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70 साल से मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रहे 15 गांव के लोगों ने चुनाव बहिष्कार की दी चेतावनी

रामपुर के 15 गांवों के लोग पिछले 70 सालों से वन विभाग से मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. इन 15 गांवों में रहने वाले लगभग 30 हजार लोग इस बार समस्या का हल नहीं होने पर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बहिष्कार की चेतावनी दी है.

ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की दी चेतावनी.
ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की दी चेतावनी.
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Published : Dec 16, 2021, 1:58 PM IST

रामपुरः आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश में कई सरकारें बनीं लेकिन जिले के 15 गांव में रह रहे लगभग 30000 लोगों को मालिकाना हक नहीं मिला. इन गांवों के ग्रामीण पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर हर सरकार के मुख्यमंत्री से गुहार लगा चुके हैं लेकिन आश्वासन ही मिलता रहा है. ऐसे में 15 गांव के ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी समस्या का हल नहीं हुआ तो वह यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में बहिष्कार करेंगे.

ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की दी चेतावनी.

गौरतलब है कि 1947 में भारत-पकिस्तान का विभाजन होने के पाकिस्तान में रह रहे सिख समुदाय कई परिवार हिंदुस्तान आग गए. इन परिवारों को रामपुर के नवाब ने तहसील स्वार में रहने के लिए जगह दे दी. 1949 में रामपुर के नवाब भी हुकूमत का भारत सरकार में विलय होने के बाद भी पाकिस्तान से आए लोग 15 गांवों में रह रहे हैं. इन गांव में सरकार द्वारा सभी मूलभूत सुविधाएं दी गई हैं लेकिन सरकार से मालिकाना हक नहीं मिला है. इन 15 गांवों को उत्तर प्रदेश सरकार ने पीपलीवन में दर्ज कर दिया है. वन विभाग ने एक बार इन सब गांव के लोगों को नोटिस भी जारी किए थे और 1 महीने का टाइम दिया था कि इस जगह को खाली कर दें वरना तोड़ देंगे. इसके बाद ग्रामीण कोर्ट पहुंच गए थे.

नबीगंज पीपली गांव के प्रधान दर्शन लाल कंबोझ ने बताया कि 1947 में जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, तब उनके पूर्वज पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से यहां आए थे. रामपुर के नवाब ने बंजर एरिया उनके पूर्वजों को रहने के लिए दी थी. इसके बाद से हमारे पूर्वज यहां पर रह रहे थे. दर्शन लाल ने बताया कि 1949 में रामपुर के नवाब की रियासत का भारत सरकार में विलय हो गया, उसके बाद से ही मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. दर्शन लाल ने कहा कि उनकी कई पीढ़ियां लड़ते-लड़ते खत्म हो गई. उन्होंने बताया कि 15 गांवों के लोगों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिला था. सीएम ने भी टीम गठित की थी लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. प्रधान दर्शन लाल ने कहा कि 'हम तो न इंडिया के हैं और न पाकिस्तान के. हमारा कुछ भी नहीं है, हमारी जनगणना तक छुपा ली जाती है.'

वहीं, पूरन चंद कंबोज ने कहा कि कि सरकारों से उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है. उन्होंने बताया कि इस बार यहां कि जनता चुनाव में वोट का बहिष्कार करने की योजना बना रही है. पूरन चंद ने बताया कि गांव में सरकार द्वारा सभी मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं.

रमेश लाल कंबोज ने कहा कि उनके बुजुर्ग भी लड़ते-लड़ते चले गए. जितनी हम से कोशिश हुई हम भी कोशिश करते चले आ रहे हैं. सरकारे बनती रही और हम से वोट लेती रही लेकिन किसी ने उनकी समस्या का हल नहीं किया. रमेश ने कहा कि इस बार 15 गांवों के लोगों मतदान न करने का मन बनाया है.

इसे भी पढ़ें-परिवार के दो प्रधानों की मौत के बाद भी नहीं मानी हार, अब तीसरी बार दावेदारी के लिए की दूसरी शादी


जिला वन अधिकारी राजीव कुमार ने बताया कि सिख कम्युनिटी के लोग पाकिस्तान के विभाजन के बाद यहां पर तराई क्षेत्र में विस्थापित हुए थे. जहां पर यह लोग है वह 15 गांव का जो मामला है. इन 15 गांवों की जमीन आरक्षित वन के रूप में है, जो 1950 और 51 के नोटिफिकेशन के रूप में वन विभाग को दिया गया था. पूरे के पूरे गांव वन विभाग को दे दिए गए थे. इसमें वन विभाग की ओर से अतिक्रमणकारियों को 2014 में नोटिस भी जारी किया गया था. जिसके बाद ग्रामीण कोर्ट चले गए थे.

