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पातालेश्वर शिव मंदिर: मुस्लिम आबादी में बने इस मंदिर की नींव नवाब अहमद अली खां ने रखी थी

रामपुर में पातालेश्वर शिव मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. बताया जाता है कि इस मंदिर की नींव रामपुर रियासत के चौथे नवाब अहमद अली खां ने रखी थी. आज भी इस मंदिर की देखभाल गांव में मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं. महादेव यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.

पातालेश्वर शिव मंदिर
पातालेश्वर शिव मंदिर
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Published : Jul 27, 2021, 8:02 AM IST

Updated : Jul 29, 2021, 6:08 AM IST

रामपुर: भगवान शिव का महीना कहा जाने वाला सावन आज यानि 25 जुलाई से शुरु हो गया है. सावन के महीने में हिंदू धर्म में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि सावन और सावन के सोमवार में बाबा भोले की पूजा करने से शिव प्रसन्न होते हैं. 26 जुलाई यानि कल सावन का पहला सोमवार है. उत्तर प्रदेश में वैसे तो कई प्रसिद्ध और प्राचीन शिव मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जिनका इतिहास सालों पुराना है. ऐसा ही एक मंदिर है रामपुर में जो कि 200 साल पुराना है. पातालेश्वर शिव मंदिर की खासियत है कि इसकी स्थापना रामपुर के मुस्लिम नवाब ने की थी.

मुस्लिम आबादी के बीच स्थित है मंदिर

इस मंदिर को रामपुर रियासत के नवाब ने 1822 में बनवाया था. इस मंदिर के लिए उन्होंने कई बीघा जमीन भी दान में दी थी. पातालेश्वर शिव मंदिर से काफी लोगों की आस्थाएं जुड़ी हैं और हर साल सावन के महीने में यहां हजारों लोग गंगाजल चढ़ाने के लिए आते हैं. इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि यह मंदिर घनी मुस्लिम आबादी के बीच में इकलौता भव्य मंदिर है. बता दें कि जिस गांव में ये मंदिर स्थित है उस गांव में एक भी हिन्दू परिवार नहीं रहता है. यहां सिर्फ मुस्लिम आबादी है और जब सावन माह में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं तो इसकी देखभाल मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं. महादेव यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.

पातालेश्वर शिव मंदिर रामपुर

स्वंभू के रुप में प्रकट हुए थे महादेव

रामपुर में रुहेला रियासत में दस नवाबों ने शासन किया. इनमें पहले शासक नवाब फैजुल्ला खां थे, अंतिम और दसवें शासक नवाब रजा अली खां रहे. रामपुर रियासत के चौथे शासक नवाब अहमद अली खां ने धार्मिक सौहार्द्र की मिसाल कायम की थी. उन्होंने उस समय भमरौआ में स्थित श्री पातालेश्वर महादेव शिव मंदिर के लिए करीब 35 बीघा जमीन दान दी थी. भमरौआ स्थित श्री पातालेश्वर शिव मंदिर बहुत प्राचीन है. मान्यता है कि बंजर भूमि से यहां महादेव स्वंभू के रुप में प्रकट हुए थे. वर्ष 1822 में इस मंदिर की बुनियाद रखी गई थी. इसके बाद समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है. फिलहाल मंदिर को भव्य बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें लगभग 101 करोड़ रुपये की लागत आएगी.

नवाब ने रखी थी मंदिर की नींव

मंदिर के बारे में यहां के पुजारी पंडित नरेश कुमार शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि भगवान शिव ने 1788 में यहां दर्शन दिए थे. 1822 में रियासत के नवाब अहमद अली साहब ने इस मंदिर की बुनियाद रखी थी. उन्होंने यहां मंदिर बनाने की परमिशन दी और हमारे पूर्वजों को यहां सेवा के लिए नियुक्त किया. इस गांव में उस समय भी 100 परसेंट मुस्लिम आबादी थी और आज भी 100 प्रतिशत मुस्लिम लोग यहां रहते हैं. इतनी बड़ी संख्या में यहां मुस्लिम आबादी होने का बाद भी आज तक कोई परेशानी नहीं हुई है. पुजारी ने बताया कि यहां मुस्लिम भाई सहयोग करते हैं. यहां दूर-दूर से लोग सावन के महीने में गंगाजल चढ़ाने आते हैं. मंदिर अपने विशाल रुप में बनकर तैयार हो रहा है.

गांव के लोग करते हैं सहयोग

भमरौआ गांव के प्रधान पति लईक ने बताया कि उनके दादा बताते थे कि इस समय जहां मंदिर है पहले वहां पत्थर हुआ करते थे. गांव के बच्चे दूसरे गांव बढ़पुरा शर्की में यहां से पत्थर ले जाते थे. शाम को बच्चे पत्थर ले जाते थे और रात को वह पत्थर वापस इसी जगह आ जाता था, जहां मंदिर है. फिर नवाब ने यहां मंदिर बनवा दिया. लईक ने बताया कि सावन के महीने में यहां जो मेला लगता है उसमें सारा सहयोग गांव के लोगों का ही रहता है.

