प्रयागराज: दुनिया में आस्था की धरती कही जाने वाली संगम नगरी को नवरात्र में देवताओं को जागृत करने वाला माना जाता है. यहां नवरात्रि में घर-घर मां की स्थापना होती है और उनके अलग-अलग नौ स्वरूप की पूजा होती है. मंदिरों में भी मां के भक्तों की लंबी कतार लगती है. इस साल भी नवरात्रि में प्रयागराज के दारागंज स्थित रामलीला के श्रृंगार भवन में सैकड़ों वर्ष चली आ रही परंपरा के अनुसार मां काली का प्राकट्य उत्सव मनाया गया. कमेटी के सदस्यों के द्वारा मां काली का प्राकट्य उत्सव मनाया गया. इस दौरान मां काली के जयकारों से श्रृंगार भवन का कोना-कोना गूंज उठा.
बता दें कि हर साल दराजगंज स्थित श्रृंगार भवन में भुजौली और खप्पर लिए हुई मां काली प्रकट के रौद्र रूप को शांत कराने के लिए पुजारी उन्हें लौंग, नींबू, और जायफल की बलि देते हैं. इस साल भी मां काली का प्राकट्य उत्सव के दौरान श्रृंगार भवन मां काली के जयकारों से गूंज उठा. सैकड़ों वर्षों से सड़कों पर उतर कर मां काली भक्तों को दर्शन और आशीर्वाद दिया करती थीं, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस बार ऐसा नहीं हुआ. जिसकी वजह से मां काली के दर्शन और आशीर्वाद से भक्तो को वंचित रहना पड़ा.
दर्शन न मिलने से हुआ दुख
भक्त सोनी कहती हैं कि रामलीला के श्रृंगार भवन में मां काली का प्राकट्य की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. हर साल मां काली सड़कों पर निकलती थीं और लोगों को दर्शन दिया करती थी. दारागंज के लोगों में एक भाव हुआ करता था की साक्षात काली मां आ रही हैं. जबकि इस बार कोरोना की वजह से काली मां के बाहर न आने से दुख हुआ.
हजारों भक्त करते मां काली के दर्शन
रमेश कुमार मिश्र ने बताया कि आज श्रृंगार भवन में समस्त पदाधिकारियों के बीच में मां काली का प्राकट्य करवाया गया. कोरोना के चलते इस बार मां काली का प्राकट्य रोड पर नहीं कराया गया. क्योंकि हजारों की संख्या में मां काली के दर्शन के लिए भीड़ जुट जाती है. मां काली प्राकट्य होने का जो उद्देश्य है रामचरित्र मानस में नहीं वाल्मीकि रामायण में आता है. मां सीता ही मां काली का रूप धारण करती हैं और राक्षसों के वध के लिए हमारे यहां वही परंपरा चली आ रही है. मां से प्रार्थना की है कि कोरोना महामारी दूर हो और अगले वर्ष पूर्ण सज धज के साथ के साथ भव्य प्राकट्य हो.