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प्रयागराज: माघ मेले में पधारे तपस्वी बाबा, आग के बीचोबीच बैठ करते हैं पंचाग्नि तपस्या - माघ मेले में आए तपस्वी बाबा

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जनकल्याण और विश्व कल्याण के लिए माघ मेले में खाख चौक स्थित बसे सन्यासियों का एक समूह कठिन तपस्या करते हैं. यह तपस्या 18 सालों में पूरी होती है. इस दौरान सन्यासी खुद को आग की आंच में बैठकर तप करते हैं.

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पंचाग्नि तपस्या
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Published : Feb 5, 2020, 3:17 PM IST

प्रयागराज: जनकल्याण और विश्व कल्याण के लिए माघ मेले में खाख चौक स्थित बसे सन्यासियों का एक समूह कठिन तपस्या करते हैं. कम आयु से लेकर उम्रदराज तक सन्यासी कड़ी धूप में चारों तरफ अग्नि के बीचोंबीच बैठकर खुद को आंच में तपाते हैं. यह रोजाना तीन घंटे की पंचाग्नि तपस्या करते हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालु सन्यासियों को देखकर दंग रह जाते हैं. चारों तरफ अग्नि के आंच पर बैठकर तपस्या करना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता है. पंचाग्नि तपस्या करने में कठिन नियमों का पालन करना होता है.

पंचाग्नि तपस्या

बसंत पंचमी से शुरू होती है कठिन तपस्या
सन्यासी अमर दास ने बताया कि विश्व कल्याण, जन कल्याण को लेकर यह पंचाग्नि तपस्या किया जाता है. यह तपस्या गर्मी माह के शुभारंभ के साथ ही बसंत पंचमी से तपस्या शुरू की जाती है. तपस्वी नगर में बसे सन्यासी सुबह से ही तपस्या करते हैं. साथ ही वे दोपहर तीन बजे तक मंत्रजाप के साथ तपस्या करते हैं. कोई सन्यासी तीन घंटे तक करता है तो कोई चार घंटे तक अग्नि के बीच बैठकर आंच से तपता है.

18 साल तक चलती है यह तपस्या
सन्यासी अमरदास ने जानकारी देते हुए बताया कि इस तपस्या को छह प्रकार से की जाती है. सभी प्रकारों को तीन-तीन साल किया जाता है. सभी नियमों के पालन करते हुए पंचाग्नि तपस्या 18 सालों में पूरा होता है. माघ माह में सभी तपस्वी संगम किनारे यह तपस्या करते हैं और माघ मेला समाप्त होने के बाद अपने-अपने आश्रम में करते हैं. गंगा दशहरा तक इसी तरह तपस्या जारी रहता है.

कई तरह के धुनि लगाकर करते हैं तप
यह तपस्या कुल 18 सालों तक की जाती है. इस तपस्या में कुल छह चरण होते हैं. सबसे पहले पंचधुनि, सप्तम धुनि, द्वादश धुनि, चौरासी धुनि, कोट धुनि और खप्पर धुनि की तपस्या की जाती है. इन छह तपस्या को तीन-तीन साल किया जाता है. धुनि के बीच बैठकर तपस्या करते समय सन्यासी न किसी से बात करते हैं और न ही किसी को देखते हैं.

तपस्या खंडित होने पर फिर शुरू होता है तप
सन्यासी अमरदास ने जानकारी देते हुए बताया कि एक बार जब तपस्या शुरू हो जाती है तो कितनी भी मुश्किलें क्यों न आए लेकिन तपस्या को रोका नहीं जा सकता है. चाहे आंधी आए, चाहे पानी बरसे, इस तपस्या को जारी रखना होता है. अगर तपस्या बीच में रोक दिया जाता है तो उसे फिर से शुरू किया जाता है. माघ मेले में के समापन तक हर सुबह धुनि के बीच बैठकर सन्यासी तपस्या करते रहेंगे. सन्यासी अपने संकल्पों को पूरा करने के यह तपस्या करते हैं.

इसे भी पढ़ें- तेजाब की बिक्री को रेग्युलेट करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त

प्रयागराज: जनकल्याण और विश्व कल्याण के लिए माघ मेले में खाख चौक स्थित बसे सन्यासियों का एक समूह कठिन तपस्या करते हैं. कम आयु से लेकर उम्रदराज तक सन्यासी कड़ी धूप में चारों तरफ अग्नि के बीचोंबीच बैठकर खुद को आंच में तपाते हैं. यह रोजाना तीन घंटे की पंचाग्नि तपस्या करते हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालु सन्यासियों को देखकर दंग रह जाते हैं. चारों तरफ अग्नि के आंच पर बैठकर तपस्या करना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता है. पंचाग्नि तपस्या करने में कठिन नियमों का पालन करना होता है.

पंचाग्नि तपस्या

बसंत पंचमी से शुरू होती है कठिन तपस्या
सन्यासी अमर दास ने बताया कि विश्व कल्याण, जन कल्याण को लेकर यह पंचाग्नि तपस्या किया जाता है. यह तपस्या गर्मी माह के शुभारंभ के साथ ही बसंत पंचमी से तपस्या शुरू की जाती है. तपस्वी नगर में बसे सन्यासी सुबह से ही तपस्या करते हैं. साथ ही वे दोपहर तीन बजे तक मंत्रजाप के साथ तपस्या करते हैं. कोई सन्यासी तीन घंटे तक करता है तो कोई चार घंटे तक अग्नि के बीच बैठकर आंच से तपता है.

