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सहारनपुर: आड़ू किसानों का हाल बेहाल, लॉकडाउन में नहीं मिल रहा कोई खरीददार - सहारनपुर समाचार

देश में लागू लॉकडाउन से समाज का हर तबका परेशान है. व्यापारी से लेकर किसान तक परेशान हैं. वहीं जिला सहारनपुर में आड़ू किसानों का भी बुरा हाल है. इन किसानों का कहना है कि इस बार उनकी आड़ू की फसल खेतों में ही सड़ रही है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि सरकार उनके लिए कुछ करे, नहीं तो उनके सामने भूखों मरने के हालात पैदा हो जाएंगे.

आड़ू किसान हुए परेशान.
आड़ू किसान हुए परेशान.
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Published : May 4, 2020, 10:24 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST

सहारनपुर: कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन से फल ठेकेदारों का बुरा हाल है. गर्मियों में रसीले फलों जैसे आम, आड़ू, जामुन आदि की खूब मांग होती है. इतना ही नहीं ये फल मुंह मांगे दाम भी व्यापारियों को दिलाते थे, लेकिन आज वही फल सड़ने को मजबूर हैं. सहारनपुर में आड़ू के फलों को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. अब आड़ू के फल बागों में पककर तैयार हो गए हैं, लेकिन अफसोस इन फलों के खरीददार ही नहीं है, इस वजह से फल ठेकेदार और किसान परेशान हैं.

आड़ू किसान हुए परेशान.

'आड़ू किसान हुए परेशान'
लॉकडाउन के पहले सामान्य दिनों में जब तक यह फल तैयार होता था, उससे पहले ही इसकी बुकिंग शुरू हो जाती थी. किसान और ठेकेदार फसल को देखकर खुश हो जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. जो फल उसके घर की रोजी-रोटी चलाता था आज वही उसे दो वक्त की रोटी नहीं दे पा रहा है.

ऐसा नहीं है कि इस बार फसल अच्छी नहीं हुईं है, फसल भी बहुत है पेड़ फलों से लदे हुए हैं. किसानों का कहना है कि यही आडू पिछले सीजन पर 100 रुपये प्रति किलो में बिकता था, लेकिन इस लॉकडाउन में कोई पूछने को तैयार नहीं है.

'खूब होती है आड़ू की खेती'
बता दें कि प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बुलंदशहर और मुरादाबाद में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है. इसके साथ ही सहारनपुर मंडल के लगभग 135 हेक्टेयर में लगभग 19 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर में आड़ू की खेती की जाती है.

'दो से तीन सालों में ही आने लगते हैं फल'
आड़ू के पेड़ों पर लगाने के दो से तीन सालों में ही फल आने लगते हैं. वहीं आम के बाजार में आने से पहले ही आड़ू बाजारों में आना शुरू हो जाते हैं. खाने के साथ इस फल से कई तरह के खाद्य पदार्थ भी बनाए जाते हैं. जैम, जूस, जैली, केक और अन्य कई पेय पदार्थों में इस फल का उपयोग किया जाता है, इसलिए इसकी मांग भी रहती है.

'सरकार से है मदद की आस'
वहीं इस लॉकडाउन में इन किसानों की हालात बद से बदतर होती जा रही है. किसानों का कहना है कि फल बागों में ही सड़ रहे हैं. उन्हें न तो फलों को तोड़ने के लिए मजदूर मिल रहे हैं और न ही फलों को खरीदने के लिए खरीददार. आड़ू किसानों का कहना है कि अब उन्हें केवल सरकार से ही मदद की आस बची है. अगर सरकार ने उनकी सुध नहीं ली तो उनके सामने भूखों मरने के हालात पैदा हो जाएंगे.

सहारनपुर: कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन से फल ठेकेदारों का बुरा हाल है. गर्मियों में रसीले फलों जैसे आम, आड़ू, जामुन आदि की खूब मांग होती है. इतना ही नहीं ये फल मुंह मांगे दाम भी व्यापारियों को दिलाते थे, लेकिन आज वही फल सड़ने को मजबूर हैं. सहारनपुर में आड़ू के फलों को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. अब आड़ू के फल बागों में पककर तैयार हो गए हैं, लेकिन अफसोस इन फलों के खरीददार ही नहीं है, इस वजह से फल ठेकेदार और किसान परेशान हैं.

आड़ू किसान हुए परेशान.

'आड़ू किसान हुए परेशान'
लॉकडाउन के पहले सामान्य दिनों में जब तक यह फल तैयार होता था, उससे पहले ही इसकी बुकिंग शुरू हो जाती थी. किसान और ठेकेदार फसल को देखकर खुश हो जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. जो फल उसके घर की रोजी-रोटी चलाता था आज वही उसे दो वक्त की रोटी नहीं दे पा रहा है.

ऐसा नहीं है कि इस बार फसल अच्छी नहीं हुईं है, फसल भी बहुत है पेड़ फलों से लदे हुए हैं. किसानों का कहना है कि यही आडू पिछले सीजन पर 100 रुपये प्रति किलो में बिकता था, लेकिन इस लॉकडाउन में कोई पूछने को तैयार नहीं है.

'खूब होती है आड़ू की खेती'
बता दें कि प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बुलंदशहर और मुरादाबाद में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है. इसके साथ ही सहारनपुर मंडल के लगभग 135 हेक्टेयर में लगभग 19 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर में आड़ू की खेती की जाती है.

'दो से तीन सालों में ही आने लगते हैं फल'
आड़ू के पेड़ों पर लगाने के दो से तीन सालों में ही फल आने लगते हैं. वहीं आम के बाजार में आने से पहले ही आड़ू बाजारों में आना शुरू हो जाते हैं. खाने के साथ इस फल से कई तरह के खाद्य पदार्थ भी बनाए जाते हैं. जैम, जूस, जैली, केक और अन्य कई पेय पदार्थों में इस फल का उपयोग किया जाता है, इसलिए इसकी मांग भी रहती है.

'सरकार से है मदद की आस'
वहीं इस लॉकडाउन में इन किसानों की हालात बद से बदतर होती जा रही है. किसानों का कहना है कि फल बागों में ही सड़ रहे हैं. उन्हें न तो फलों को तोड़ने के लिए मजदूर मिल रहे हैं और न ही फलों को खरीदने के लिए खरीददार. आड़ू किसानों का कहना है कि अब उन्हें केवल सरकार से ही मदद की आस बची है. अगर सरकार ने उनकी सुध नहीं ली तो उनके सामने भूखों मरने के हालात पैदा हो जाएंगे.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST
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