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बाहर हुए समझौते से कोर्ट का आदेश नहीं होता खत्म- HC

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट के बाहर पति-पत्नी के बीच हुए समझौते से कोर्ट आदेश खत्म नहीं होता. हाईकोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा मां को सौंपने के निर्देश दिये हैं.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट
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Published : May 13, 2022, 5:12 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट के बाहर पति-पत्नी के बीच हुए समझौते से कोर्ट आदेश खत्म नहीं होता है, जबतक कोर्ट की मंजूरी नहीं मिली हो. हाई कोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा 10 साल की आयु तक मां को सौंपी थी. इस बीच पति-पत्नी में साथ रहने का समझौता हो गया. लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चला और फिर से झगड़ा होने लगा. जिसके बाद पत्नी ने घर छोड़ दिया. लेकिन पति ने जबरन बच्चा अपने पास रख लिया. जिसके बाद पत्नी स्वेता गुप्ता ने बच्चे की अभिरक्षा न सौंपने पर पति डॉक्टर अभिजीत कुमार और अन्य के खिलाफ कोर्ट आदेश की अवमानना करने का केस दायर किया है.

जिसपर याचिका की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार 10 साल की आयु तक मां को कोर्ट ने ही सौंपा है. कोर्ट के बाहर हुए समझौते से आदेश खत्म नहीं होगा. कोर्ट ने बच्चे की इच्छा भी पूछी कि वो किसके साथ रहना पसंद करेगा, तो उसने मां के साथ जाने की इच्छा जताई. इसपर कोर्ट ने विपक्षी पति को बच्चे की अभिरक्षा मां को सौंपने का निर्देश दिया और कहा कि 10 साल की आयु तक बच्चा मां की अभिरक्षा में रहेगा.

कोर्ट ने पति से एक महीने में याचिका पर जवाब मांगा है. अगली सुनवाई जुलाई महीने में होगी. आपको बता दें कि पति-पत्नी के बीच विवाद पर दोनों अलग रहने लगे. पिता ने नाबालिग बच्चे आरव की अवैध निरूद्धि से मुक्त करने की बंदी प्रत्यक्षीकरण दायर की. कोर्ट ने कहा कि आरव 10 साल की आयु तक मां के साथ रहेगा. पिता और दादा हफ्ते में एक दिन तीन घंटे के लिए दोपहर में मिल सकेंगे. कोर्ट ने पति का जमा कराया गया 15 हजार रुपया मां को देने का आदेश दिया है.

28 नवंबर 2019 के इस आदेश के बाद 29 फरवरी 2020 को दोनों में साथ रहने का समझौता हो गया. इसके बाद दोनों के बीच दोबारा झगड़ा हुआ तो याची पत्नी ने 8 जनवरी 2022 को घर छोड़ दिया. लेकिन बच्चे को उसके पति ने नहीं सौंपा.

इसे भी पढ़ें- ज्ञानवापी मामले में नियुक्त कोर्ट कमिश्नर EXCLUSIVE: निष्पक्ष सर्वे की कही बात, सुरक्षा को लेकर जताई चिंता

विपक्षी पति की ओर से तर्क दिया गया कि समझौते के बाद कोर्ट का आदेश उसी में निहित हो गया. पत्नी अभिरक्षा के लिए वाद दायर कर सकती है. याची पत्नी की ओर से कहा गया है कि पंजीकृत समझौता कोर्ट में नहीं हुआ है. कोर्ट के बाहर हुए समझौते से कोर्ट के बच्चे की अभिरक्षा के आदेश पर इसका असर नहीं पड़ेगा.

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प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट के बाहर पति-पत्नी के बीच हुए समझौते से कोर्ट आदेश खत्म नहीं होता है, जबतक कोर्ट की मंजूरी नहीं मिली हो. हाई कोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा 10 साल की आयु तक मां को सौंपी थी. इस बीच पति-पत्नी में साथ रहने का समझौता हो गया. लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चला और फिर से झगड़ा होने लगा. जिसके बाद पत्नी ने घर छोड़ दिया. लेकिन पति ने जबरन बच्चा अपने पास रख लिया. जिसके बाद पत्नी स्वेता गुप्ता ने बच्चे की अभिरक्षा न सौंपने पर पति डॉक्टर अभिजीत कुमार और अन्य के खिलाफ कोर्ट आदेश की अवमानना करने का केस दायर किया है.

जिसपर याचिका की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार 10 साल की आयु तक मां को कोर्ट ने ही सौंपा है. कोर्ट के बाहर हुए समझौते से आदेश खत्म नहीं होगा. कोर्ट ने बच्चे की इच्छा भी पूछी कि वो किसके साथ रहना पसंद करेगा, तो उसने मां के साथ जाने की इच्छा जताई. इसपर कोर्ट ने विपक्षी पति को बच्चे की अभिरक्षा मां को सौंपने का निर्देश दिया और कहा कि 10 साल की आयु तक बच्चा मां की अभिरक्षा में रहेगा.

कोर्ट ने पति से एक महीने में याचिका पर जवाब मांगा है. अगली सुनवाई जुलाई महीने में होगी. आपको बता दें कि पति-पत्नी के बीच विवाद पर दोनों अलग रहने लगे. पिता ने नाबालिग बच्चे आरव की अवैध निरूद्धि से मुक्त करने की बंदी प्रत्यक्षीकरण दायर की. कोर्ट ने कहा कि आरव 10 साल की आयु तक मां के साथ रहेगा. पिता और दादा हफ्ते में एक दिन तीन घंटे के लिए दोपहर में मिल सकेंगे. कोर्ट ने पति का जमा कराया गया 15 हजार रुपया मां को देने का आदेश दिया है.

28 नवंबर 2019 के इस आदेश के बाद 29 फरवरी 2020 को दोनों में साथ रहने का समझौता हो गया. इसके बाद दोनों के बीच दोबारा झगड़ा हुआ तो याची पत्नी ने 8 जनवरी 2022 को घर छोड़ दिया. लेकिन बच्चे को उसके पति ने नहीं सौंपा.

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विपक्षी पति की ओर से तर्क दिया गया कि समझौते के बाद कोर्ट का आदेश उसी में निहित हो गया. पत्नी अभिरक्षा के लिए वाद दायर कर सकती है. याची पत्नी की ओर से कहा गया है कि पंजीकृत समझौता कोर्ट में नहीं हुआ है. कोर्ट के बाहर हुए समझौते से कोर्ट के बच्चे की अभिरक्षा के आदेश पर इसका असर नहीं पड़ेगा.

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