प्रयागराज : ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर द्वारा केस स्थानांतरित करने के मामले में दिए गए आदेश पर अंजुमन इन्तजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से आपत्ति की गई है. कहा गया कि केस स्थानातंरण को लेकर याचियों की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई है और न ही यह कहा गया कि केस स्थानांतरित कर दिया जाए. कोर्ट ने अपने आदेश में याचियों की ओर से केस स्थानांतरित की अर्जी देने की बात कही है, जबकि याचियों की ओर से यह अर्जी दी नहीं गई है. कोर्ट अपने आदेश से इस लाइन को हटाए कि याची अधिवक्ता की ओर से स्थानांतरण की अर्जी दी गई. कोर्ट ने याची अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद केस की सुनवाई के लिए 25 सितंबर के बाद तिथि नियत करने का निर्देश दिया है.
वकील के नाम की जानकारी याची को नहीं : अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की ओर से कहा गया कि याचियों की ओर से केस न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कोर्ट से स्थानांतरित करने की मांग में कोई अर्जी नहीं दी गई है. कोर्ट के आदेश में याचियों की अर्जी का जिक्र किया गया है. उस वकील के नाम की जानकारी याची को नहीं है. याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश के केस की सुनवाई करने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन याचियों की तरफ से कोई अर्जी केस स्थानांतरण की दी गई, इस तथ्य को हटाया जाए. मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी व अजय कुमार सिंह ने भी हलफनामे के पैरा 10 का उल्लेख किया और पक्ष रखा. मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर ने अर्जी पर आदेश देने का आश्वासन देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी.
दाखिल हैं पांच याचिकाएं : कोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की पांच याचिकाएं सिविल अदालत, वाराणसी में दाखिल मुकदमे की ग्राह्यता व ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने की आपत्ति को लेकर दाखिल की गई हैं. न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया इस मामले की लंबे समय से सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने निर्णय सुरक्षित कर लिया था, जो 28 अगस्त को आना था. इससे पहले मुख्य न्यायाधीश ने अपनी अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल करते हुए 16 अगस्त को केस अपनी कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया.
याची ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया : याची की ओर से कहा गया कि सामान्यतया लंबी बहस के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया गया है और निर्णय की तिथि तय हो तो केस स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस संबंध में फैसलों का हवाला दिया. कहा कि यह ज्युडिशियल प्रोपराइटी के विपरीत है, लेकिन यह भी कहा कि मुख्य न्यायाधीश के केस की सुनवाई करने पर उन्हें आपत्ति नहीं है.
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