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नेता जी कब पूरा करेंगे वादा : बदहाल है गांधी आश्रम, भूखमरी के कगार पर कर्मचारी - up election 2022

सूफी संत कबीर (Sant kabir nagar) में स्थित गांधी आश्रम के बंद होने से 1600 कर्मचारी बेरोजगार हो गए. यूपी में 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है. गांधी आश्रम को चालू कराने के लिए सभी जनप्रतिनिधियों ने वादे तो किए, लेकिन यह वादें खोखले साबित हुए. कर्मचारियों की मांग है की योगी सरकार बदहाल पड़े गांधी आश्रम को फिर से चालू करें.

गांधी आश्रम मगहर
गांधी आश्रम मगहर
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Published : Sep 23, 2021, 10:01 AM IST

संत कबीर नगर : खादी वस्त्र नहीं विचार है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इसी सपने को साकार करने के लिए आजाद भारत में खादी वस्त्रो के निर्माण के लिए गांधी आश्रमों की स्थापना की गई थी, जिसके चलते एक तरफ जहां महात्मा गांधी के सपने सच होते तो दूसरी तरफ सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार भी मिलता था.

सूफी संत कबीर दास की नगरी मगहर में स्थित गांधी आश्रम बदहाल पड़ा है. गांधी आश्रम बंद होने के चलते यहां पर 1600 कर्मचारी बेरोजगार हो गए है. यूपी में 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है. गांधी आश्रम को चालू कराने के लिए सभी जनप्रतिनिधियों ने तो वादे किए, लेकिन यह वादें खोखले साबित हुए. कर्मचारियों की मांग है की उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बदहाल पड़े गांधी आश्रम को चालू करें, ताकि यहां से निर्मित सूती वस्त्र, अगरबत्ती, धूप और छतरी का कारोबार फिर से शुरू हो सके.

साठ के दशक में स्थापित यह गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन रहा. अस्सी के दशक तक खादी आश्रमों की रौनक देखने लायक थी, लेकिन बाद में सरकारों की अदूरदर्शिता और उदासीनता के चलते आज यह आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. यहां पर काम रहे सैकड़ों कर्मचारियों और बुनकरों की जिंदगी बेनूर और बेजार है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भुखमरी के शिकार हैं. वर्षों से वेतन न मिलने से कर्मचारी सहित उनका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर है. गांधी के स्वावलंबन और स्वदेशी के सपने को साकार करने और हुनर मंद हाथों को काम देने के मकसद से साठ के दशक में स्थापित यह गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन रहा.

इस आश्रम का दर्जा देश के गिने चुने गांधी आश्रमों में था, जिसका विस्तार लखनऊ से लेकर पूरे पूर्वांचल तक था. यहां पर कर्मचारियों और बुनकरों को मिलाकर तकरीबन 1600 लोग काम किया करते थे. उस समय खादी ग्रामोद्योग भारत सरकार की तरफ से ऐसे तमाम केन्द्रों के विकास के लिए ग्रांट भी मिलता था, जिसके सहारे कच्चे माल की खरीदारी आदि का कार्य किया जाता था. लेकिन बाद की सरकारों ने इस पर ध्यान देना बंद कर दिया, जिसका नतीजा यह निकला की यह गांधी आश्रम दिये की लौ के सामान धीरे धीरे बुझने की कगार पर पहुंच चुका है.

मगहर के इस खादी गांधी आश्रम में एक वक्त जहां 1600 कर्मचारी काम किया करते थे. वहां अब महज 70 कर्मचारी ही बचे हैं, जिनका कई साल से वेतन बकाया है. इसके साथ ही साथ रिटायर्ड कर्मियों के पीएफ का भुगतान न होने के कारण उनका परिवार भुखमरी की कगार पर है.संत कबीर की परिनिर्वाण स्थली मगहर में आजादी के तत्काल बाद स्थापित श्री गांधी आश्रम में संचालित खादी उद्योग संकट में है.

सरकारी उदासीनता के चलते बेहालगांधी आश्रम में बनने वाले उत्पादों की खपत पूरे देश में होती थी, जिन्होंने कभी वो दौर देखा था जब यही आश्रम हजारों लोगों के घरो में दो वक्त का चूल्हा जलाता था, लेकिन आज की स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है. कल तक जिस आश्रम के अंदर खादी वस्त्रों के अलावा साबुन,अगरबत्ती, छपाई आदि के उद्योग फल फूल रहे थे, लेकिन आज सरकारी उदासीनता के चलते यहां पर पड़ी तमाम मशीने जंग खा रही है . गांधी आश्रम में काम करने वाले बुनकर आज बदहाली की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. कर्मचारियों की मांग है की उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विधानसभा चुनाव से पहले बंद पड़े इस गांधी आश्रम को चालू कराएं जिससे यहां पर एक बार फिर से रोजगार शुरू हो सके और स्वदेशी वस्तुएं लोगों तक पहुंचाया जा सके.

