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गुप्तकाशी शिवद्वार धाम में लगा भक्तों का तांता, लाखों लोगों ने दर्शन कर मांगी मन्नतें

शिवद्वार धाम अपने अद्भुत और अद्वितीय शिव शक्ति की प्रतिमा के लिए जाना जाता है. शिवद्वार धाम में प्रणय लीला में शिव शक्ति की अद्भुत अनोखी काले पत्थर की मूर्ति 8 वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के मध्य की बताई जाती है.

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Published : Mar 5, 2019, 12:03 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:13 PM IST

गुप्तकाशी शिवद्वार धाम में लाखों लोगों ने दर्शन कर मांगी मन्नते

सोनभद्र: शिवद्वार धाम अपने अद्भुत औरअद्वितीय शिव शक्ति की प्रतिमा के लिए जाना जाता है. मुख्य मंदिर की स्थापना शतद्वारी नामक गांव के मुख्य मार्ग पर स्थापित है. गुप्तकाशी अथवा द्वितीय काशी के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल अपने आप में ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है.

गुप्तकाशी शिवद्वार धाम में लाखों लोगों ने दर्शन कर मांगी मन्नते


इस क्षेत्र में दर्जनों गांवो में अद्भुत मूर्तियों व पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां कम आकर्षण नहीं रखती हैं. पूरे शिवद्वार क्षेत्र के आसपास के इलाकों में प्राचीन मंदिरों के अवशेष और मूर्तियां आज भी अपने ऐतिहासिकता के वैज्ञानिक प्रमाणिकरण की राह तक रही हैं. यही नहीं यह क्षेत्र प्राचीन काल के साथ ही मध्यकालीन समय से आज भी उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश का व्यापारिक मार्ग भी रहा है.


शिवद्वार धाम में प्रणय लीला में शिव शक्ति की अद्भुत अनोखी काले पत्थर की मूर्ति 8 वी शताब्दी से 11वीं शताब्दी के मध्य की बताई जाती है. ऐसी मान्यता है कि शिव शक्ति की संयुक्त यह प्रतिमा 1905 ई0 में खेत में हल चलाते समय मोती महतो नामक व्यक्ति को मिली थी.

द्वितीय काशी शिवद्वार धाम में बसंत पंचमी पर मेले का आयोजन होता है. इसके अलावा शिवरात्रि पर लगने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं. सावन मास को लेकर माह भर चलने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं. मुख्य मंदिर में काले बहुमूल्य पत्थर पर बनी यह शिव शक्ति की प्रतिमा श्रद्धा के साथ अद्भुत आकर्षण का केंद्र भी है. यहां पर देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की हर मन्नतें पूरी होती है ऐसी यहां की मान्यता है.

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मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मूर्ति 8वी से 10 वी शताब्दी के मध्य की बताई जाती है लगभग दो सौ वर्ष पूर्व यह मूर्ति जमीन से निकली थी. यहां दर्शन के लिए दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है और उनकी सभी मन्नते पूरी होती है.

सोनभद्र: शिवद्वार धाम अपने अद्भुत औरअद्वितीय शिव शक्ति की प्रतिमा के लिए जाना जाता है. मुख्य मंदिर की स्थापना शतद्वारी नामक गांव के मुख्य मार्ग पर स्थापित है. गुप्तकाशी अथवा द्वितीय काशी के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल अपने आप में ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है.

गुप्तकाशी शिवद्वार धाम में लाखों लोगों ने दर्शन कर मांगी मन्नते


इस क्षेत्र में दर्जनों गांवो में अद्भुत मूर्तियों व पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां कम आकर्षण नहीं रखती हैं. पूरे शिवद्वार क्षेत्र के आसपास के इलाकों में प्राचीन मंदिरों के अवशेष और मूर्तियां आज भी अपने ऐतिहासिकता के वैज्ञानिक प्रमाणिकरण की राह तक रही हैं. यही नहीं यह क्षेत्र प्राचीन काल के साथ ही मध्यकालीन समय से आज भी उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश का व्यापारिक मार्ग भी रहा है.


शिवद्वार धाम में प्रणय लीला में शिव शक्ति की अद्भुत अनोखी काले पत्थर की मूर्ति 8 वी शताब्दी से 11वीं शताब्दी के मध्य की बताई जाती है. ऐसी मान्यता है कि शिव शक्ति की संयुक्त यह प्रतिमा 1905 ई0 में खेत में हल चलाते समय मोती महतो नामक व्यक्ति को मिली थी.

द्वितीय काशी शिवद्वार धाम में बसंत पंचमी पर मेले का आयोजन होता है. इसके अलावा शिवरात्रि पर लगने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं. सावन मास को लेकर माह भर चलने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं. मुख्य मंदिर में काले बहुमूल्य पत्थर पर बनी यह शिव शक्ति की प्रतिमा श्रद्धा के साथ अद्भुत आकर्षण का केंद्र भी है. यहां पर देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की हर मन्नतें पूरी होती है ऐसी यहां की मान्यता है.

