संत कबीर नगर: हम मुसाफिर हैं, अपने रास्ते बना लेते हैं. मंजिल खुद ब खुद पास चलकर आएगी अगर हौसला बढ़ा लेते हैं. कुछ ऐसी ही दास्तां है संत कबीर नगर जिले के विश्वनाथपुर के रहने वाले सतीश की. जिसकी ढोलक की थाप पूरे पूर्वांचल में मशहूर है. सड़क के किनारे अपने ढोलक में तल्लीन यह शख्स कुछ खास है. अपने हुनर को जीविकोपार्जन का जरिया बनाने वाले सतीश के बनाए गए ढोलक के मुरीद जिला ही नहीं बल्कि पूरा पूर्वांचल है. स्नातक की पढ़ाई करने के बाद नौकरी न मिलने पर सतीश ने हुनर को तराश कर जिंदगी जीने का अपना अलग ही अंदाज बना लिया.
- जिले के विश्वनाथपुर गांव के पास स्थित सतीश का गांव आज ढोलक के लिए अपनी एक अलग पहचान रखने लगा है.
- यहां दूर-दूर से लोग ढोलक को खरीदने और मरम्मत करवाने के लिए आते हैं.
- अपने हुनर को जीविकोपार्जन का सहारा बनाने वाले सतीश आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है.
- 31 वर्षीय सतीश ने बताया कि स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उनके सामने जीवन जीने के लिए काफी संकट आ गया था.
- सरकारी नौकरी के लिए उन्होंने भी कई प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली.
- फिर सतीश ने अपने पुश्तैनी काम को ही अपना धंधा बना लिया. पिता के साथ सतीश ने ढोलक बनाने का काम शुरू किया.
पुश्तैनी काम को बढ़ा कर बनाई पहचान-
पुश्तैनी काम को सतीश ने आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अपनी सोच से अलग करने की कोशिश की. ढोलक बनाने के लिए सबसे जरूरी है ढोलक का घेरा सतीश गोंडा से लाते हैं. पहले तो गोंडा से घेरा लाने की सोची लेकिन गोरखपुर में कम खर्च में घेरा मिल जाता है इसलिए उन्होंने गोरखपुर से लाना शुरू किया. अब जरूरत हुई अन्य सामानों की वो भी मिलते गए और सतीश ने इस कारोबार को आगे बढ़ाया. आज सतीश का कारोबार पूरे पूर्वांचल में मशहूर हो गया और उनकी ढोलक की थाप पूरे पूर्वांचल में गूंजने लगी.
इस हुनर से अन्य लोग को भी प्रेरणा मिली और गांव के लोग भी अब इस काम में आगे आने लगे हैं. अगर सरकार द्वारा इस कारोबार में कुछ मदद की जाए तो यह कारोबार जिले में प्रसिद्ध होगा. क्षेत्रीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा.
-सतीश, ढोलक कारोबारी