प्रयागराजः देशभर में मां शक्ति की आराधना का पावन पर्व नवरात्रि मनाया जा रहा है. आज नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा और अर्चना की जाती है. माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पहले जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव-जंतु नहीं था तो मां दुर्गा ने इस ब्रह्मांड की रचना की थी. आज के दिन मां को सफेद कद्दू या उससे बना हुआ मिठाई चढ़ाना चाहिए.
आचार्य अविनाश राय ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता कुष्मांडा ने ही ब्रहांड की रचना की थी. इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूप, आदिशक्ति माना जाता है. मां कुष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं. मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान है और इनकी तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं. मां कुष्मांडा की सवारी शेर है. उनके चारों दाएं हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल होता है. जबकि, चारों बाएं हाथ में जपने वाली माला, गदा, अमृत कलश और चक्र होता है.
मां की पूजा विधि: आचार्य ने आगे बताया कि माता की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. इसके बाद मां कुष्मांडा का ध्यान कर उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कोहड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें. इसके बाद मां कुष्मांडा को हलवे और दही का भोग लगाएं. अगर हो सके तो सफेद कद्दू का फल चढ़ाएं या उससे बने हुए मिठाई चढ़ाएं. इस प्रकार से भक्ति भाव से पूजा करने पर भगवती की कृपा प्राप्त होती है.
देवी की कथा: सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी जाना जाता है. इनके स्वरूप का वर्णन करते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह पर सवार हैं. मां कुष्मांडा के सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, अमृत से भरा हुआ कलश, बाण और कमल का फूल है तथा आठवें हाथ में जपमाला है जो सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त है.
माता को खुश करने का मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
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