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स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम के अध्यापकों को राहत, पाठ्यक्रम जारी रहने तक काम करने और वेतन भुगतान जारी रखने का निर्देश

प्रदेश भर में संचालित स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों और कर्मचारियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कहा कि स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके द्वारा संतोषजनक सेवा देने तक जारी रहेंगी.

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Published : Oct 2, 2021, 10:53 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: प्रदेश के विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों द्वारा संचालित स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों और कर्मचारियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कहा है कि 13 मार्च 2020 के शासनादेश के तहत इन शिक्षकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके संतोषजनक सेवाएं देते रहने तक जारी रहेंगी. कोर्ट ने 30 जून 2020 से अध्यापकों की सेवा समाप्त कर वेतन भुगतान रोकने के आदेश को मनमाना और अस‌ंवैधानिक करार दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने डॉ. मनोहर लाल और अन्य की याचिका पर दिया है. याचीगण की नियुक्ति विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित स्ववित्तपोषित पाठ्क्रमों में पढ़ाने के लिए संविदा के आधार पर हुई थी. शुरूआत में एक-एक वर्ष के लिए नियुक्ति की गई, जिसे 2015 तक हर वर्ष बढ़ाया जाता रहा. 2015 में याचीगण की नियुक्ति 5 वर्ष की संविदा पर 30 जून 2020 तक के लिए की गई है. कांट्रैक्ट लेटर में कहा गया कि 5 वर्ष की सेवा की शर्त का मामला सरकार के पास भेजा गया और यह सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगा. इस बीच प्रदेश सरकार ने 13 मार्च 2020 को शासनादेश जारी कर कहा कि स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके द्वारा संतोषजनक सेवा देने तक जारी रहेंगी. इस शासनादेश के आधार पर विश्वविद्यालयों को अपने नियमों और परिनियमों में परिवर्तन करने का निर्देश दिया गया.

विश्वविद्यालय ने 30 जून 2020 के बाद याचीगण का कांट्रैक्ट समाप्त होने के आधार पर वेतन भुगतान रोक दिया और नए सिरे से कांट्रैक्ट करने के लिए कहा. इसे याचिका में चुनौती दी गई. कहा गया कि विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी परिषद ने 13 मार्च के शासनादेश को स्वीकार कर लिया है, लेकिन कुलपति ने इसे मंजूरी नहीं दी है. याचीगण से अभी भी सेवाएं ली जा रही हैं, किन्तु वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि 5 वर्ष की संविदा करते समय यह भी कहा गया था कि 5 वर्ष की सेवा का मामला सरकार को भेजा गया और सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगा. अब सरकार ने 13 मार्च के शासनादेश द्वारा 5 वर्ष की संविदा को समाप्त कर दिया है और सेवा पाठ्यक्रम के जारी रहने या संतोषजनक कार्य करते रहने तक के लिए कर दी है. ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय द्वारा याचीगण की सेवा 5 साल संविदा समाप्त होने की तिथि तक ही मानना अविवेकपूर्ण है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने याचीगण को सेवा में मानते हुए वेतन भुगतान का निर्देश दिया है.

प्रयागराज: प्रदेश के विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों द्वारा संचालित स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों और कर्मचारियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कहा है कि 13 मार्च 2020 के शासनादेश के तहत इन शिक्षकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके संतोषजनक सेवाएं देते रहने तक जारी रहेंगी. कोर्ट ने 30 जून 2020 से अध्यापकों की सेवा समाप्त कर वेतन भुगतान रोकने के आदेश को मनमाना और अस‌ंवैधानिक करार दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने डॉ. मनोहर लाल और अन्य की याचिका पर दिया है. याचीगण की नियुक्ति विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित स्ववित्तपोषित पाठ्क्रमों में पढ़ाने के लिए संविदा के आधार पर हुई थी. शुरूआत में एक-एक वर्ष के लिए नियुक्ति की गई, जिसे 2015 तक हर वर्ष बढ़ाया जाता रहा. 2015 में याचीगण की नियुक्ति 5 वर्ष की संविदा पर 30 जून 2020 तक के लिए की गई है. कांट्रैक्ट लेटर में कहा गया कि 5 वर्ष की सेवा की शर्त का मामला सरकार के पास भेजा गया और यह सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगा. इस बीच प्रदेश सरकार ने 13 मार्च 2020 को शासनादेश जारी कर कहा कि स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके द्वारा संतोषजनक सेवा देने तक जारी रहेंगी. इस शासनादेश के आधार पर विश्वविद्यालयों को अपने नियमों और परिनियमों में परिवर्तन करने का निर्देश दिया गया.

विश्वविद्यालय ने 30 जून 2020 के बाद याचीगण का कांट्रैक्ट समाप्त होने के आधार पर वेतन भुगतान रोक दिया और नए सिरे से कांट्रैक्ट करने के लिए कहा. इसे याचिका में चुनौती दी गई. कहा गया कि विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी परिषद ने 13 मार्च के शासनादेश को स्वीकार कर लिया है, लेकिन कुलपति ने इसे मंजूरी नहीं दी है. याचीगण से अभी भी सेवाएं ली जा रही हैं, किन्तु वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि 5 वर्ष की संविदा करते समय यह भी कहा गया था कि 5 वर्ष की सेवा का मामला सरकार को भेजा गया और सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगा. अब सरकार ने 13 मार्च के शासनादेश द्वारा 5 वर्ष की संविदा को समाप्त कर दिया है और सेवा पाठ्यक्रम के जारी रहने या संतोषजनक कार्य करते रहने तक के लिए कर दी है. ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय द्वारा याचीगण की सेवा 5 साल संविदा समाप्त होने की तिथि तक ही मानना अविवेकपूर्ण है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने याचीगण को सेवा में मानते हुए वेतन भुगतान का निर्देश दिया है.

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