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दुष्कर्म के आरोपी को हाईकोर्ट से मिली राहत, एससी एसटी एक्ट में हुआ बरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी को राहत दी है. हाई कोर्ट ने कहा है कि एससी एसटी एक्ट (SC ST Act ) में सजा देने के लिए अभियुक्त का इरादा साबित करना जरूरी है.

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दुष्कर्म के आरोपी को हाईकोर्ट से मिली राहत
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Published : Sep 20, 2022, 10:29 PM IST

Updated : Sep 20, 2022, 10:50 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad high court judgement) ने कहा है कि एससी एसटी एक्ट (SC ST Act 0 की धारा 3 (2) (5 ) के तहत अभियुक्त को सजा सुनाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि अभियुक्त जानता था कि वह जिसके साथ अपराध कर रहा है. वह ऐसी एससी एसटी कम्युनिटी का सदस्य है, और उसके साथ इसलिए अपराध कर रहा है. क्योंकि वह एससी एसटी कम्युनिटी का है. कोर्ट ने उक्त निष्कर्ष के साथ दुष्कर्म और एससी एसटी एक्ट के तहत उम्र कैद की सजा पाए अभियुक्त को एससी एसटी एक्ट के तहत मिली उम्र कैद कि सजा से बरी कर दिया है. साथ ही दुष्कर्म के आरोप में भी अभियुक्त द्वारा जेल में बिताई गई 25 वर्ष की अवधि को देखते हुए कोर्ट ने इस सजा को पर्याप्त माना और अभियुक्त को बरी करने के लिए आदेश दिया है.

बस्ती के मनीराम चौधरी की आपराधिक अपील पर न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएस प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई की.अभियुक्त के खिलाफ बस्ती के कप्तानगंज थाने में 9 दिसंबर 2002 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. उस पर एक दलित छात्रा (12) जो कि घटना के समय स्कूल से घर लौट रही थी से दुष्कर्म करने का आरोप था. छात्रा की शिकायत पर उसके परिवार वालों ने उसी दिन थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई तथा मेडिकल परीक्षण कराया गया. मेडिकल परीक्षण में छात्रा से दुष्कर्म की बात साबित हुई. इस मामले में बस्ती की सेशन कोर्ट ने 21 मई 2004 को अभियुक्त मनीराम को नाबालिग दलित छात्रा से दुष्कर्म करने का दोषी ठहराते हुए दुष्कर्म व एससी एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5 )के तहत अलग-अलग उम्र कैद की सजा सुनाई. अदालत ने उस पर 20000 का जुर्माना भी लगाया.

सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. अपीलार्थी के वकील का कहना था कि उस पर एससी एसटी एक्ट की धारा के तहत कोई अपराध साबित नहीं होता है क्योंकि अभियुक्त यह नहीं जानता था कि पीड़िता एससी एसटी समुदाय की है. अधिवक्ता की दलील थी कि अभियोजन की ओर से यह बात साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं दिया गया कि अभियुक्त ने यह जानते हुए छात्रा के साथ दुष्कर्म किया क्योंकि वह दलित है. अभियुक्त के धारा 313 सीआरपीसी के बयान में भी उससे इस धारा के तहत जिरह नहीं की गई.

यह भी पढ़ें: कोर्ट ने पुलिस प्रोन्नति के पद पर सीधी भर्ती के खिलाफ दाखिल याचिका पर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया

कोर्ट का कहना था कि एससी एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5) के तहत सजा देने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि अभियुक्त ने यह जानते हुए अपराध किया कि पीड़ित एससी एसटी समुदाय का है, और अभियुक्त ने यह अपराध मात्र इसलिए किया क्योंकि वह जानता था कि पीड़ित एससी एसटी है. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में यह साबित करने के लिए अभियोजन ने कोई साक्ष्य नहीं दिया है. अभियुक्त से भी इस धारा के तहत लगाए गए आरोपों में कोई जिरह नहीं की गई जिससे कि उसे अपने बचाव का अवसर नहीं मिल सका. कोर्ट ने मनीराम चौधरी को एससी एसटी के आरोपों से बरी कर दिया.

