प्रयागराज: कोरोना काल के दौरान ज्यादातर बच्चे मोबाइल के जरिए ऑनलाइन पढ़ाई करते थे. इसके साथ ही तमाम बच्चे मोबाइल के अलावा टीवी, कम्प्यूटर, लैपटॉप आदि पर गेम खेलने के कारण कार्टून वीडियो ज्यादा देखने के आदी बन गए. मोबाइल टैबलेट पर पढ़ाई की उस वक्त लगी आदत अब बच्चों में नशा का रूप लेती जा रही है. मोबाइल के लती बच्चों को आदत से उबारने के लिए उनके शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जा रही है. प्रयागराज के मनोविज्ञानशाला में इन दिनों अलग-अलग इंटर कॉलेज से आए हुए टीचर्स को बताया जा रहा है कि कैसे बच्चों में मोबाइल के आदी होने का लक्षण को पहचाने और किस तरह से बच्चे को मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल करने की बुरी आदत से मुक्त करवाएं.
प्रयागराज के मनोविज्ञानशाला में इन दिनों 50 शिक्षकों के एक बैच को मनोवैज्ञानिक ट्रेनिंग दे रहे हैं. तीन दिनों के इस प्रशिक्षण में शिक्षकों को मनोविज्ञानशाला के मनोवैज्ञानिक बता रहे हैं कि किस तरह से बच्चे को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे मोबाइल, लैपटॉप, टीवी कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल करने की बुरी आदत से कैसे बचाना है. शिक्षकों को सबसे पहले मोबाइल के लती हो चुके छात्रों की पहचान करने के बारे में बताने के साथ ही उन्हें किस तरह से समझाना है यह भी बताया जा रहा है. समझाने के बाद भी बच्चे में कोई सुधार न आने पर उसे मनोविज्ञानशाला के मनोवैज्ञानिकों के पास तक लाने के लिए शिक्षकों को क्या करना है, इसके बारे में भी बताया गया है.
बच्चों के ज्यादा प्रभावित होने की वजह से की गई शुरुआत
मनोविज्ञानशाला की डायरेक्टर उषा चंद्रा ने बताया कि उनके यहां ऐसे अभिभावक आ रहे हैं, जिनके बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और टीवी पर ज्यादा समय बिताते हैं. इसकी वजह से उनके बर्ताव में बदलाव हो रहा है. बच्चे ज्यादा गुस्सैल और चिड़चिड़े हो रहे हैं. यही नहीं स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से स्टूडेंट का व्यवहार माता-पिता और शिक्षकों के साथ भी कई बार अच्छा नहीं होता है. ऐसे केस लगातार सामने आने की वजह से मनोविज्ञानशाला की तरफ से बड़े पैमाने पर जागरूकता और बच्चों की काउंसलिंग करने के लिए इस तरह के प्रशिक्षण की शुरुआत की गई है, जिससे स्कूलों के शिक्षक ट्रेनिंग लेकर जाएंगे और बच्चों की काउंसिलिंग करके समझाने का प्रयास करेंगे और जरूरत पड़ने पर मनोविज्ञानशाला भी भेजेंगे.
मोबाइल, टीवी के दुष्प्रभाव से बच्चों को कैसे बचाएं
मनोविज्ञानशाला में स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सम्पूर्ण विकास को लेकर ट्रेनिंग दी जा रही है. यहां पर टीवी, मोबाइल, इंटरनेट समेत इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के इस्तेमाल से बच्चों पर जो दुष्प्रभाव पड़ रहा है, उसको कैसे रोका जाए. इसी विषय पर तीन दिनों तक शिक्षकों को ट्रेनिंग दी गई. इस ट्रेनिंग में शिक्षकों को बताया गया कि उन्हें किस तरह से बच्चों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के दुष्प्रभाव को पहचानना है. साथ ही ऐसे लक्षण वाले बच्चों को समझाना है और कैसे उन्हें धीरे-धीरे इन लतों से दूर करना है.
मनोवैज्ञानिक रेनू सिंह ने शिक्षकों को बताया कि छात्रों को कैसे समझाना है. छात्रों को बताना है कि मोबाइल, लैपटॉप 'वीडियो गेम्स, कंप्यूटर और टीवी के अत्यधिक प्रयोग से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव का असर उनके जीवन पर पड़ेगा. जबकि, उसी का सही समय और उचित ढंग से इस्तेमाल कर कैसे उसका लाभ लिया जा सकता है. ये सभी बातें शिक्षकों को समझाई गई हैं. उन्हें बताया गया कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का ज्यादा इस्तेमाल करने से छात्रों के अंदर गुस्सा, आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, हिंसक होना और झूठ बोलने की आदत बढ़ रही है. इन्हीं लक्षणों को पहचानने के साथ ही छात्रों के व्यवहार में बदलाव और माता-पिता के साथ ही शिक्षक और दूसरे छात्रों के साथ बेहतर बर्ताव न करना भी लक्षण हो सकते हैं. ऐसे छात्रों को स्कूल में शिक्षक समझाकर उनकी काउंसिलिंग करेंगे. उसके बावजूद भी जिन बच्चों में सुधार नहीं होगा, उनको टीचर व अभिभावक की मदद से काउंसिलिंग के लिए मनोविज्ञानशाला तक भेजेंगे, जहां पर मनोवैज्ञानिक उनकी काउंसिलिंग करेंगे.
बुधवार से शुरू हुए तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में पहुंची शिक्षिका ने बताया कि यहां ट्रेनिंग के दौरान उन्हें जो कुछ बताया सिखाया गया है. उसके जरिए वो न सिर्फ अपने स्कूल के बच्चों के साथ ही घर परिवार के बच्चों की भी काउंसिलिंग कर सकेंगी. क्योंकि, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के इस्तेमाल करने की आदत ज्यादातर छात्रों में बढ़ रही है, जिसको कंट्रोल करने का प्रयास वो अपने स्तर से प्रयास करेंगी. इसके साथ ही इन लक्षणों वाले सभी छात्रों को भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के इस्तेमाल से होने वाले लाभ और हानि की जानकारी देंगे. साथ ही छात्रों को बताएंगी की किस तरह से इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का सही और तय समय तक इस्तेमाल कर उसका लाभ लिया जा सकता है.
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