रामपुर: भगवान शिव का महीना कहा जाने वाला सावन आज यानि 25 जुलाई से शुरु हो गया है. सावन के महीने में हिंदू धर्म में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि सावन और सावन के सोमवार में बाबा भोले की पूजा करने से शिव प्रसन्न होते हैं. 26 जुलाई यानि कल सावन का पहला सोमवार है. उत्तर प्रदेश में वैसे तो कई प्रसिद्ध और प्राचीन शिव मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जिनका इतिहास सालों पुराना है. ऐसा ही एक मंदिर है रामपुर में जो कि 200 साल पुराना है. पातालेश्वर शिव मंदिर की खासियत है कि इसकी स्थापना रामपुर के मुस्लिम नवाब ने की थी.

मुस्लिम आबादी के बीच स्थित है मंदिर

इस मंदिर को रामपुर रियासत के नवाब ने 1822 में बनवाया था. इस मंदिर के लिए उन्होंने कई बीघा जमीन भी दान में दी थी. पातालेश्वर शिव मंदिर से काफी लोगों की आस्थाएं जुड़ी हैं और हर साल सावन के महीने में यहां हजारों लोग गंगाजल चढ़ाने के लिए आते हैं. इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि यह मंदिर घनी मुस्लिम आबादी के बीच में इकलौता भव्य मंदिर है. बता दें कि जिस गांव में ये मंदिर स्थित है उस गांव में एक भी हिन्दू परिवार नहीं रहता है. यहां सिर्फ मुस्लिम आबादी है और जब सावन माह में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं तो इसकी देखभाल मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं. महादेव यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.

पातालेश्वर शिव मंदिर रामपुर

स्वंभू के रुप में प्रकट हुए थे महादेव

रामपुर में रुहेला रियासत में दस नवाबों ने शासन किया. इनमें पहले शासक नवाब फैजुल्ला खां थे, अंतिम और दसवें शासक नवाब रजा अली खां रहे. रामपुर रियासत के चौथे शासक नवाब अहमद अली खां ने धार्मिक सौहार्द्र की मिसाल कायम की थी. उन्होंने उस समय भमरौआ में स्थित श्री पातालेश्वर महादेव शिव मंदिर के लिए करीब 35 बीघा जमीन दान दी थी. भमरौआ स्थित श्री पातालेश्वर शिव मंदिर बहुत प्राचीन है. मान्यता है कि बंजर भूमि से यहां महादेव स्वंभू के रुप में प्रकट हुए थे. वर्ष 1822 में इस मंदिर की बुनियाद रखी गई थी. इसके बाद समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है. फिलहाल मंदिर को भव्य बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें लगभग 101 करोड़ रुपये की लागत आएगी.

नवाब ने रखी थी मंदिर की नींव

मंदिर के बारे में यहां के पुजारी पंडित नरेश कुमार शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि भगवान शिव ने 1788 में यहां दर्शन दिए थे. 1822 में रियासत के नवाब अहमद अली साहब ने इस मंदिर की बुनियाद रखी थी. उन्होंने यहां मंदिर बनाने की परमिशन दी और हमारे पूर्वजों को यहां सेवा के लिए नियुक्त किया. इस गांव में उस समय भी 100 परसेंट मुस्लिम आबादी थी और आज भी 100 प्रतिशत मुस्लिम लोग यहां रहते हैं. इतनी बड़ी संख्या में यहां मुस्लिम आबादी होने का बाद भी आज तक कोई परेशानी नहीं हुई है. पुजारी ने बताया कि यहां मुस्लिम भाई सहयोग करते हैं. यहां दूर-दूर से लोग सावन के महीने में गंगाजल चढ़ाने आते हैं. मंदिर अपने विशाल रुप में बनकर तैयार हो रहा है.

गांव के लोग करते हैं सहयोग

भमरौआ गांव के प्रधान पति लईक ने बताया कि उनके दादा बताते थे कि इस समय जहां मंदिर है पहले वहां पत्थर हुआ करते थे. गांव के बच्चे दूसरे गांव बढ़पुरा शर्की में यहां से पत्थर ले जाते थे. शाम को बच्चे पत्थर ले जाते थे और रात को वह पत्थर वापस इसी जगह आ जाता था, जहां मंदिर है. फिर नवाब ने यहां मंदिर बनवा दिया. लईक ने बताया कि सावन के महीने में यहां जो मेला लगता है उसमें सारा सहयोग गांव के लोगों का ही रहता है.

Last Updated : Jul 29, 2021, 6:08 AM IST
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