मगर दुष्कर्म की धारा 376 के तहत उस पर अपराध साबित मानते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त 25 वर्ष जेल में काट चुका है. इस वक्त उसकी उम्र 65-70 वर्ष के करीब होगी. जेल में बिताई गई 25 वर्ष की अवधि पर्याप्त सजा है. कोर्ट ने अभियुक्त मनीराम को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है.

यह भी पढ़ें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई व बेटे को दी आंशिक राहत

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad high court judgement) ने कहा है कि एससी एसटी एक्ट (SC ST Act 0 की धारा 3 (2) (5 ) के तहत अभियुक्त को सजा सुनाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि अभियुक्त जानता था कि वह जिसके साथ अपराध कर रहा है. वह ऐसी एससी एसटी कम्युनिटी का सदस्य है, और उसके साथ इसलिए अपराध कर रहा है. क्योंकि वह एससी एसटी कम्युनिटी का है. कोर्ट ने उक्त निष्कर्ष के साथ दुष्कर्म और एससी एसटी एक्ट के तहत उम्र कैद की सजा पाए अभियुक्त को एससी एसटी एक्ट के तहत मिली उम्र कैद कि सजा से बरी कर दिया है. साथ ही दुष्कर्म के आरोप में भी अभियुक्त द्वारा जेल में बिताई गई 25 वर्ष की अवधि को देखते हुए कोर्ट ने इस सजा को पर्याप्त माना और अभियुक्त को बरी करने के लिए आदेश दिया है.

बस्ती के मनीराम चौधरी की आपराधिक अपील पर न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएस प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई की.अभियुक्त के खिलाफ बस्ती के कप्तानगंज थाने में 9 दिसंबर 2002 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. उस पर एक दलित छात्रा (12) जो कि घटना के समय स्कूल से घर लौट रही थी से दुष्कर्म करने का आरोप था. छात्रा की शिकायत पर उसके परिवार वालों ने उसी दिन थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई तथा मेडिकल परीक्षण कराया गया. मेडिकल परीक्षण में छात्रा से दुष्कर्म की बात साबित हुई. इस मामले में बस्ती की सेशन कोर्ट ने 21 मई 2004 को अभियुक्त मनीराम को नाबालिग दलित छात्रा से दुष्कर्म करने का दोषी ठहराते हुए दुष्कर्म व एससी एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5 )के तहत अलग-अलग उम्र कैद की सजा सुनाई. अदालत ने उस पर 20000 का जुर्माना भी लगाया.

सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. अपीलार्थी के वकील का कहना था कि उस पर एससी एसटी एक्ट की धारा के तहत कोई अपराध साबित नहीं होता है क्योंकि अभियुक्त यह नहीं जानता था कि पीड़िता एससी एसटी समुदाय की है. अधिवक्ता की दलील थी कि अभियोजन की ओर से यह बात साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं दिया गया कि अभियुक्त ने यह जानते हुए छात्रा के साथ दुष्कर्म किया क्योंकि वह दलित है. अभियुक्त के धारा 313 सीआरपीसी के बयान में भी उससे इस धारा के तहत जिरह नहीं की गई.

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कोर्ट का कहना था कि एससी एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5) के तहत सजा देने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि अभियुक्त ने यह जानते हुए अपराध किया कि पीड़ित एससी एसटी समुदाय का है, और अभियुक्त ने यह अपराध मात्र इसलिए किया क्योंकि वह जानता था कि पीड़ित एससी एसटी है. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में यह साबित करने के लिए अभियोजन ने कोई साक्ष्य नहीं दिया है. अभियुक्त से भी इस धारा के तहत लगाए गए आरोपों में कोई जिरह नहीं की गई जिससे कि उसे अपने बचाव का अवसर नहीं मिल सका. कोर्ट ने मनीराम चौधरी को एससी एसटी के आरोपों से बरी कर दिया.

मगर दुष्कर्म की धारा 376 के तहत उस पर अपराध साबित मानते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त 25 वर्ष जेल में काट चुका है. इस वक्त उसकी उम्र 65-70 वर्ष के करीब होगी. जेल में बिताई गई 25 वर्ष की अवधि पर्याप्त सजा है. कोर्ट ने अभियुक्त मनीराम को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है.

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Last Updated : Sep 20, 2022, 10:50 PM IST
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