सीतापुर: सतयुग काल से चला आ रहा उत्तर भारत का सबसे पौराणिक 84 कोसीय परिक्रमा सोमवार को शुरू हो गई. इस यात्रा को 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य के प्रसिद्ध चक्रतीर्थ से रवाना किया गया. गणेश जी के पूजन और उन्हें लड्डू का भोग लगाने के बाद पहला आश्रम परिक्रमा समिति के अध्यक्ष और आश्रम के महंत भरतदास की अगुवाई में आस्था की डगर पर चल पड़ा. यह परिक्रमा सोमवार को पहला पड़ाव कोरौना तक जाएगा. वहीं रात्रि विश्राम करने के बाद मंगलवार सुबह अगले पड़ाव के लिए रवाना होगा.
परिक्रमा समिति के अध्यक्ष भरतदास परंपरागत पालकी के बजाय एक हाइटेक रथ पर सवार थे, जो परिक्रमा की अगुवाई कर रहा है. परिक्रमा प्रारम्भ होने के साथ ही उस पर पुष्पवर्षा की गई. इस भव्य स्वागत की परम्परा के बाद रामादल के नाम से पहचाने जाने वाले परिक्रमार्थी सीताराम का उद्घोष किया गया. परिक्रमा समिति के अध्यक्ष भरतदास ने बताया कि यह 84 कोस की परिक्रमा मनुष्य को 84 लाख योनियों के बंधन से छुटकारा दिलाता है. त्रेतायुग में लंका पर विजय और रावण का वध करने के बाद स्वयं भगवान श्रीराम ने इस परिक्रमा को किया था.
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उन्होंने बताया कि पिछले 20 वर्षों से लगातार 84 कोस परिक्रमा कर रहे हैं. वैद्य बाल शास्त्री ने बताया कि इस परिक्रमा का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है. दूसरे प्रान्तों से इस परिक्रमा में शामिल होने आईं महिलाओं ने भी परिक्रमा के महत्व का जिक्र करते हुए कहा कि वह भी अपने पापों से मुक्ति पाने और मां ललिता देवी की कृपा हासिल करने के लिए आई हैं. परिक्रमा के प्रभारी अधिकारी और एसडीएम मिश्रित राजीव पाण्डे ने बताया कि सोमवार से 84 कोसीय परिक्रमा का विधिवत शुभारंभ हो गया है. परिक्रमार्थियों के लिए प्रशासन ने तमाम तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं.