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यूपी एक खोज: सूर्यदेव ने स्थापित किया था संगमनगरी में शिवलिंग, आज भी दिखती हैं सूर्य के ताप की लकीरें

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Published : May 11, 2022, 11:16 AM IST

यूपी एक खोज में आज हम एक ऐसे मंदिर की बात करेंगे, जिसकी स्थापना भगवान शिव ने की थी. शिवपुराण और स्कन्द पुराण में इस मंदिर का वर्णन शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से किया गया है.

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शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

प्रयागराज: यूपी के प्रयागराज में संगम के नजदीक एक ऐसा शिवलिंग स्थापित है, जिसकी स्थापना भगवान सूर्य देव ने की थी. परमपिता ब्रह्माजी के आदेश पर जनकल्याण के लिए आरोग्यता के देवता सूर्य देव ने संगम के पास अक्षयवट के ठीक सामने एक शिवलिंग को स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना की थी. शिवपुराण और स्कन्द पुराण में इस मंदिर का वर्णन शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से किया गया है. यहां पर दर्शन और पूजा करने से भगवान शिव के साथ ही सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. शिवलिंग की स्थापना के समय सूर्य देव के ताप की वजह से इस शिवलिंग में लकीरें बन गयी थीं, जो आज भी दिखती हैं.

शिवलिंग की पूजा से महादेव के साथ प्रसन्न होते हैं सूर्यदेव
भगवान सूर्य के द्वारा स्थापित किये गए इस इस शिवलिंग पर जल चढ़ाकर उसकी पूजा करने से न सिर्फ भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं, बल्कि उनके साथ सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. मान्यता यह भी है कि इस शिवलिंग की पूजा करने से एक साथ भगवान शिव और सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर के पीछे एक सूर्य देव का मंदिर भी बना हुआ है, जिसके बारे में बताया जाता है कि सदियों पहले कई ऋषि मुनि इस मंदिर में तपस्या करते थे. उसी वक्त से यहां पर सूर्य देव का मंदिर भी स्थापित किया गया था. फिलहाल यहां आने वाले भक्त सूर्यदेव के मंदिर में जाकर उनका भी दर्शन करते हैं.

शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

इस शिवलिंग में दिखती हैं रेखाएं
भगवान सूर्य के हाथों से स्थापित किये गये इस शिवलिंग की तरह दूसरा शिवलिंग पूरे प्रयागराज में कहीं और देखने को नहीं मिलता है. बताया जाता है कि जब भगवान सूर्य इस शिवलिंग की स्थापना कर रहे थे, तो उनके तेज ताप की वजह से शिवलिंग में रेखाएं बन गयी थीं. जो रेखाएं उस वक्त सूर्य देव के ताप से बनी थीं आज भी इस शिवलिंग में स्पष्ट तौर पर दिखती हैं. शिवलिंग को छूने पर भी उसमें लकीरों के होने का आभास होता है.

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शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर संगम के पास अरैल इलाके में स्थापित है, जहां पर मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भोले नाथ का जलाभिषेक कर उनकी उपासना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में शिव जी का विधिविधान के साथ जलाभिषेक कर उनकी पूजा-अर्चना की जाए तो निसन्तान दंपत्ति को संतान की भी प्राप्ति होती है.

यह भी पढ़ें: यूपी एक खोज: जब इस घंटाघर की टन टन से सोता जागता था लखनऊ

सूर्यजनित दोष से मिलती है मुक्ति
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर में जल चढ़ाकर सच्चे मन से पूजा करने से जिन लोगों के कुंडली मे सूर्य जनित दोष होते हैं, उससे भी मुक्ति मिलती है. मंदिर के पुजारी शेषधर पांडेय बताते हैं कि सूर्य देव द्वारा स्थापित इस मंदिर में पूजा-पाठ करने से महादेव के साथ ही सूर्य देव की कृपादृष्टि जीवन पर पड़ती है, जिससे सूर्यजनित सभी प्रकार के दोष से भी मुक्ति मिलती है.

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शिवलिंग

सच्चे मन से पूजा करने वालों के सम्मान में होती है वृद्धि
मंदिर के पुजारी शेषधर पांडेय बताते है कि अक्षयवट के ठीक सामने स्थित होने की वजह से इस मंदिर में किये गए पूजा-पाठ का फल कभी मिटता नहीं है. ये इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर शिवजी की पूजा करने से सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. सूर्य देव की प्रसन्नता से उनके भक्तों के जीवन में सुख शांति के साथ ही उनका मान सम्मान और प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होती है. इस मंदिर में सच्चे मन से भोले नाथ की उपासना करने वाले भक्तों का समाज में पद प्रतिष्ठा बढ़ती है.

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शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

संगम में जाता है शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल
इस मंदिर के बारे में एक ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है, वो जल किसी गुप्त रास्ते से होते हुए सीधे संगम में जाकर मिलता है. मुगल बादशाह अकबर की हिन्दू पत्नी जोधाबाई के बारे में कहा जाता है कि वो शूलटंकेश्वर मंदिर में भोले नाथ के इस शिवलिंग की पूजा उपासना करने आती थीं. आज भी किले में स्थित अक्षयवट से इस मंदिर को देखा जा सकता है और मंदिर से किला और अक्षयवट भी स्पष्ट रूप से दिखता है. अकबर ने जब संगम के पास किला बनवाया था तभी अक्षयवट उस किले की दीवारों के अंदर हो गया था. अक्षयवट वृक्ष आज भी लोगों को किले की दीवार के ऊपर दिखता है, जहां से लोग अक्षयवट का दर्शन भी करते हैं.

