प्रयागराज : सर्कस अब केवल यादों में ही सिमटता जा रहा है. एक पूरी दुनिया होती है, रिंग के अंदर से लेकर बाहर तक. सर्कस का हर कलाकार अपनी जान की परवाह किए बगैर दर्शकों का मनोरंजन करता है और लोगों के मनोरंजन के बदले में उसके घर का चूल्हा जलता है. बरसों से सर्कस में काम कर रहे कलाकारों का कहना है कि कुछ साल पहले तक जो कमाई हो जाया करती थी, अब वह कमाई नहीं होती. वह काफी मुश्किल से अपने घर का खर्चा चला पाते हैं.
सिमट रही सर्कस की संख्या
15 बरस पहले भारत में 35 से भी ज्यादा बड़े सर्कस थे लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 4 से 6 हो चुकी है. अजंता सर्कस, जेमिनी, रैंबो, एशियाड सर्कस, गोल्डन सर्कस. ये उंगलियों पर गिनाने जितने ही नाम बचे हैं. सर्कस का बंद हो जाना केवल एक कला का खत्म होना भर नहीं है. इससे जुड़े हुनरमंद कलाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है. ऊपर से कोरोना ने कलाकारों पर दोहरी मार कर दी.
जानवरों के साथ ही दर्शक भी दूर होते गए
जानवरों के बारे में सख्त कानून की वजह से भी सर्कस पर बड़ी मार पड़ी. सर्कस से जैसे-जैसे जानवर दूर होते गए, वैसे-वैसे ही इससे दर्शक भी दूर होते गए. खास कर बच्चों को इससे बेहद निराशा हुई.
बदल रही है मनोरंजन की दुनिया
सर्कस में आपने जोकर का किरदार जरुर देखा होगा. जोकर सभी को हंसाता है. लेकिन उसकी हंसी के पीछे का दर्द कभी किसी ने नहीं देखा. सोशल मीडिया के बढ़ते दायरे और ओटीटी के बाजार ने लोगों को मनोरंजन के लिए नया प्लेटफॉर्म मुहैया करा दिया है. तकनीक के जमाने में कलाकारों की कला कहीं खो नहीं जाए, इस बात की चिंता सभी को है. लेकिन समाधान कोई नहीं जानता...
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