संत कबीर नगर : खादी वस्त्र नहीं विचार है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इसी सपने को साकार करने के लिए आजाद भारत में खादी वस्त्रो के निर्माण के लिए गांधी आश्रमों की स्थापना की गई थी, जिसके चलते एक तरफ जहां महात्मा गांधी के सपने सच होते तो दूसरी तरफ सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार भी मिलता था.

सूफी संत कबीर दास की नगरी मगहर में स्थित गांधी आश्रम बदहाल पड़ा है. गांधी आश्रम बंद होने के चलते यहां पर 1600 कर्मचारी बेरोजगार हो गए है. यूपी में 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है. गांधी आश्रम को चालू कराने के लिए सभी जनप्रतिनिधियों ने तो वादे किए, लेकिन यह वादें खोखले साबित हुए. कर्मचारियों की मांग है की उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बदहाल पड़े गांधी आश्रम को चालू करें, ताकि यहां से निर्मित सूती वस्त्र, अगरबत्ती, धूप और छतरी का कारोबार फिर से शुरू हो सके.

साठ के दशक में स्थापित यह गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन रहा. अस्सी के दशक तक खादी आश्रमों की रौनक देखने लायक थी, लेकिन बाद में सरकारों की अदूरदर्शिता और उदासीनता के चलते आज यह आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. यहां पर काम रहे सैकड़ों कर्मचारियों और बुनकरों की जिंदगी बेनूर और बेजार है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भुखमरी के शिकार हैं. वर्षों से वेतन न मिलने से कर्मचारी सहित उनका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर है. गांधी के स्वावलंबन और स्वदेशी के सपने को साकार करने और हुनर मंद हाथों को काम देने के मकसद से साठ के दशक में स्थापित यह गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन रहा.

इस आश्रम का दर्जा देश के गिने चुने गांधी आश्रमों में था, जिसका विस्तार लखनऊ से लेकर पूरे पूर्वांचल तक था. यहां पर कर्मचारियों और बुनकरों को मिलाकर तकरीबन 1600 लोग काम किया करते थे. उस समय खादी ग्रामोद्योग भारत सरकार की तरफ से ऐसे तमाम केन्द्रों के विकास के लिए ग्रांट भी मिलता था, जिसके सहारे कच्चे माल की खरीदारी आदि का कार्य किया जाता था. लेकिन बाद की सरकारों ने इस पर ध्यान देना बंद कर दिया, जिसका नतीजा यह निकला की यह गांधी आश्रम दिये की लौ के सामान धीरे धीरे बुझने की कगार पर पहुंच चुका है.

मगहर के इस खादी गांधी आश्रम में एक वक्त जहां 1600 कर्मचारी काम किया करते थे. वहां अब महज 70 कर्मचारी ही बचे हैं, जिनका कई साल से वेतन बकाया है. इसके साथ ही साथ रिटायर्ड कर्मियों के पीएफ का भुगतान न होने के कारण उनका परिवार भुखमरी की कगार पर है.संत कबीर की परिनिर्वाण स्थली मगहर में आजादी के तत्काल बाद स्थापित श्री गांधी आश्रम में संचालित खादी उद्योग संकट में है.

सरकारी उदासीनता के चलते बेहालगांधी आश्रम में बनने वाले उत्पादों की खपत पूरे देश में होती थी, जिन्होंने कभी वो दौर देखा था जब यही आश्रम हजारों लोगों के घरो में दो वक्त का चूल्हा जलाता था, लेकिन आज की स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है. कल तक जिस आश्रम के अंदर खादी वस्त्रों के अलावा साबुन,अगरबत्ती, छपाई आदि के उद्योग फल फूल रहे थे, लेकिन आज सरकारी उदासीनता के चलते यहां पर पड़ी तमाम मशीने जंग खा रही है . गांधी आश्रम में काम करने वाले बुनकर आज बदहाली की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. कर्मचारियों की मांग है की उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विधानसभा चुनाव से पहले बंद पड़े इस गांधी आश्रम को चालू कराएं जिससे यहां पर एक बार फिर से रोजगार शुरू हो सके और स्वदेशी वस्तुएं लोगों तक पहुंचाया जा सके.

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