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ग्राम प्रधान के अधिकार सीज करने से पूर्व उसका पक्ष लेना अनिवार्यः हाईकोर्ट - प्रयागराज की खबरें

हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा किपंचायती राज एक्ट में जिलाधिकारी की शक्ति अर्ध न्यायिक, नैसर्गिक न्याय का पालन जरूरी है. लेकिन, जिलाधिकारी द्वारा ग्राम प्रधान के अधिकार सीज करने से पहले उसका पक्ष लेना अनिवार्य है.

हाईकोर्ट
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Published : Mar 23, 2023, 10:22 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि यूपी पंचायती राज एक्ट की धारा 95( एक )(जी )के तहत जिलाधिकारी की शक्तियां अर्ध न्यायिक प्रकृति की है. इनका पालन करते समय नैसर्गिक न्याय का ध्यान रखना जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि इस धारा के तहत किसी निर्वाचित ग्राम प्रधान के वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार जब्त करने से पूर्व जिलाधिकारी द्वारा उसका पक्ष सुना जाना जरूरी है. कोर्ट ने एटा के पवास ग्राम पंचायत की निर्वाचित प्रधान प्रियंवदा तोमर के वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार जब्त करने के जिला अधिकारी एटा के आदेश को रद्द कर दिया है.

कोर्ट ने कहा कि ग्राम प्रधान के विरुद्ध प्रारंभिक जांच में शिकायतें सही नहीं पाई गई. कारण बताओ नोटिस में लगाए गए आरोपों के आधार पर उसके विरुद्ध कार्रवाई की गई. जिलाधिकारी ने अधिकार जब्त करने का आदेश देते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया है. प्रियंवदा तोमर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने दिया.

मामले के अनुसार प्रियंवदा तोमर 19 मई 2021 को ग्राम प्रधान निर्वाचित हुई. उनके काम को लेकर के जिलाधिकारी से शिकायत की गई. जिस पर जिलाधिकारी ने आरंभिक जांच के आदेश दिए. आरंभिक जांच रिपोर्ट आने के बाद डीएम एटा ने याची को कारण बताओ नोटिस जारी किया. जबकि याची का कहना था कि उसे ऐसा कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुआ है. 1 फरवरी 2023 को उसे रिमाइंडर भेजते हुए 7 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा गया. याची ने अपना जवाब दाखिल किया. मगर उसके बाद उसे कोई नोटिस नहीं दिया गया और 23 फरवरी 2023 को वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार जब्त कर लिए गए.

याची के अधिवक्ता का कहना था कि आरंभिक जांच रिपोर्ट में सिर्फ एक आरोप कुछ हद तक सही पाया गया. इसके विपरीत कारण बताओ नोटिस में याची पर बिना टेंडर के काम देने, ग्राम समाज की संपत्ति लीज पर देने और ब्लैक लिस्ट कंपनी को काम करते का देने का आरोप लगाया गया. कारण बताओ नोटिस में लगाए गए आरोप आरंभिक जांच में सही नहीं पाए गए. याची ने अपना जवाब दिया था मगर आदेश में कहा गया है कि अवसर देने के बावजूद उसने अपना जवाब नहीं दिया. अधिवक्ता ने कहा कि डीएम के आदेश में जिन आरोपों पर कार्रवाई की गई है वह आरोप आरंभिक जांच रिपोर्ट में सही नहीं पाए गए. कोर्ट ने डीएम का आदेश रद्द करते हुए उनको नए सिरे से नियमानुसार कार्रवाई की छूट दी है.

यह भी पढ़ें:High court news: कोर्ट में जानकारी न देने पर उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक तलब

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि यूपी पंचायती राज एक्ट की धारा 95( एक )(जी )के तहत जिलाधिकारी की शक्तियां अर्ध न्यायिक प्रकृति की है. इनका पालन करते समय नैसर्गिक न्याय का ध्यान रखना जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि इस धारा के तहत किसी निर्वाचित ग्राम प्रधान के वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार जब्त करने से पूर्व जिलाधिकारी द्वारा उसका पक्ष सुना जाना जरूरी है. कोर्ट ने एटा के पवास ग्राम पंचायत की निर्वाचित प्रधान प्रियंवदा तोमर के वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार जब्त करने के जिला अधिकारी एटा के आदेश को रद्द कर दिया है.

कोर्ट ने कहा कि ग्राम प्रधान के विरुद्ध प्रारंभिक जांच में शिकायतें सही नहीं पाई गई. कारण बताओ नोटिस में लगाए गए आरोपों के आधार पर उसके विरुद्ध कार्रवाई की गई. जिलाधिकारी ने अधिकार जब्त करने का आदेश देते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया है. प्रियंवदा तोमर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने दिया.

मामले के अनुसार प्रियंवदा तोमर 19 मई 2021 को ग्राम प्रधान निर्वाचित हुई. उनके काम को लेकर के जिलाधिकारी से शिकायत की गई. जिस पर जिलाधिकारी ने आरंभिक जांच के आदेश दिए. आरंभिक जांच रिपोर्ट आने के बाद डीएम एटा ने याची को कारण बताओ नोटिस जारी किया. जबकि याची का कहना था कि उसे ऐसा कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुआ है. 1 फरवरी 2023 को उसे रिमाइंडर भेजते हुए 7 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा गया. याची ने अपना जवाब दाखिल किया. मगर उसके बाद उसे कोई नोटिस नहीं दिया गया और 23 फरवरी 2023 को वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार जब्त कर लिए गए.

याची के अधिवक्ता का कहना था कि आरंभिक जांच रिपोर्ट में सिर्फ एक आरोप कुछ हद तक सही पाया गया. इसके विपरीत कारण बताओ नोटिस में याची पर बिना टेंडर के काम देने, ग्राम समाज की संपत्ति लीज पर देने और ब्लैक लिस्ट कंपनी को काम करते का देने का आरोप लगाया गया. कारण बताओ नोटिस में लगाए गए आरोप आरंभिक जांच में सही नहीं पाए गए. याची ने अपना जवाब दिया था मगर आदेश में कहा गया है कि अवसर देने के बावजूद उसने अपना जवाब नहीं दिया. अधिवक्ता ने कहा कि डीएम के आदेश में जिन आरोपों पर कार्रवाई की गई है वह आरोप आरंभिक जांच रिपोर्ट में सही नहीं पाए गए. कोर्ट ने डीएम का आदेश रद्द करते हुए उनको नए सिरे से नियमानुसार कार्रवाई की छूट दी है.

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