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अपराधियों को वकालत का लाइसेंस न दे बार काउंसिल: इलाहाबाद हाईकोर्ट - इलाहाबाद हाईकोर्ट

मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और यूपी बार काउंसिल को आपराधिक मुकदमे के आरोपी या सजायाफ्ता किसी भी व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस (Advocate license to criminals) नहीं देने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा (Allahabad High Court orders UP Bar Council) कि पुलिस रिपोर्ट मंगाकर वकालत का रजिस्ट्रेशन किया जाए. जांच में अपराध का खुलासा हो या तथ्य छिपाया जाए तो आवेदन निरस्त कर दिया जाए.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 27, 2023, 9:53 AM IST

प्रयागराज: मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार व यूपी बार काउंसिल (Allahabad High Court orders UP Bar Council) को आपराधिक मुकदमे के आरोपी या सजायाफ्ता किसी भी व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस नहीं देने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि बार कौंसिल रजिस्ट्रेशन के आवेदन में ही आवेदक पर दर्ज अपराध की जांच करने प्रक्रिया अपनाएं, ताकि गुमराह कर वकालत का लाइसेंस प्राप्त न किया जा सके. यदि यह पता चलता है कि पुलिस रिपोर्ट से तथ्य छिपाकर लाइसेंस लिया गया है, तो आवेदन निरस्त कर दिया जाए.

यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह एवं न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अधिवक्ता पवन कुमार दुबे की याचिका पर अधिवक्ता सुरेश चंद्र द्विवेदी और अन्य को सुनकर दिया है. कोर्ट ने यह आदेश 14 आपराधिक केसों का इतिहास और चार मुकदमों में सजायाफ्ता व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस (Advocate license to criminals) देने के खिलाफ शिकायत पर बार काउंसिल के निर्णय लेने में देरी को देखते हुए दिया है.

कोर्ट ने यूपी बार कौंसिल की अनुशासनात्मक समिति को जय कृष्ण मिश्र के खिलाफ याची की शिकायत तीन माह में निस्तारित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को वकालत का लाइसेंस देना जारी रहा, तो यह समाज के लिए नुकसानदायक होगा. कोर्ट ने आवेदन में आपराधिक मामलों के खुलासे की प्रक्रिया को लंबित व दाखिल होने वाले सभी आवेदनों पर लागू करने का निर्देश दिया. मामले में एडवोकेट सुरेश चंद्र द्विवेदी का कहना था कि विपक्षी अधिवक्ता का आपराधिक इतिहास है और वह सजायाफ्ता भी है.

इसके बावजूद बार काउंसिल ने उसे वकालत का लाइसेंस दे दिया है. याची ने उसके खिलाफ 25 सितंबर 2022 को शिकायत की गयी थी, लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि यह एलार्मिंग स्थिति है कि अपराधी वकील बन रहे हैं. ऐसे लोगों को लाइसेंस देने पर एडवोकेट एक्ट में प्रतिबंधित किया गया है. कोर्ट ने बार काउंसिल को निर्देश दिया कि लाइसेंस देने की प्रक्रिया में संबंधित थाने की पुलिस रिपोर्ट मंगाने को शामिल करें. साथ ही आवेदन में दर्ज अपराध का खुलासा अनिवार्य किया जाए. तथ्य छिपाने पर आवेदन निरस्त कर दिया जाए.

ये भी पढ़ें- चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल रेड होने पर बंद करना होगा गाड़ी का इंजन, ग्रीन होने पर ही कर सकेंगे स्टार्ट

प्रयागराज: मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार व यूपी बार काउंसिल (Allahabad High Court orders UP Bar Council) को आपराधिक मुकदमे के आरोपी या सजायाफ्ता किसी भी व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस नहीं देने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि बार कौंसिल रजिस्ट्रेशन के आवेदन में ही आवेदक पर दर्ज अपराध की जांच करने प्रक्रिया अपनाएं, ताकि गुमराह कर वकालत का लाइसेंस प्राप्त न किया जा सके. यदि यह पता चलता है कि पुलिस रिपोर्ट से तथ्य छिपाकर लाइसेंस लिया गया है, तो आवेदन निरस्त कर दिया जाए.

यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह एवं न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अधिवक्ता पवन कुमार दुबे की याचिका पर अधिवक्ता सुरेश चंद्र द्विवेदी और अन्य को सुनकर दिया है. कोर्ट ने यह आदेश 14 आपराधिक केसों का इतिहास और चार मुकदमों में सजायाफ्ता व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस (Advocate license to criminals) देने के खिलाफ शिकायत पर बार काउंसिल के निर्णय लेने में देरी को देखते हुए दिया है.

कोर्ट ने यूपी बार कौंसिल की अनुशासनात्मक समिति को जय कृष्ण मिश्र के खिलाफ याची की शिकायत तीन माह में निस्तारित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को वकालत का लाइसेंस देना जारी रहा, तो यह समाज के लिए नुकसानदायक होगा. कोर्ट ने आवेदन में आपराधिक मामलों के खुलासे की प्रक्रिया को लंबित व दाखिल होने वाले सभी आवेदनों पर लागू करने का निर्देश दिया. मामले में एडवोकेट सुरेश चंद्र द्विवेदी का कहना था कि विपक्षी अधिवक्ता का आपराधिक इतिहास है और वह सजायाफ्ता भी है.

इसके बावजूद बार काउंसिल ने उसे वकालत का लाइसेंस दे दिया है. याची ने उसके खिलाफ 25 सितंबर 2022 को शिकायत की गयी थी, लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि यह एलार्मिंग स्थिति है कि अपराधी वकील बन रहे हैं. ऐसे लोगों को लाइसेंस देने पर एडवोकेट एक्ट में प्रतिबंधित किया गया है. कोर्ट ने बार काउंसिल को निर्देश दिया कि लाइसेंस देने की प्रक्रिया में संबंधित थाने की पुलिस रिपोर्ट मंगाने को शामिल करें. साथ ही आवेदन में दर्ज अपराध का खुलासा अनिवार्य किया जाए. तथ्य छिपाने पर आवेदन निरस्त कर दिया जाए.

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