18 साल तक चलती है यह तपस्या
सन्यासी अमरदास ने जानकारी देते हुए बताया कि इस तपस्या को छह प्रकार से की जाती है. सभी प्रकारों को तीन-तीन साल किया जाता है. सभी नियमों के पालन करते हुए पंचाग्नि तपस्या 18 सालों में पूरा होता है. माघ माह में सभी तपस्वी संगम किनारे यह तपस्या करते हैं और माघ मेला समाप्त होने के बाद अपने-अपने आश्रम में करते हैं. गंगा दशहरा तक इसी तरह तपस्या जारी रहता है.

कई तरह के धुनि लगाकर करते हैं तप
यह तपस्या कुल 18 सालों तक की जाती है. इस तपस्या में कुल छह चरण होते हैं. सबसे पहले पंचधुनि, सप्तम धुनि, द्वादश धुनि, चौरासी धुनि, कोट धुनि और खप्पर धुनि की तपस्या की जाती है. इन छह तपस्या को तीन-तीन साल किया जाता है. धुनि के बीच बैठकर तपस्या करते समय सन्यासी न किसी से बात करते हैं और न ही किसी को देखते हैं.

तपस्या खंडित होने पर फिर शुरू होता है तप
सन्यासी अमरदास ने जानकारी देते हुए बताया कि एक बार जब तपस्या शुरू हो जाती है तो कितनी भी मुश्किलें क्यों न आए लेकिन तपस्या को रोका नहीं जा सकता है. चाहे आंधी आए, चाहे पानी बरसे, इस तपस्या को जारी रखना होता है. अगर तपस्या बीच में रोक दिया जाता है तो उसे फिर से शुरू किया जाता है. माघ मेले में के समापन तक हर सुबह धुनि के बीच बैठकर सन्यासी तपस्या करते रहेंगे. सन्यासी अपने संकल्पों को पूरा करने के यह तपस्या करते हैं.

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Intro:प्रयागराज: माघ मेले में आए तपस्वी बाबा, आग के बीचोबीच बैठकर करते हैं पंचाग्नि तपस्या

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प्रयागराज: जनकल्याण और विश्व कल्याण के लिए माघ मेले में खाख चौक स्थित बसे संन्यासियों का एक समूह कठिन तपस्या करता है. कम आयु से लेकर उम्रदराज तक सन्यासी कड़ी धूप में चारों तरफ अग्नि के बीचोंबीच बैठकर खुद को आंच से तपने का काम करते हैं. यह रोजाना तीन घंटे की पंचाग्नि तपस्या करते हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालु सन्यासियों को देखकर दंग रह जाते हैं. चारों तरफ अग्नि के आंच पर बैठकर तपस्या करना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता है. पंचाग्नि तपस्या करने में कठिन नियमों का पालन करना होता है.




Body:बसंत पंचमी से शुरू होती है कठिन तपस्या

सन्यासी अमर दास ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए बताया कि विश्व कल्याण, जन कल्याण को लेकर यह पंचाग्नि तपस्या किया जाता है. यह तपस्या गरमी माह के शुभारंभ के साथ ही बसंत पंचमी से तपस्या शुरू की जाती है. तपस्वी नगर में बसे सन्यासी सुबह से ही तपस्या करते हैं और दोपहर तीन बजे तक मंत्रजाप के साथ तपस्या करते हैं. कोई सन्यासी तीन घंटे तक करता है तो कोई चार घंटे तक अग्नि के बीच बैठकर आंच से तपता है.

18 साल तक चलता है यह तपस्या

सन्यासी अमरदास ने जानकारी देते हुए बताया कि इस तपस्या को छह प्रकार में किया जाता है. सभी प्रकारों को तीन-तीन साल किया जाता है. सभी नियमों के पालन करते हुए पंचाग्नि तपस्या 18 सालों में पूरा होता है. माघ माह में सभी तपस्वी संगम किनारे यह तपस्या करते हैं और माघ मेला समाप्त होने के बाद अपने-अपने आश्रम में करते हैं. गंगा दशहरा तक इसी तरह तपस्या जारी रहता है.


Conclusion:कई तरह के धुनि लगाकर करते हैं तप

सन्यासी अमरदास ने बताया कि इस तपस्या कुल 18 सालों तक किया जाता है. इस तपस्या में कुल छह चरण होते हैं. सबसे पहले पंचधुनि, फिर सप्तम धुनि, द्वादश धुनि, चौरासी धुनि, कोट धुनि और खप्पर धुनि की तपस्या की जाती है. छहों तपस्या को तीन-तीन साल किया जाता है. धुनि के बीच बैठकर तपस्या करते समय सन्यासी ना किसी से बात करते हैं और ना ही किसी को देखते हैं.

तपस्या खंडित होने पर फिर शुरू होता है

सन्यासी अमरदास ने जानकारी देते हुए बताया कि एक बार जब तपस्या शुरू हो जाता है तो कितनी भी मुश्किलें क्यों न आये लेकिन तपस्या को रोका नहीं जा सकता है. चाहे अंधी गए चाहे पानी बरसे इस तपस्या को जारी रखना होता है. अगर तपस्या बीच में रोक दिया जाता है तो उसे फिर से शुरू किया जाता है. माघ मेले में के समापन तक हर सुबह धुनि के बीच बैठकर सन्यासी तपस्या करते रहेंगे. सन्यासी अपने संकल्पों को पूरा करने के यह तपस्या करते हैं.


बाईट- अमरदास सन्यासी, अखिल भारतीय पंच तेरहाबाई त्यागी





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