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प्रयागराज: यूपी के प्रयागराज में संगम के नजदीक एक ऐसा शिवलिंग स्थापित है, जिसकी स्थापना भगवान सूर्य देव ने की थी. परमपिता ब्रह्माजी के आदेश पर जनकल्याण के लिए आरोग्यता के देवता सूर्य देव ने संगम के पास अक्षयवट के ठीक सामने एक शिवलिंग को स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना की थी. शिवपुराण और स्कन्द पुराण में इस मंदिर का वर्णन शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से किया गया है. यहां पर दर्शन और पूजा करने से भगवान शिव के साथ ही सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. शिवलिंग की स्थापना के समय सूर्य देव के ताप की वजह से इस शिवलिंग में लकीरें बन गयी थीं, जो आज भी दिखती हैं.

शिवलिंग की पूजा से महादेव के साथ प्रसन्न होते हैं सूर्यदेव
भगवान सूर्य के द्वारा स्थापित किये गए इस इस शिवलिंग पर जल चढ़ाकर उसकी पूजा करने से न सिर्फ भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं, बल्कि उनके साथ सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. मान्यता यह भी है कि इस शिवलिंग की पूजा करने से एक साथ भगवान शिव और सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर के पीछे एक सूर्य देव का मंदिर भी बना हुआ है, जिसके बारे में बताया जाता है कि सदियों पहले कई ऋषि मुनि इस मंदिर में तपस्या करते थे. उसी वक्त से यहां पर सूर्य देव का मंदिर भी स्थापित किया गया था. फिलहाल यहां आने वाले भक्त सूर्यदेव के मंदिर में जाकर उनका भी दर्शन करते हैं.

शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

इस शिवलिंग में दिखती हैं रेखाएं
भगवान सूर्य के हाथों से स्थापित किये गये इस शिवलिंग की तरह दूसरा शिवलिंग पूरे प्रयागराज में कहीं और देखने को नहीं मिलता है. बताया जाता है कि जब भगवान सूर्य इस शिवलिंग की स्थापना कर रहे थे, तो उनके तेज ताप की वजह से शिवलिंग में रेखाएं बन गयी थीं. जो रेखाएं उस वक्त सूर्य देव के ताप से बनी थीं आज भी इस शिवलिंग में स्पष्ट तौर पर दिखती हैं. शिवलिंग को छूने पर भी उसमें लकीरों के होने का आभास होता है.

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शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर संगम के पास अरैल इलाके में स्थापित है, जहां पर मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भोले नाथ का जलाभिषेक कर उनकी उपासना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में शिव जी का विधिविधान के साथ जलाभिषेक कर उनकी पूजा-अर्चना की जाए तो निसन्तान दंपत्ति को संतान की भी प्राप्ति होती है.

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सूर्यजनित दोष से मिलती है मुक्ति
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर में जल चढ़ाकर सच्चे मन से पूजा करने से जिन लोगों के कुंडली मे सूर्य जनित दोष होते हैं, उससे भी मुक्ति मिलती है. मंदिर के पुजारी शेषधर पांडेय बताते हैं कि सूर्य देव द्वारा स्थापित इस मंदिर में पूजा-पाठ करने से महादेव के साथ ही सूर्य देव की कृपादृष्टि जीवन पर पड़ती है, जिससे सूर्यजनित सभी प्रकार के दोष से भी मुक्ति मिलती है.

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शिवलिंग

सच्चे मन से पूजा करने वालों के सम्मान में होती है वृद्धि
मंदिर के पुजारी शेषधर पांडेय बताते है कि अक्षयवट के ठीक सामने स्थित होने की वजह से इस मंदिर में किये गए पूजा-पाठ का फल कभी मिटता नहीं है. ये इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर शिवजी की पूजा करने से सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं. सूर्य देव की प्रसन्नता से उनके भक्तों के जीवन में सुख शांति के साथ ही उनका मान सम्मान और प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होती है. इस मंदिर में सच्चे मन से भोले नाथ की उपासना करने वाले भक्तों का समाज में पद प्रतिष्ठा बढ़ती है.

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शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर

संगम में जाता है शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल
इस मंदिर के बारे में एक ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है, वो जल किसी गुप्त रास्ते से होते हुए सीधे संगम में जाकर मिलता है. मुगल बादशाह अकबर की हिन्दू पत्नी जोधाबाई के बारे में कहा जाता है कि वो शूलटंकेश्वर मंदिर में भोले नाथ के इस शिवलिंग की पूजा उपासना करने आती थीं. आज भी किले में स्थित अक्षयवट से इस मंदिर को देखा जा सकता है और मंदिर से किला और अक्षयवट भी स्पष्ट रूप से दिखता है. अकबर ने जब संगम के पास किला बनवाया था तभी अक्षयवट उस किले की दीवारों के अंदर हो गया था. अक्षयवट वृक्ष आज भी लोगों को किले की दीवार के ऊपर दिखता है, जहां से लोग अक्षयवट का दर्शन भी करते हैं.

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