वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने एक और उपलब्धि हासिल की है. बीएचयू के शोधकर्ताओं ने नारियल की जटा के रोगाणुरोधी होने की बात कही है. इसके अलावा इसमें कैंसर से बचाव करने वाले तत्व मौजूद होने का भी दावा किया है. जटा में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं. जटा के लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास का उपयोग करके प्रकृति-समान (नेचर-आइडेंटिकल) फ्लेवर यौगिक तैयार किया है. यह पहली बार किया गया है. इसमें मंदिर के अपशिष्ट नारियल की जटा का उपयोग किया गया.
नारियल की जटा पर शोध : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नारियल की जटा को लेकर शोध किया है. इसको लेकर एक फ्लेवर तैयार किया गया है. बीएचयू के शोधकर्ताओं का दावा है कि उत्पादित फ्लेवर का सेल लाइन का परीक्षण किया गया. यह स्तन कैंसर के खिलाफ कैंसर विरोधी गतिविधियों को साबित करता है. शोधकर्ताओं की टीम ने अपने अध्ययन में फ्लेवर के किण्वक उत्पादन के लिए आधार सामग्री के रूप में मंदिर के अपशिष्ट नारियल की जटा का उपयोग किया.
टीम में ये रहे शामिल : बीएचयू के शोधकर्ताओं की टीम में डॉ. अभिषेक दत्त त्रिपाठी, दुग्ध विज्ञान एवं खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान, डॉ. वीणा पॉल, दुग्ध विज्ञान एवं खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान, डॉ. विभव गौतम, प्रायोगिक औषध एवं शल्य अनुसंधान केंद्र, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, और डॉ. अपर्णा अग्रवाल, दिल्ली विश्वविद्यालय शामिल रहे. डॉ. अभिषेक दत्त त्रिपाठी ने बताया कि वाराणसी जैसे शहर, जिनका अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, नारियल की जटा के बड़े हिस्से भारी मात्रा में मंदिर में कचरे के रूप में मौजूद रहते हैं. हालांकि यह अपशिष्ट बायोडिग्रेडेबल है.
![शोध में मिली कई अहम जानकारियां.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/24-08-2023/up-03-bhu-photo-7209211_24082023172758_2408f_1692878278_560.jpg)
पर्यावरण के लिए बन सकता है खतरा : डॉ. अभिषेक ने बताया कि नारियल के कचरे को अगर ठीक से नियंत्रित नहीं किया जाता है तो यह पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करता है. यह कई सूक्ष्मजीव रोगों के लिए प्रजनन स्थल के रूप में कार्य करता है. नारियल जटा के उपयोग की व्यापक गुंजाइश है, क्योंकि यह लिग्नोसेल्युलोसिक बायोमास में समृद्ध है. नारियल जटा अपशिष्ट के लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास को मूल्यवर्धित एरोमैटिक्स (फ्लेवर) में परिवर्तित करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन करने वाले अध्ययन हुए हैं.
नेचर-आइडेंटिकल फ्लेवर यौगिक किया तैयार : डॉ. अभिषेक दत्त त्रिपाठी ने बताया कि इस शोध कार्य में हमने नारियल जटा के लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास का उपयोग करके प्रकृति-समान (नेचर-आइडेंटिकल) फ्लेवर यौगिक तैयार किया है. ऐसा पहली बार किया गया है. अध्ययन के निष्कर्ष बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी, फूड बायोटेक्नोलॉजी, और एप्लाइड फूड बायोटेक्नोलॉजी जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. यह कार्य खाद्य प्रसंस्करण और फार्मा उद्योगों के लिए अत्यधिक फायदेमंद होगा. इस प्रक्रिया में हमने नारियल की जटा को लेकर शोध किया और उस पर कई प्रयोग किए.
50 ℃ पर 72 घंटों तक सुखाया गया : उन्होंने बताया कि नारियल की जटा को पूर्व उपचारित किया गया और फिर 50 ℃ पर 72 घंटों तक सुखाया गया. फिर इसे बारीक पाउडर बना लिया गया. नारियल जटा के जल-आसवन के बाद, इसे एक घंटे के लिए 100±2 ℃ पर विलयन गया. फिर लिग्निन और सेलूलोज को अलग करने के लिए फ़िल्टर और अम्लीकृत किया गया. निकाले गए लिगनिन को बैसिलस आर्यभट्टई का उपयोग करके किण्वित किया गया.
स्तन कैंसर के खिलाफ कर सकता है काम : डॉ. अभिषेक दत्त त्रिपाठी ने बताया कि किण्वन के बाद, किण्वित पदार्थ को फिल्टर किया गया और अवशेष को एक अलग फनल में स्थानांतरित किया गया और एथिल एसीटेट के साथ निकाला गया. फिर इसे 15 मिनट के लिए सेंट्रीफ्यूज किया गया, जिसके बाद सभी कार्बनिक अंशों को एकत्र किया गया और एक रोटरी वैक्यूम इवेपोरेटर का उपयोग करके केंद्रित किया गया. उत्पादित फ्लेवर का सेल लाइन अध्ययन के लिए परीक्षण किया गया, जो स्तन कैंसर के खिलाफ कैंसर विरोधी गतिविधियों को साबित करता है.
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