामाजिक परिवेश की सबसे बड़ी मिसाल हैं. यह भी साफ करता है कि यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उम्र कभी भी आड़े नहीं आती.

इसे भी पढ़ें-जापान के सहयोग से बिहार की महिलाएं सीख रहीं इंग्लिश, हिंदी और गणित

माताओं संग परिवार का भी पूरा ख्याल
फिलहाल, बीना सिंह का साथ उनकी टीम के साथ उनका परिवार भी देता है. पति चंद्रशेखर सिंह एक छोटी सी डेरी चलाते हैं और पत्नी इन महिलाओं को शिक्षित करने के साथ ही साथ घर परिवार का भी पूरा साथ देती हैं. पति के अलावा बच्चे, देवरानी, देवर और घर में मौजूद अन्य सदस्यों का भी पूरा ध्यान रखती हैं. खाना बनाना और पति के बिजनेस में उनका सहयोग करना भी बीना नहीं भूलती हैं. यही वजह है कि आज बीना के प्रयासों ने इस गांव को निरक्षर से साक्षर बनाने में बड़ा रोल अदा किया है. वृद्ध माताओं को स्कूल जाता देखकर बच्चे भी अभी स्कूल जाना चाहते हैं.

वाराणसी: कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती बस सिखाने वाला मिलना चाहिए. जब सिखाने वाला उम्र की परवाह किए बिना सामने वाले को ज्ञान देने को तैयार हो तो फिर उम्र के अंतिम पड़ाव में भी बहुत कुछ सीख मिल जाती है. ऐसा ही नजारा वाराणसी स्थित भुल्लनपुर गांव में देखने को मिल रहा है. यहां पर कल तक अंगूठा छाप का टैग लेकर लोगों के बीच अनपढ़ गवार कहलाने वाली वह वृद्ध महिलाएं अब अपने हाथों से हस्ताक्षर करना सीख गई हैं, जो कल तक हाथों में पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रयास इसी गांव की रहने वाली बीना सिंह की वजह से सफल हो सका है. आज बीना की पाठशाला में 50 साल पर लेकर 95 साल तक की वृद्ध महिलाएं ककहरा पढ़कर जीवन के अंतिम समय में अपने ऊपर लगे अनपढ़ के धब्बे को हटाने में जुटी हैं.

दरअसल, भुल्लनपुर गांव की रहने वाली बीना सिंह जब शादी होने के बाद गांव आईं तो महिलाओं के कम पढ़ा लिखा होने का दर्द उनको परेशान करने लगा. बीना खुद पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ ही प्रोफेशनल कोर्स भी कर चुकी हैं. इसलिए, उन्हें महिलाओं के शिक्षित होने की जरूरत का अंदाजा है. वृद्ध महिलाओं की इस तकलीफ को देखकर उन्होंने अनपढ़ वृद्ध माताओं की एक टीम तैयार करनी शुरू की. गांव-गांव घूम कर घर-घर जाकर वृद्ध महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने ही घर के एक कमरे से वृद्ध माताओं की पाठशाला शुरू की. देखते ही देखते संख्या 5 से 50 और 50 से 65 हो गई. वर्तमान समय में यहां पर हर रोज शाम को 2 घंटे की क्लास लगा करती है. 7 सालों से बीना सिंह वृद्ध महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आइडियल वूमेन वेलफेयर सोसाइटी के साथ मिलकर काम कर रही हैं. बीना की मुहिम पति गार्गी सिंह, बिहार की रहने वाली राखी रानी, सुरेश सिंह सहित अन्य लोग सहयोग करते रहते हैं.

वाराणसी में बीना सिंह बुजुर्ग माताओं को कर रहीं शिक्षा
सबसे बड़ी बात यह है कि बिना के यहां आने वाली महिलाएं (जो कल तक अंगूठा छाप थी) वे बैंक से लेकर अन्य कामों में अंगूठे की जगह सिग्नेचर करने लगी हैं. बीना की क्लास की सबसे बुजुर्ग महिला 90 साल की शांति देवी हैं. शांति के चेहरे पर पड़ी झुर्रियां और आंखों पर लगे मोटे पावर का चश्मा उनकी उम्र को बयां करने के लिए काफी है, लेकिन शांति के अंदर जो जज्बा है वह किसी बच्चे से कम नहीं है. हाथों में पेन और कॉपी पकड़कर वह एबीसीडी भी लिखती हैं और अपना नाम भी बखूबी लिख लेती है. शांति का कहना है पहले वह पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. नाम लिखना तो बहुत दूर की बात है, लेकिन बीना सिंह के प्रयासों से वह अब बैंक में अपने सिग्नेचर करती हैं. पैसा निकालना हो तो फॉर्म भर कर देती हैं, जिसके बाद बैंक के लोग भी हैरान हैं.

शांति की ही तरह यहां पर और भी बहुत सी महिलाएं हैं जो पूरा दिन अपने घर के कामकाज को खत्म करके समय से अपने इस खास पाठशाला में पहुंच जाती हैं. हाथों में कॉपी, पेंसिल स्लेट और किताबें लेकर क, ख, ग, घ ए, बी, सी, डी पढ़ने वाली यह महिलाएं निश्चित तौर पर आज के बदलते सामाजिक परिवेश की सबसे बड़ी मिसाल हैं. यह भी साफ करता है कि यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उम्र कभी भी आड़े नहीं आती.

इसे भी पढ़ें-जापान के सहयोग से बिहार की महिलाएं सीख रहीं इंग्लिश, हिंदी और गणित

माताओं संग परिवार का भी पूरा ख्याल
फिलहाल, बीना सिंह का साथ उनकी टीम के साथ उनका परिवार भी देता है. पति चंद्रशेखर सिंह एक छोटी सी डेरी चलाते हैं और पत्नी इन महिलाओं को शिक्षित करने के साथ ही साथ घर परिवार का भी पूरा साथ देती हैं. पति के अलावा बच्चे, देवरानी, देवर और घर में मौजूद अन्य सदस्यों का भी पूरा ध्यान रखती हैं. खाना बनाना और पति के बिजनेस में उनका सहयोग करना भी बीना नहीं भूलती हैं. यही वजह है कि आज बीना के प्रयासों ने इस गांव को निरक्षर से साक्षर बनाने में बड़ा रोल अदा किया है. वृद्ध माताओं को स्कूल जाता देखकर बच्चे भी अभी स्कूल जाना चाहते हैं.

Last Updated : Sep 8, 2021, 9:32 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.