वन अधिकारी ने बताया कि इस मामले में कमिश्नर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है. इस पूरे प्रकरण की टीम जांच करेगी, जो दस्तावेज है उनका परीक्षण करेगी. इसके बाद जो रिपोर्ट आएगी वह शासन को भेजे जाएगी. रिपोर्ट के आधार पर शासन जो भी निर्णय करेगा, वह सर्वोपरि होगा.

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रामपुरः आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश में कई सरकारें बनीं लेकिन जिले के 15 गांव में रह रहे लगभग 30000 लोगों को मालिकाना हक नहीं मिला. इन गांवों के ग्रामीण पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर हर सरकार के मुख्यमंत्री से गुहार लगा चुके हैं लेकिन आश्वासन ही मिलता रहा है. ऐसे में 15 गांव के ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी समस्या का हल नहीं हुआ तो वह यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में बहिष्कार करेंगे.

ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की दी चेतावनी.

गौरतलब है कि 1947 में भारत-पकिस्तान का विभाजन होने के पाकिस्तान में रह रहे सिख समुदाय कई परिवार हिंदुस्तान आग गए. इन परिवारों को रामपुर के नवाब ने तहसील स्वार में रहने के लिए जगह दे दी. 1949 में रामपुर के नवाब भी हुकूमत का भारत सरकार में विलय होने के बाद भी पाकिस्तान से आए लोग 15 गांवों में रह रहे हैं. इन गांव में सरकार द्वारा सभी मूलभूत सुविधाएं दी गई हैं लेकिन सरकार से मालिकाना हक नहीं मिला है. इन 15 गांवों को उत्तर प्रदेश सरकार ने पीपलीवन में दर्ज कर दिया है. वन विभाग ने एक बार इन सब गांव के लोगों को नोटिस भी जारी किए थे और 1 महीने का टाइम दिया था कि इस जगह को खाली कर दें वरना तोड़ देंगे. इसके बाद ग्रामीण कोर्ट पहुंच गए थे.

नबीगंज पीपली गांव के प्रधान दर्शन लाल कंबोझ ने बताया कि 1947 में जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, तब उनके पूर्वज पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से यहां आए थे. रामपुर के नवाब ने बंजर एरिया उनके पूर्वजों को रहने के लिए दी थी. इसके बाद से हमारे पूर्वज यहां पर रह रहे थे. दर्शन लाल ने बताया कि 1949 में रामपुर के नवाब की रियासत का भारत सरकार में विलय हो गया, उसके बाद से ही मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. दर्शन लाल ने कहा कि उनकी कई पीढ़ियां लड़ते-लड़ते खत्म हो गई. उन्होंने बताया कि 15 गांवों के लोगों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिला था. सीएम ने भी टीम गठित की थी लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. प्रधान दर्शन लाल ने कहा कि 'हम तो न इंडिया के हैं और न पाकिस्तान के. हमारा कुछ भी नहीं है, हमारी जनगणना तक छुपा ली जाती है.'

वहीं, पूरन चंद कंबोज ने कहा कि कि सरकारों से उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है. उन्होंने बताया कि इस बार यहां कि जनता चुनाव में वोट का बहिष्कार करने की योजना बना रही है. पूरन चंद ने बताया कि गांव में सरकार द्वारा सभी मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं.

रमेश लाल कंबोज ने कहा कि उनके बुजुर्ग भी लड़ते-लड़ते चले गए. जितनी हम से कोशिश हुई हम भी कोशिश करते चले आ रहे हैं. सरकारे बनती रही और हम से वोट लेती रही लेकिन किसी ने उनकी समस्या का हल नहीं किया. रमेश ने कहा कि इस बार 15 गांवों के लोगों मतदान न करने का मन बनाया है.

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जिला वन अधिकारी राजीव कुमार ने बताया कि सिख कम्युनिटी के लोग पाकिस्तान के विभाजन के बाद यहां पर तराई क्षेत्र में विस्थापित हुए थे. जहां पर यह लोग है वह 15 गांव का जो मामला है. इन 15 गांवों की जमीन आरक्षित वन के रूप में है, जो 1950 और 51 के नोटिफिकेशन के रूप में वन विभाग को दिया गया था. पूरे के पूरे गांव वन विभाग को दे दिए गए थे. इसमें वन विभाग की ओर से अतिक्रमणकारियों को 2014 में नोटिस भी जारी किया गया था. जिसके बाद ग्रामीण कोर्ट चले गए थे.

वन अधिकारी ने बताया कि इस मामले में कमिश्नर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है. इस पूरे प्रकरण की टीम जांच करेगी, जो दस्तावेज है उनका परीक्षण करेगी. इसके बाद जो रिपोर्ट आएगी वह शासन को भेजे जाएगी. रिपोर्ट के आधार पर शासन जो भी निर्णय करेगा, वह सर्वोपरि होगा.

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