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मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मूर्ति 8वी से 10 वी शताब्दी के मध्य की बताई जाती है लगभग दो सौ वर्ष पूर्व यह मूर्ति जमीन से निकली थी. यहां दर्शन के लिए दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है और उनकी सभी मन्नते पूरी होती है.

Intro:Anchor- शिवद्वार धाम अपने अद्भुत व अद्वितीय शिव शक्ति की प्रतिमा के लिए जाना जाता है। हालाकि मुख्य मंदिर की स्थापना शतद्वारी नामक गांव के मुख्य मार्ग पर स्थापित है ।गुप्तकाशी अथवा द्वितीय काशी के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल अपने आप में ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है।इस क्षेत्र में दर्जनों गांवो में अद्भुत मूर्तियों व पत्थरो पर उकेरी गई आकृतियां कम आकर्षण नहीं रखती हैं ,पूरे शिवद्वार क्षेत्र के आसपास के इलाकों में प्राचीन मंदिरों के अवशेष व मूर्तियां आज भी अपने ऐतिहासिकता के वैज्ञानिक प्रमाणिकरण की राह तक रही है यही नहीं यह क्षेत्र प्राचीन काल के साथ ही मध्यकालीन समय से आज भी उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश का व्यापारिक मार्ग भी रहा है।द्वितीय काशी शिवद्वार धाम में बसंत पंचमी पर मेले का आयोजन होता है इसके अलावा शिवरात्रि पर लगने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं ।सावन मास को लेकर माह भर चलने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। मुख्य मंदिर में काले बहुमूल्य पत्थर पर बनी यह शिव शक्ति की प्रतिमा श्रद्धा के साथ अद्भुत आकर्षण का केंद्र भी है।यहाँ पर देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की हर मन्नते पूरी होती है ऐसी यहां की मान्यता है।


Body:Vo1-शिवद्वार धाम में प्रणय लीला में शिव शक्ति की अद्भुत अनोखी काले पत्थर की मूर्ति 8 वी शताब्दी से 11वीं शताब्दी के मध्य की बताई जाती है। ऐसी मान्यता है कि शिव शक्ति की संयुक्त यह प्रतिमा 1905 ई0 में खेत में हल चलाते समय मोती महतो नामक व्यक्ति को मिली थी। जब वह खेत में हल चला रहा था तब हल का फार मूर्ति के ऊपरी भाग में लगने के कारण उसमे से दूध की धारा फुट गयी, खेत की खुदाई के उपरांत एक अद्भुत शिव शक्ति की प्रतिमा मिली जिस की स्थापना उन्होंने शतद्वारी गांव में मुख्य सड़क के बगल में ग्राम समाज की भूमि में एक छोटे से शिवालय का निर्माण कराकर किया। वहीबहुत समय बाद 1942 ई0 में पुनः मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर सतद्वारी गांव के एक जमीदार परिवार की बहुरिया अविनाश कुंवरी ने अपने पति के याद में कराया था। समय बीतता गया और सन 1985 ई0 में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी विष्णु देव आनंद ने शिव शक्ति की प्रतिमा की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा उच्च स्थान पर किया ।मूर्ति की विशेषता के चलते देखी गई मूर्तियों में अपना अलग स्थान रखती है साथ ही जीवंत प्रतिमा श्रद्धालुओ को बरबस आकर्षित कारती रहती है। इसके अलावा सैकड़ों मूर्तियां आज भी इस क्षेत्र में जीवंत मौजूद है। शिवद्वार धाम में जलाभिषेक का क्रम 3 दशक से अधिक समय से चला आ रहा है। यहां से 80 किलोमीटर दूर मीरजापुर जनपद के वरिया घाट से पहली बार कांवरिया जल अभिषेक करने के लिए शिव द्वार धाम में आए थे जिसके बाद से यह क्रम लगातार लगा हुआ है और श्रवण में 8 से 10 लाख कावरिया यहां पर जलाभिषेक करते हैं ऐसी अद्वितीय शिवशक्ति की मूर्ति पूरे विश्व में कहीं नहीं है इससे मिलती जुलती मूर्ति कलकत्ता के संग्रहालय में है।

Byte-परमेश्वर दयाल(स्थानीय श्रद्धालु)


Conclusion:Vo2-वही मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मूर्ति 8वी से 10 वी शताब्दी के मध्य की बताई जाती है लगभग दो सौ वर्ष पूर्व यह मूर्ति जमीन से निकली थी।यहां दर्शन के लिए डोर डोर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है और उनकी सभी मन्नते पूरी होती है।

Byte-अजय गिरी(प्रधान पुजारी,शिवद्वार मंदिर)


चन्द्रकान्त मिश्रा
सोनभद्र
मो0 9450323031
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:13 PM IST
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