वाराणसी: 15 अगस्त 1947 को लगभग 200 वर्षों की गुलामी के बाद हमें आजादी मिली. धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी भी इस आंदोलन का गवाह बनी. आंदोलनकारियों के शहर बनारस में हिंदुस्तानियों का पहला विश्वविद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1916 में रखी. भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय उन दिनों पत्रकार और वकील के साथ कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे.
आजादी की लड़ाई में बीएचयू का योगदान
बड़े भू-भाग वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के साथ देश को कैसे आजाद कराया जाए, इसकी भी शिक्षा दी जाने लगी. बीएचयू के इतिहास विभाग के प्रोफेसर राकेश पांडेय का कहना है कि बीएचयू के निर्माण और उसकी प्रक्रिया, स्वतंत्रता संग्राम की बहुत बड़ी कड़ी है. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का आजादी की लड़ाई में बहुत बड़ा योगदान रहा है.
छात्रों और शिक्षकों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
प्रोफेसर ने बताया कि यहां के छात्रों ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद पूरे विश्वविद्यालय और देश के कोने-कोने में जाकर आजादी की लड़ाई की कमान संभाली. विश्वविद्यालय के शिक्षक ही नहीं बल्कि छात्र और कर्मचारियों ने भी देश को आजाद कराने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय का निर्माण भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति की आकांक्षा का परिणाम है, क्योंकि जब यह विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया. इस विश्वविद्यालय को अस्तित्व में लाने के लिए पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया गया.
महात्मा गांधी और मालवीय जी के नेतृत्व में लड़ी गई लड़ाई
प्रोफेसर ने बताया कि 1920 से लेकर 1922 तक असहयोग आंदोलन हुआ. 1933 तक सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन हुआ. ये सभी अखिल भारतीय स्तर के आंदोलन थे, जिसमें भारत की जनता ने भाग लिया. इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया. महात्मा गांधी के नेतृत्व और पंडित मदन मोहन मालवीय के आशीर्वाद से इन सभी आंदोलनों में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों ने बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया.