प्रयागराज: संगम नगरी में आज भी दिन में होने वाली रामलीला अपनी सादगी के लिए मशहूर है. एक तरफ जहां रामलीला में आधुनिकता और तकनीकी का इस्तेमाल कर उसे हाईटेक बना दिया गया है. वहीं दिन वाली रामलीला आज भी उसी तरह से होती है, जैसे सौ साल पहले होती थी. तकनीक के नाम पर इस रामलीला में सिर्फ लाउड स्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है. पूरी तरह से सादगी के साथ होने वाली इस रामलीला की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई है.
इन दिनों देश भर के अलग-अलग हिस्सों में रामलीला देखने को मिलती है. लेकिन इन सबके बीच संगम नगरी प्रयागराज में शहर से दूर हनुमानगंज इलाके में एक ऐसी राम लीला होती है, जिसमें लीला का मंचन सूरज की रोशनी में होता है. सदियों से चल रही ये रामलीला दिन वाली रामलीला के नाम से मशहूर हो चुकी है. क्योंकि इस रामलीला की सम्पूर्ण लीला सूर्यास्त से पहले तक ही की जाती है. इसके साथ ही ये रामलीला आधुनिकता से दूर पूरी तरह से पारंपरिक तरीकों से प्राकृतिक संसाधनों से करवाई जाती है.
दिन वाली पारंपरिक रामलीला का मंचन दिन वाली रामलीला के नाम से मशहूर है जमुनीपुर की रामलीला: संगम से कई कोस दूर हनुमान गंज के जमुनीपुर इलाके में सूर्यास्त से पहले तक ही रामलीला होती है. इस रामलीला को देखने के लिए आसपास के इलाके के लोग भी पहुंचते हैं. पूरे जिले में यही एक ऐसी रामलीला कमेटी है, जिसकी रामलीला का मंचन दिन में होता है, जबकि अन्य सभी इलाकों में रात के समय होता है. सूरज की रोशनी में क्यों होती है रामलीला: जमुनीपुर इलाके में होने वाली रामलीला कमेटी से जुड़े लोगों का कहना है कि उनके यहां सदियों से चली आ रही रामलीला का मंचन पुराने तरीके होता है. इस रामलीला को उन्होंने आधुनिकता और भौतिकवाद से दूर रखा है. गांव के प्रधान और रामलीला कमेटी के अध्यक्ष का कहना है कि जिस वक्त बिजली नहीं थी, तभी से दिन में रामलीला होती चली आ रही है. लेकिन समय बदलने के बाद उन्होंने कोई बदलाव नहीं किया है. इसीलिए उनकी रामलीला सूर्यास्त से पहले तक ही होती है.रामलीला समिति जमुनीपुर प्रयागराज घोड़ा गाड़ी पर निकलती है भगवान राम की सवारी: आज के समय में जहां रामलीला के भगवान राम, लक्ष्मण और जानकी की सवारी आधुनिक सुविधाओं से लैस रथ और गाड़ियों पर निकलती है. लेकिन यहां की रामलीला में सभी की सवारी सादगी के साथ घोड़ा गाड़ी पर रखे हुए लकड़ी के रथ और कुर्सी पर निकाली जाती है. रामलीला मैदान से लेकर भरत मिलाप के मैदान तक भगवान राम की यात्रा निकाली जाती है. इस दौरान लोग प्राचीन रामलीला के पात्रों का दर्शन करने के लिए सड़कों के किनारे खड़े रहते हैं.
प्रभु श्री राम की रथ यात्रा 1916 में अंग्रेजों से रामलीला की लेनी पड़ी थी इजाजत: अंग्रेजी शासनकाल में 1916 में दिन वाली रामलीला में जुटने वाली भीड़ की वजह से स्थानीय पुलिस ने रामलीला के आयोजन पर रोक लगा दी थी. तब स्थानीय लोगों ने अंग्रेज अफसरों का घेराव कर आंदोलन किया था. उस दौरान अंग्रेज जनरल की इजाजत से दिन वाली रामलीला मंचन शुरू हो सका था. बताया जाता है कि 1916 में अंग्रेजी अफसर से मिला अनुमति पत्र आज भी गांव के दिवंगत ठाकुर राम प्रताप सिंह के वंशजों के पास मौजूद है. उस अनुमति पत्र के अनुसार यह रामलीला 106 साल पुरानी प्रमाणित होती है. जबकि ये रामलीला कब से शुरू हुई इसका कोई लिखित प्रमाण मौजूद नहीं है.पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का किया जाता है प्रयास: दिन वाली रामलीला कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष ग्राम प्रधान धर्मेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि उनके गांव की ये रामलीला प्रदेश की इकलौती रामलीला कमेटी है, जो दिन में रामलीला करवाती है. दिन में होने की वजह से लाइट या जेनरेटर का भी इस्तेमाल उनकी रामलीला के मंचन के दौरान नहीं किया जाता है. आधुनिकता के नाम पर इस रामलीला में सिर्फ लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है, वो भी सीमित मात्रा में जिससे इलाके में किसी तरह का ध्वनि प्रदूषण न फैले. यह भी पढ़ें- Mahakal Corridor Inauguration: पीएम मोदी ने महाकाल लोक का किया लोकार्पण