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FIR में 6 साल देरी होने पर आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश (Allahabad High Court order) दिया है एफआईआर में 6 साल देरी होने पर आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती है. यह आदेश आपराधिक केस रद्द करने की मांग में दाखिल शैला गुप्ता की याचिका को खारिज करते हुए दिया गया है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Sep 29, 2022, 10:57 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश (Allahabad High Court order) में कहा है कि एफआईआर दर्ज करने में छह साल देर होने कारण विवेचना की अनदेखी करते हुए पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने आपराधिक केस रद्द करने की मांग (demand for cancellation of criminal case) में दाखिल शैला गुप्ता की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.

कोर्ट ने कहा कि याची पर प्रथमदृष्टया कपट और बेईमानी से अस्पताल का बड़ा हिस्सा लीज पर देने का अपराध बनता है. ऐसे में कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. याची जसवंत राय चूड़ामणि ट्रस्ट सोसायटी मेरठ से संचालित मैटरनिटी अस्पताल में प्रबंध समिति की अध्यक्ष थी. उसने अस्पताल का काफी हिस्सा श्रेया मेडिकल की डायरेक्टर मृदुल शर्मा को पट्टे पर दे दिया. इसे लेकर मेरठ के सिविल लाइंस थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई. पुलिस ने विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल की, जिस पर अदालत ने संज्ञान भी ले लिया है. याची पर बेईमानी से गबन और अस्पताल की जमीन का लीज कर हड़पने का भी आरोप है.

कोर्ट ने कहा कि निराधार और निरर्थक मनगढ़ंत आपराधिक केस में ही विशेष स्थिति में हस्तक्षेप किया जा सकता है. इस केस रद्द करने का कोई आधार नहीं है. याची का कहना था कि छह साल बाद एफआईआर दर्ज कराई गई है. वह अस्पताल का संचालन कर रही थी. उसने ट्रस्ट को कोई नुकसान या स्वयं को फायदा पहुंचाने का काम नहीं किया है. वह 90 वर्षीय है और कैंसर से पीड़ित है. उसने भी राजीव गुप्ता व अन्य लोगों के खिलाफ फर्जी दस्तावेज व जाली हस्ताक्षर से आपराधिक केस दर्ज कराने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

यह भी पढ़ें: सीएम के खिलाफ परिवाद दर्ज करने के मामले में फैसला सुरक्षित

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश (Allahabad High Court order) में कहा है कि एफआईआर दर्ज करने में छह साल देर होने कारण विवेचना की अनदेखी करते हुए पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने आपराधिक केस रद्द करने की मांग (demand for cancellation of criminal case) में दाखिल शैला गुप्ता की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.

कोर्ट ने कहा कि याची पर प्रथमदृष्टया कपट और बेईमानी से अस्पताल का बड़ा हिस्सा लीज पर देने का अपराध बनता है. ऐसे में कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. याची जसवंत राय चूड़ामणि ट्रस्ट सोसायटी मेरठ से संचालित मैटरनिटी अस्पताल में प्रबंध समिति की अध्यक्ष थी. उसने अस्पताल का काफी हिस्सा श्रेया मेडिकल की डायरेक्टर मृदुल शर्मा को पट्टे पर दे दिया. इसे लेकर मेरठ के सिविल लाइंस थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई. पुलिस ने विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल की, जिस पर अदालत ने संज्ञान भी ले लिया है. याची पर बेईमानी से गबन और अस्पताल की जमीन का लीज कर हड़पने का भी आरोप है.

कोर्ट ने कहा कि निराधार और निरर्थक मनगढ़ंत आपराधिक केस में ही विशेष स्थिति में हस्तक्षेप किया जा सकता है. इस केस रद्द करने का कोई आधार नहीं है. याची का कहना था कि छह साल बाद एफआईआर दर्ज कराई गई है. वह अस्पताल का संचालन कर रही थी. उसने ट्रस्ट को कोई नुकसान या स्वयं को फायदा पहुंचाने का काम नहीं किया है. वह 90 वर्षीय है और कैंसर से पीड़ित है. उसने भी राजीव गुप्ता व अन्य लोगों के खिलाफ फर्जी दस्तावेज व जाली हस्ताक्षर से आपराधिक केस दर्ज कराने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

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